नहीं चलेगी सरकारों की मनमानी, बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक; जारी की 6 गाइडलाइन
Supreme Court's decision on bulldozer action: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है. हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश किसी एक राज्य के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है.
Supreme Court's decision on bulldozer action: सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है और इस पर रोक लगा दी है. कोर्ट का यह आदेश सिर्फ एक राज्य के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है. कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी अपराध में आरोपी या दोषी है. कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है, और बिना इसके प्राधिकृत अधिकारी बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी के अधिकारों की रक्षा करना और कानून के तहत न्याय दिलाना कार्यपालिका की जिम्मेदारी है, लेकिन न्यायपालिका के स्थान पर राज्य सरकार ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकती. अगर राज्य ने बिना कानून का पालन किए संपत्ति को ध्वस्त किया, तो यह पूरी तरह से गलत होगा. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कानून के बिना किसी की संपत्ति तोड़ना असंवैधानिक है.
गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनाया फैसला
यह फैसला जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनाया. कोर्ट ने 17 सितंबर को बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाई थी, इसके बाद कई राज्यों में इस मामले को लेकर याचिका दायर की गई थी. इनमें से एक याचिका जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा भी दायर की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार और अधिकारियों को मनमाने तरीके से किसी भी नागरिक की संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए. अगर किसी व्यक्ति ने कानून तोड़ा है, तो राज्य की जिम्मेदारी है कि वह कानून और व्यवस्था बनाए रखे और उसे अवैध कार्रवाई से बचाए. राज्य के मनमाने फैसले से अराजकता पैदा हो सकती है, और इससे जनता का विश्वास भी कमजोर हो सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति की संपत्ति को सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि उस पर आरोप हैं. अगर ऐसा किया जाता है, तो यह शक्तियों के बंटवारे का उल्लंघन होगा.
जारी की 6 गाइडलाइन
कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य और अधिकारी, जब तक किसी व्यक्ति को दोषी साबित नहीं किया जाता, उसे बिना कानूनी प्रक्रिया के सजा नहीं दे सकते. मनमानी कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा और ऐसे मामलों में मुआवजा भी दिया जा सकता है.
अदालत का संदेश
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति की संपत्ति केवल इस आधार पर ध्वस्त कर दी जाती है कि उस पर आरोप है, तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक है. राज्य सरकारें यह तय नहीं कर सकतीं कि कौन दोषी है या नहीं. न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है और कार्यपालिका को यह अधिकार नहीं है कि वह खुद ही दोषी साबित करे. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की मनमानी कार्रवाई संविधान के सिद्धांतों और न्याय के खिलाफ है, और इसे रोका जाना चाहिए.
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि किसी के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है और बिना सही प्रक्रिया के किसी की संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता.
यहां पढ़ें महाराष्ट्रा इलेक्शन से जुड़ीं खबरें
यहां पढ़ें झारखंड इलेक्शन से जुड़ीं खबरें