शरद पवार की 'पावर' पालिटिक्स, राजनीति के धुरंधर का सियासी सफर

राज्यसभा सांसद और एनसीपी चीफ शरद पवार ने मंगलवार को एक Book Release के प्रोग्राम में अपने इस्तीफे का एलान किया. हालांकि, इस एलान के साथ ही एनसीपी के तमाम नेताओं की ओर से इस्तीफा वापस लेने की गुजारिश भी की गयी.

राज्यसभा सांसद और एनसीपी चीफ शरद पवार ने मंगलवार को एक Book Release के प्रोग्राम में अपने इस्तीफे का एलान किया. हालांकि, इस एलान के साथ ही एनसीपी के तमाम नेताओं की ओर से इस्तीफा वापस लेने की गुजारिश भी की गयी. महाराष्ट्र से लेकर सत्ता के केंद्र दिल्ली तक में शरद पवार की राजनीति की हनक महसूस की जाती रही है. पांच दशकों से ज्यादा समय का राजनीतिक करियर रखने वाले पवार की सियासी सफर में किस तरह के उतार चढ़ाव आये और कैसे शरद पवार पोलिटिकल कैरियर में इतने मुकाम  सभी बातो को जानेगे आज की इस वीडियो में। 

महाराष्ट्र के चार बार मुख्यमंत्री रहे शरद पवार ने केंद्र सरकार में दो बड़े मंत्रालय संभाले. एनसीपी नेता के सियासी दांव-पेंच और रणनीतियां हमेशा से ही लोगों का ध्यान खींचती रही हैं. 12 दिसंबर 1940 को जन्मे शरद पवार ने 1956 से अपने राजनितिक करियर की शुरुवात की थी.1958 में शरद पवार कांग्रेस की युवा इकाई में शामिल हो गए और पार्टी के लिए अपना समर्थन जाहिर किया. कांग्रेस में शामिल होने के चार साल बाद 1962 में ही उन्हें पुणे जिले में युवा इकाई का अध्यक्ष बना दिया गया. आने वाले कई सालों तक कांग्रेस की युवा इकाई में पवार के पास बहुत से अहम पद रहे और पार्टी में उनकी जड़ें मजबूत होती गयी. केवल 27 साल की उम्र में वे बारामती से कांग्रेस प्रत्याशी चुने गए, सूखे के मुद्दे के साथ शरद पवार कई सालो तक चुनाव जीतते रहे. इंदिरा गाँधी को साल उन्नीसो उन्नतर में पार्टी  के बाद शरद पवार ने कोन्ग्रेस्स का दामन थामा. 1975-77 तक ग्रह मंत्रालय सँभालने के बाद शरद कांग्रेस (यू) के खेमे में चले गए. 1978 में महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) और कांग्रेस (यू) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. हालांकि, चुनाव के बाद दोनों धड़ों ने मिलकर वसंतदादा पाटिल की सरकार बनवाई. इस सरकार में पवार के पास उद्योग मंत्रालय और श्रम मंत्रालय रहा. 38 साल की उम्र में ही शरद पवार ने कांग्रेस (यू) का साथ छोड़कर जनता पार्टी के साथ सरकार बना ली. इसके साथ ही 1978 में पवार महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि, 1980 में इंदिरा गांधी के सत्ता में वापस आने के बाद ये सरकार अल्पमत में आ गई. 1983 में पवार को महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) का अध्यक्ष बना दिया गया और वो बारामती लोकसभा सीट से सांसद बन गए. 1985 में पवार ने एक बार फिर से बारामती से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में ही रहने की इच्छा जाहिर की और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.लेकिन 1988 से वे लगातार चुनाव जितते रहे और 1993 तक वे रक्षा पद पर कार्यरत रहे. वही सोनिआ गाँधी को अध्यक्ष बनाये जाने के फैसले का विरोध करने के चक्कर में शरद पवार को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया. जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी का गठन किया. हालांकि, 1999 में ही एनसीपी ने बीजेपी-शिवसेना को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का समर्थन किया.

2004 में शरद पवार यूपीए सरकार में कृषि मंत्री बने. 2009 में भी ये मंत्रालय उनके ही पास रहा. लेकिन 2014 में nda की जीत के बाद उन्हें इस पद से हाथ धोना पड़ा. बीजेपी को हराने के लिए एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना का महाविकास आघाड़ी गठबंधन बना जिसकी कमान उद्धव ठाकरे ने संभाली, लेकिन लगातार होती कलह के चलते सरकार गिर गयी, और अब आखिरकार शरद पवार ने अपने राजयसभा में संसद के पद से इस्तीफा दे दिया है. शरद पवार के इस कदम को काफी लोगों की अलग अलग प्रतिक्रिया मिल रही  लेकिन चाहे वे सत्ता में रहे या नहीं लेकिन आज भी भारत की राजनीती में शरद पवार इ नाम का सिक्का चलता है.

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