अयोध्या कांड की शुरुआत 1949 में हुई थी. 22-23 दिसंबर 1949 की रात अयोध्या में विवादित मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्तियां रख दी गईं. दूसरे दिन सुबह यह बात फैला दी गई कि विवादित बाबरी के अंदर राम लला प्रकट हुए हैं. इसके बाद मौके पर लाखों राम भक्त पहुंच गए. मुस्लिम पक्ष के लोग इसका विरोध जताने लगे इसके बाद माहौल तनावपूर्ण हो गया. यही वो साल था, जब मस्जिद के भीतर पहली बार मूर्ति रखी गई थी. मूर्ति रखने की घटना ने अयोध्या की आबोहवा बदल दी. अमूमन शांत रहने वाली अयोध्या हर तरफ कीर्तन-भजन और जोरदार नारों से गूंजने लगी.
इन नारों, शोर में कई आवाजें ऊपर तक सुनाई दी, तो कई आवाजें दब गईं. इन दबी आवाजों में एक आवाज अब्दुल गफ्फार की भी थी. अयोध्या कांड में गफ्फार की एंट्री सबसे पहले हुई थी. गफ्फार बाबरी के आखिरी इमाम भी थे. आज की कहानी में हम आपको अब्दुल गफ्फार के बारे में बताएंगे.
इमाम गफ्फार बाबरी मस्जिद के लिए लड़ने वाले आखिरी इमाम हाजी थे, जिन्हें 1949 में ही अंदेशा हो गया था कि राम मंदिर आंदोलन देश में तूल पकड़ेगा और इसको लेकर देश भर में दंगे होंगे. हाजी अब्दुल गफ्फार का निधन 1990 में हो गया था. इमाम हाजी अब्दुल गफ्फार एकमात्र शख्स थे, जिन्होंने अयोध्या में मस्जिद के भीतर मूर्ति रखते देखा था और बाद में अयोध्या को बड़ा मुद्दा बनते देखा.
हाजी गफ्फार ही वो पहले शख्स थे, जिनकी शिकायत पर बाबरी विवाद में पहला केस दर्ज हुआ था. इतना ही नहीं, कोर्ट में जो 70 साल तक बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्मभूमि विवाद की सुनवाई चली, उसके केंद्र में भी गफ्फार ही थे. इसकी 2 मुख्य वजहें थीं. आखिरी इमाम होने की वजह से गफ्फार बाबरी विध्वंस के जीवित गवाह थे. ढांचा मस्जिद ही था, इसका प्रमाण सिर्फ और सिर्फ गफ्फार के पास था. गफ्फार के निधन के बाद बाबरी विवाद की कमान उनके बेटों ने संभाली. हालांकि, 2 साल बाद ही दंगे में गफ्फार के दोनों बेटों को मार दिया गया.
बाबरी मस्जिद में इमाम का पेशा अब्दुल गफ्फार को विरासत में मिला था. मस्जिद निर्माण के बाद गफ्फार की 7 पीढ़ियां इस काम को कर चुकी थीं. सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे के अनुसार साल 1930 में गफ्फार को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इमाम नियुक्त किया था. गफ्फार इस पद पर 1949 तक रहे. गफ्फार से पहले उनके पिता अब्दुल कादिर बाबरी मस्जिद के इमाम थे. कादिर 1901 से लेकर 1930 तक इस मस्जिद के इमाम रहे.
सुन्नी वक्फ बोर्ड के मुताबिक बाबरी मस्जिद के तत्कालीन ट्रस्टी सैय्यद मोहम्मद ज़की ने 25 जुलाई 1936 को एक एग्रीमेंट के तहत गफ्फार को इमाम नियुक्त किया. गफ्फार को इसके बदले मासिक दरमाहा (सैलरी) 20 रुपए मिलने लगी. गफ्फार ने बाबरी मस्जिद पर फारसी में लिखी गई किताब गुम-गश्ता-ए-हालात-ए-अयोध्या का उर्दू अनुवाद 1930 में किया. यह किताब बाबरी मस्जिद के निर्माण को लेकर लिखी गई थी. किताब का दोबारा प्रकाशन साल 1981 में हुआ था.
साल 1941 में अनुबंध के तहत सैलरी नहीं मिलने के बाद इमाम गफ्फार ने फैजाबाद मजिस्ट्रेट के पास शिकायत दर्ज कराई. शिकायत में कहा कि मस्जिद के ट्रस्टी इमाम को मासिक सैलरी नहीं दे रहे हैं, जो अनुबंध के खिलाफ है. बाद के दिनों में शिकायत की यह प्रति बाबरी विवाद में सबूत बन गई. हालांकि, कोर्ट ने इस सबूत को निजी बताकर खारिज कर दिया था.
कोर्ट में पेश दस्तावेज के मुताबिक फैजाबाद मजिस्ट्रेट ने इस मामले की जांच के बाद एक रिपोर्ट बनाई थी, जिसमें गफ्फार की शिकायत को सही पाया गया था. इस रिपोर्ट में बाबरी मस्जिद पर शिया और सुन्नी समुदाय के बीच की तल्खी का भी जिक्र है. रिपोर्ट के मुताबिक गफ्फार ने बाबरी मस्जिद को सुन्नी समुदाय का मस्जिद बताया था. गफ्फार का कहना था कि मस्जिद निर्माण करने वाले सभी लोग सुन्नी थे.
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से निचली अदालत में दायर हलफनामा के मुताबिक 22 दिसंबर 1949 को शाम में बाबरी मस्जिद के भीतर आखिरी बार नमाज पढ़ी गई थी. इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता हाशिम अंसारी ने कोर्ट को बताया था कि यह नमाज इमाम अब्दुल गफ्फार के नेतृत्व में ही पढ़ी गई थी. मगरीब की नमाज (शाम की नमाज) के वक्त मस्जिद परिसर में करीब 200 लोग मौजूद थे. मुस्लिम पक्षकारों ने कोर्ट में बताया कि इसी दिन देर रात 15-20 लोग मस्जिद परिसर में घुस गए और उन्होंने मूर्ति रख दीं. अगले दिन यानी 23 दिसंबर 1949 को अब्दुल गफ्फार के नेतृत्व में मुसलमानों ने विरोध जताया. गफ्फार ने पुलिस को तहरीर दी, जिसके बाद इस मामले की जांच की गई और बाद में इसी जांच के आधार पर रिपोर्ट दर्ज हुई.
उस समय इस मामले को कवर करने वाले पत्रकारों ने अब्दुल गफ्फार के हवाले से एक रिपोर्ट लिखी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक गफ्फार ने अयोध्या और देश में दंगे की भविष्यवाणी की थी. गफ्फार ने साल 1989 में संडे गार्जियन को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि पहले लड़ाई सिर्फ मस्जिद के चबूतरे तक थी. हिंदू पक्ष का कहना था कि मस्जिद का जो चबूतरा है, वो राम लला का क्षेत्र है, लेकिन बाद में हिंदू पक्ष ने पूरी मस्जिद पर दावा ठोक दिया.
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में मस्जिद विध्वंस के बाद अयोध्या में सांप्रदायिक तनाव फैल गया. बाबरी के इस दंगे में गफ्फार के दोनों बेटों का कत्ल कर दिया गया. रिपोर्ट के मुताबिक कारसेवकों के एक जत्थे ने मुस्लिम बस्तियों पर हमला बोल दिया.
उग्र भीड़ को देखकर गफ्फार के बेटे मोहम्मद साबिर और मोहम्मद नाजिर भागने लगे, लेकिन भाग नहीं पाए. जनमोर्चा अखबार के मुताबिक बाबरी दंगे में करीब 15 मुसलमान मारे गए थे, जिनमें से 2 गफ्फार के बेटे थे. इन दोनों की हत्या का मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है.
First Updated : Sunday, 14 January 2024