Mahakumbh 2025: प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 ने आस्था, श्रद्धा और आध्यात्मिकता का अनुपम संगम पेश किया है. यहां संतों और श्रद्धालुओं की भीड़ में ऐसे असाधारण तपस्वी और साधु भी शामिल हैं, जिनकी साधना और रहस्यमयी व्यक्तित्व लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता हैं.
जुना अखाड़े के गीतेनंद महाराज, जिन्हें 'रुद्राक्ष बाबा' के नाम से जाना जाता है. वो पिछले 6 सालों से अपने सिर पर 1.25 लाख रुद्राक्ष धारण किए हुए हैं. पंजाब के कोट का पुरवा गांव से आने वाले बाबा के मुताबिक, ये रुद्राक्ष उनके भक्तों की आस्था का प्रतीक हैं.
12 से 13 साल की उम्र में सन्यास ग्रहण करने वाले बाबा अपनी कठोर तपस्या के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने ठंड में 1,001 घड़ों के पानी से स्नान और गर्मियों में धूनी साधना की है.
आवाहन अखाड़े से जुड़े गुपाल गिरी, सिर्फ 7-8 साल की उम्र में सन्यास धारण करने वाले सबसे युवा संतों में से एक हैं. उनका पहला महाकुंभ है, जहां उन्होंने अपने गुरु और गुरुभाइयों के साथ शिरकत की है. गुपाल गिरी कठोर साधना के लिए मशहूर हैं. कड़ाके की ठंड में बिना वस्त्र या चप्पल के ध्यान करना, नंगे पांव चलना और तपस्या में लीन रहना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है.
12 साल की उम्र में सन्यास ग्रहण करने वाले योगी राजेंद्र गिरी बाबा, जिन्हें 'खडेश्वरी बाबा' कहा जाता है. पिछले 14 सालों से एक पैर पर खड़े होकर तपस्या कर रहे हैं. जुना अखाड़े से जुड़े बाबा का मानना है कि यह तपस्या मानव कल्याण के लिए समर्पित है.
रायबरेली के हरिश्चंद्र विश्वकर्मा, जिन्हें 'चाबी वाले बाबा' के नाम से जाना जाता है, वो 20 किलो वजन की चाबियां लेकर चलते हैं. उनका मानना है कि ये चाबियां हमारे मन के दरवाजे खोलकर आत्मज्ञान का मार्ग दिखाती हैं. स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानने वाले बाबा ने 16 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था.
हरिद्वार के महंत राजगिरी, जिन्हें 'अंबेसडर बाबा' कहा जाता है, 52 साल पुरानी अंबेसडर कार में अपना ठिकाना बनाकर महाकुंभ में पहुंचे हैं. यह गाड़ी उन्हें 1998 में मुरादाबाद आरटीओ से उपहार स्वरूप मिली थी.
नागा साधु प्रमोद गिरी हर सुबह 4 बजे 61 घड़ों के ठंडे पानी से स्नान करते हैं और अग्नि तपस्या में लीन हो जाते हैं. उनके मुताबिक, यह साधना मानवता और समाज कल्याण के लिए समर्पित है. महाकुंभ में वह 21 दिनों तक इस कठिन साधना का पालन करते हैं.
सोनभद्र के अमरजीत, जिन्हें 'अनाज वाले बाबा' कहा जाता है, पिछले 14 सालों से अपने सिर पर अनाज उगाकर हरियाली और विश्व शांति का संदेश दे रहे हैं. माघ पूर्णिमा के दिन वे इस अनाज की फसल काटकर प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं.
साल 2011 से लगातार अपना दायां हाथ उठाए रखने वाले राधे पुरी बाबा, जो जुना अखाड़े से जुड़े हैं. वो अपने तप और संकल्प के प्रतीक बन गए हैं. उनका हाथ अब सुन्न हो चुका है और लंबे नाखून उनकी तपस्या का प्रतीक बन चुके हैं.
असम के 'छोटा दादू' के नाम से फेमस गंगापुरी बाबा, मात्र 3 फुट 8 इंच की ऊंचाई के बावजूद अपनी कठोर साधना और अघोर साधना के लिए प्रसिद्ध हैं. 9 साल की उम्र में सन्यास धारण करने वाले बाबा ने पिछले 32 सालों से स्नान नहीं किया है. हालांकि, महाकुंभ में वह अपनी जटाओं को स्नान कराकर आध्यात्मिक नवीनीकरण करेंगे.
First Updated : Monday, 13 January 2025