पड़ोसी देश पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देने और आतंकियों को पालने के लिए पूरी दुनिया में कुख्यात है. मुंबई सीरियल ब्लास्ट हो या 26/11 मुंबई धमाके का आरोपी हो सबको पाकिस्तान ने पनाह दे रखी है. पाकिस्तान में कई आतंकी संगठनों का जन्म भी हुआ है. पाकिस्तान की प्रसिद्ध लाल मस्जिद आतंकियों की पनाहगाह के तौर पर दुनियाभर में पहचानी जाती है.
पाकिस्तान में एक समय ऐसा आया जब सेना ने लाल मस्जिद की घेराबंदी करके बम बरसाए थे. इस मस्जिद को पूर्व जनरल अयूब खान ने साल 1967 में बनवाया था. तब अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे. लाल मस्जिद इस्लामाबाद के बीचों बीच है. इसी साल पाकिस्तान की राजधानी कराची से बदलकर इस्लामाबाद बनाई गई थी.
कराची के मदरसे जामिया बनूरिया के मुखिया अल्लामा यूसुफ बनूरी की सलाह पर पंजाब के एक कस्बे के मौलाना अब्दुल्लाह को अयूब खान ने लाल मस्जिद का इमाम बना दिया. इस मस्जिद की सबसे बड़ी खूबी इसकी लोकेशन है. लाल मस्जिद पाकिस्तान की संसद से महज तीन किमी की दूरी पर है. इसके आसपास ज्यादातर नेताओं, सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के घर हैं. इसके कारण यहां के ज्यादातर लोग नमाज पढ़ने के लिए इसी मस्जिद में आते हैं. अब आपको लगता होगा कि इतना कुछ अच्छा चलता था फिर ऐसा क्या हुआ कि इतनी अहम मस्जिद पर सेना को बम बरसाने पड़े? तो आज हम आपको इसकी कहानी भी सुनाते हैं.
पाकिस्तान में 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार थी. इसी साल जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तान नेशनल अलायंस के साथ मिलकर देश में शरिया कानून लागू करने की मांग तेज कर दी. लाल मस्जिद के इमाम ने उनके आंदोलन का समर्थन किया तो कुछ ही समय में सरकार गिर गई और जनरल जिया-उल-हक सत्ता पर काबिज हो गए. वह देश में शरिया कानून लागू करने का वादा करने के कारण ही सत्ता पर काबिज हुए थे. लाल मस्जिद ने उनका समर्थन किया था. अहसानमंद हक ने बदले में लाल मस्जिद को पूरा संरक्षण दिया. इसके बाद इमाम को एक अहम कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया, जो पाकिस्तान में राजनीतिक ताकत का प्रतीक थी. जिया उल हक ने अब्दुल्लाह को मस्जिद और मदरसे बनाने के लिए बड़ी रकम भी दी.
दुनियाभर में जारी राजनीतिक हलचल के बीच 1980 में सोवियत संघ और अफगानिस्तान के बीच जंग छिड़ गई. सोवियत के चिरप्रतिद्वंद्वी अमेरिका ने अफगानिस्तान का साथ दिया. पाकिस्तान में बड़ी आबादी अफगानिस्तान के समर्थन में उतर आई. लाल मस्जिद ने पूरी दुनिया के मुसलमानों से अफगानिस्तान का साथ देने की अपील की. पाकिस्तान की. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस जंग में लड़ने जाने वालों को लाल मस्जिद में ठहराया जाता था. कुछ रिपोर्ट तो ये भी इशारा करती हैं कि खुद अब्दुल्लाह ने भी इस जंग में शिरकत की थी. अब्दुल्लाह 1998 में काबुल के दौरे में अपने बेटे अब्दुल राशिद को भी साथ ले गया था. इस दौरान ओसामा बिन लादेन से राशिद की मुलाकात हुई.
तालिबान से काबुल में 1998 में हुई मुलाकात के एक साल बाद अब्दुल्लाह की हत्या कर दी गई. उसके परिवार वालों ने पाकिस्तान सरकार और सेना पर हत्या का आरोप लगाया. इसके बाद लाल मस्जिद की कमान अब्दुल्लाह के बड़े बेटे अब्दुल अजीज को सौंपी गई. वहीं, छोटा बेटा राशिद मदरसे देखने लगा. कुछ समय बाद 11 सितंबर 2001 की सुबह अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर समेत चार जगहों पर आतंकी हमले हुए. इसके बाद अक्टूबर 2001 में अमेरिका ने वॉर ऑन टेरर शुरू किया. अब पाकिस्तान की कमान जनरल परवेज मुशर्रफ के पास थी. उन्होंने इस जंग में अमेरिका का साथ दिया. लाल मस्जिद ने मुशर्रफ के फैसले पर ऐतराज जताया. मुशर्रफ ने लाल मस्जिद के ऐतराज को दरकिनार कर दिया.
मुशर्रफ ने तालिबानियों पर हमला करना बंद नहीं किया. इस पर ओसामा बिन लादेन ने अब्दुल अजीज से पाकिस्तान की सेना के खिलाफ फतवा जारी करने को कहा. ऐसे में अजीज ने फतवा जारी कर कहा कि पाकिस्तानियों को सेना के खिलाफ लड़ना चाहिए. इसमें जान गंवाने वालों को शहीद का दर्जा दिया जाएगा. साथ ही इसमें कहा गया कि सेना के जवानों को मुसलमानों के कब्रिस्तान में न दफनाने दिया जाए. लाल मस्जिद के फतवे जारी करने का असर यह हुआ कि मुशर्रफ पर दो बार हमले हुए. वह दोनों में हमलों में बच गए.
लाल मस्जिद धीरे-धीरे इस्लामी चरपंथियों का केंद्र बनती जा रही थी. यहां तक कि मस्जिद में तालिबानी नेताओं को पनाह दी जाती थी. कुछ समय तक तो परवेज मुशर्रफ इसकी अनदेखी करते रहे. जब उनके सब्र का बांध टूटा तो उन्होंने लाल मस्जिद पर सैन्य कार्रवाई का फैसला ले लिया. उन्होंने 10 जुलाई 2007 को सैन्य ऑपरेशन शुरू करवा दिया. सेना ने लाल मस्जिद को घेरकर गोलीबारी और बमबारी शुरू कर दी. सेना के हमले में 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे. इनमें अब्दुल अजीज का छोटा भाई अब्दुल राशिद भी शामिल था. बाद के दिनों में राशिद की मौत पाकिस्तान सरकार के लिए खौफनाक सपना साबित हुई.
अब्दुल राशिद को पाकिस्तान के लोग नायक की तरह मानने लगे. यही नहीं, दुनियाभर के आतंकी संगठनों ने उसे अपना आदर्श मान लिया. ओसामा बिन लादेन ने एक ऑडियो टेप जारी कर राशिद को इस्लाम का हीरो कहा. इसी टेप में उसने पाकिस्तान की सेना के खिलाफ जंग का ऐलान किया. उस दौरान अलकायदा में नंबर दो की हैसियत रखने वाले अयमान अल जवाहिरी ने भी ऑडियो टेप जारी कर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बगावत का ऐलान कर दिया. सेना ने एक बार फिर लाल मस्जिद पर कारवाई की. इसमें अब्दुल अजीज बुर्का पहनकर भागा, लेकिन महिला पुलिसकर्मियों ने मदरसे की लड़कियों की जांच में उसे धर दबोचा.
अजीज के पकड़े जाने के बाद मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों ने हिंसक आंदोलन शुरू कर दिए. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2009 में अजीज को रिहा कर दिया. इसके बाद उसने मस्जिद से जहरीले भाषण देना शुरू कर दिया. हालात इतने खराब हो कि पाकिस्तान सरकार शुक्रवार के दिन कुछ घंटों के लिए इस्लामाबाद में मोबाइल सिग्नल कम कर देती थी. पाकिस्तानी सेना के 2007 में लाल मस्जिद पर हमले के बाद बने इस्लामी चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी ने बाद में देश के कई शहरों में बड़े हमलों को अंजाम दिया. टीटीपी के आतंकियों ने 2014 में पेशावर के एक स्कूल पर हमला किया. इसमें 134 मासूमों समेत 150 लोगों की मौत हो गई. First Updated : Thursday, 11 January 2024