Veer Bal Diwas : कहानी गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों की, जो शहीद हो गए लेकिन मुगलों के सामने नहीं झुके
गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके साहिबजादों के संघर्ष की शुरुआत आनंदपुर साहिब किले से होती है. मुगलों और गुरु गोबिंद सिंह जी के बीच कई महीने से जंग चल जारी थी. काफी संघर्ष के बीच गुरु गोबिंद सिंह जी हार मानने को तैयाार नहीं थे.
Veer Bal Diwas : आज 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जा रहा है. गुरु गोविंद सिंह जी के बेटों की शहादत को याद करने के लिए यह शहादत दिवस मनाया जाता है. दिल्ली में आज इसके लिए भारत मंडपम में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया. आज हम आपको गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों के संघर्ष की कहानी के बारे में बता रहे हैं. गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके साहिबजादों के संघर्ष की शुरुआत आनंदपुर साहिब किले से होती है. मुगलों और गुरु गोबिंद सिंह जी के बीच कई महीने से जंग चल जारी थी. काफी संघर्ष के बीच गुरु गोबिंद सिंह जी हार मानने को तैयाार नहीं थे. इस इस बात को लेकर औरंगजेब भी हैरान था.
इस्लाम कुबूल करने की रखी थी शर्त
अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह चारों गुरु गोबिंद सिंह जी के पुत्र थे. इनकी शहादत के सम्मान में वीर बाल दिवस मनाया जाता है. 26 दिसंबर के दिन जोरावर सिंह और फतेज सिंह शहीद हुए थे. जंग के बाद जब गुरु गोबिंद सिंह का पलड़ा कमजोर पड़ा तो औरंगजेब में उनके सामने इस्लाम कुबूल करने की शर्त रखी. कहा अगर आप लोग ऐसा करते हैं तो आपको मन मांगी मुराद मिलेगी और छोड़ दिया जाएगा. लेकिन सभी ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
जब मदद करने वाले ने दिया धोखा
गुरुगोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और साहिबजादे फतेह सिंह दादी मां गुजरी देवी को लेकर सुरक्षित जगह पर गए. बड़े बेटे पिता के साथ सरसा नदी को पार करने के बाद चमकौर साहिब गढ़ पहुंच गए. दादी मां के साथ दोनों छोटे बेटे जंगल से गुजरते हुए एक गुफा तक पहुंचे और वहीं ठहर गए. उनके पहुंचे की यह खबर लंगर की सेवा करने वाले गंगू ब्राह्मण को मिली और वो उन्हें अपने घर ले आया.
इस पर गंगू ने पहले गुजरी देवी के पास रखी अशर्फियों को चुरा लिया इसके बाद कोतवाल को उनके बारे में जानकारी दे दी. कोतवाल ने तुरंत कई सिपाही भेजकर माताजी और साहिबजादों को कैदी बना लिया. अगली सुबह इन्हें सरहंद के बसी थाने ले जाया गया. सरहंद में माताजी और साहिबजादों को ऐसी ठंडी जगह पर रखा गया, जहां बड़े-बड़े लोग हार मान जाएं. इन्हें डराया गया, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी.
शहीद हुए पर नहीं मानी मुगलों की शर्त
सभी को नवाब वजीर खान के सामने पेश किया गया. वजीर खान ने साहबजादों के सामने शर्त रखी. कहा- अगर तुम मुस्लिम धर्म को स्वीकार लेते हो तो तुम्हे मुंह मांगी मुराद मिलेगी और छोड़ दिया जाएगा. साहिबजादों ने इसका विरोध करते हुए कहा, हमें अपना धर्म सबसे प्रिय है. इस पर नवाब भड़का और कहा कि इन्हें सजा देनी चाहिए. यह सुनते ही काजी ने फतवा तैयार किया. उसमें लिखा कि बच्चे बगावत कर रहे हैं, इसलिए इन्हें दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाए.
अगले दिन सजा देने से पहले से फिर उन्हें फिर मुस्लिम धर्म को स्वीकार करने का लालच दिया गया, लेकिन वो अपनी बात पर अडिग रहे. यह सुनते ही जल्लाद साहिबजादों को दीवार में चुनने लगे. कुछ समय बाद दोनों बेहोश हो गए और उन्हें शहीद कर दिया गया.