Kerala: केरल के राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची राज्य सरकार, पारित विधेयकों को मंजूरी में देरी का आरोप
Kerala: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल करते हुए केरल सरकार ने राज्यपाल पर आरोप लगाया है.
Kerala Government Reached Supreme Court: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. गुरुवार, (2 नवंबर) को राज्यपाल के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दाखिल करते हुए केरल सरकार ने कहा कि राज्य के विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों मंजूरी देने में राज्यपाल देरी कर रहे हैं.
राज्य सरकार द्वारा दाखिल किए गए रिट याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के पास आठ विधेयक लंबित हैं, जो एक तरह से लोगों के अधिकारों की हनन करता है. बता दें कि इस मामले से पहले तमिलनाडु और पंजाब की सरकारों ने संबंधित राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्य के राज्यपालों द्वारा देरी का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था.
रिट में केरल सरकार ने क्या कहा?
रिट याचिका में केरल सरकार ने राज्य विधानमंडल द्वारा पारित आठ विधेयकों के संबंध में राज्य की राज्यपाल की ओर से निष्क्रियता का दावा किया है. सरकार ने याचिका में कहा है कि की विधेयकों में अत्यधिक सार्वजनिक हित शामिल हैं और कल्याणकारी उपया प्रदान किए गए हैं. जिनसे लोग वंचित रह जाएंगे.
Kerala government moves a writ petition in the Supreme Court against Governor Arif Mohammed Khan for inaction on his part regarding eight Bills passed by the state legislature and presented to him for his assent under Article 200 of the Constitution.
— ANI (@ANI) November 2, 2023
The petition says three… pic.twitter.com/9anq5UTkED
केरल सरकार ने राज्यपाल पर मनमानी करने का आरोप लगाते हुए कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि राज्यपाल का मानना है कि बिलों को मंजूरी देना या अन्यथा उनसे निपटना उनके पूर्ण विवेक पर सौंपा गया मामला है, जब भी वह चाहें निर्णय लें. एक तरह से यह संविधान का पूर्ण तोड़फोड़ है."
'संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन'
याचिका में कहा गया है कि विधेयकों को लंबे समय तक और अनिश्चित काल तक लंबित रखने में राज्यपाल का आचरण भी स्पष्ट रूप से मनमाना है, और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. इसके अतिरिक्त, यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत केरल राज्य के लोगों के अधिकारों को भी पराजित करता है. उन्हें राज्य विधानसभा द्वारा अधिनियमित कल्याणकारी कानून के लाभों से वंचित करता है.