रूस-यूक्रेन जंग पर शशि थरूर ने 3 साल बाद मानी गलती, कहा- 'मुझे अफसोस' PM मोदी एकदम सही
रूस-यूक्रेन जंग पर साल 2022 में दिए अपने बयान पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अफसोस जताया है. उन्होंने कहा कि आज भारत ऐसी स्थिति में खड़ा है, कि पुतिन और जेलेंस्की को गले लगा सकता है. उन्होंने कहा कि आज इस बात पर शर्मिंदगी महसूस हो रही है. थरूर ने कहा कि भारत की नीति बिल्कुल सही है.

Shashi Tharoor on Russia-Ukraine war: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत के रुख की आलोचना की थी. उस समय यह आह्वान किया था कि भारत को आक्रामकता की निंदा करनी चाहिए. उन्होंने मंगलवार को कहा कि जब उन्होंने उस समय भारत के रुख पर सवाल उठाए थे, लेकिन उन्हें अब इस पर शर्मिंदगी महसूस हो रही है. थरूर के अनुसार, उस समय की नीति के कारण भारत अब ऐसी स्थिति में है, जहां वह स्थायी शांति स्थापित करने में सहायक हो सकता है.
थरूर ने अपने बयान में बताया कि रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के वक्त भारत के रुख पर देश में चर्चा और मतभेद उत्पन्न हुए थे. उन्होंने कहा, "भारत उस समय अपने बयान को लेकर काफी अनिच्छुक था, क्योंकि उसे रूस को नाराज करने से डर था." थरूर ने यह भी कहा कि उनकी आलोचना इस कारण से थी कि रूस ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन किया था और यह भी कि सीमा की अनुल्लंघनीयता और यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन किया गया था.
थरूर ने रायसीना डायलॉग में मानी गलती
थरूर ने रायसीना डायलॉग में कहा, “मैं अब भी अपने चेहरे पर लगे दाग को छिपा रहा हूं, क्योंकि उस समय भारतीय स्थिति की आलोचना करने वाला मैं ही था.” उन्होंने कहा कि उस समय उन्हें लगता था कि भारत को रूस की इस आक्रामकता की निंदा करनी चाहिए थी, लेकिन अब यह स्पष्ट है कि भारत की नीति ने उसे एक ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा किया है, जहां वह दोनों पक्षों को शांतिपूर्वक बातचीत के लिए प्रेरित कर सकता है.
रूस-यूक्रेन जंग में भारत निभा सकता है बड़ी भूमिका
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पास अब ऐसे अवसर हैं, जहां वह यूक्रेन और रूस के बीच शांति स्थापित करने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. थरूर ने यह स्पष्ट किया कि यदि जरूरत पड़ी और दोनों देशों के बीच शांति स्थापित होती है, तो भारत शांति सैनिकों को भेजने पर विचार कर सकता है, हालांकि वे विपक्ष में होने के कारण सरकार की ओर से नहीं बोल सकते.
थरूर ने उदाहरण देते हुए कहा कि 2003 में इराक में भारतीय शांति सैनिक भेजने के प्रस्ताव पर संसद ने विरोध जताया था और उन्हें नहीं लगता कि यूक्रेन के मामले में ऐसा कोई विरोध होगा.


