'समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, फिर क्यों खारिज हुई याचिकाएं?'
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से मना करते हुए 2023 के फैसले को सही ठहराया। 5 जजों की बेंच ने समलैंगिक विवाह को लेकर दाखिल की गई पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं और इसे सरकार के अधिकार क्षेत्र में रखा। कोर्ट ने कहा कि यह मामला संसद और सरकार के निर्णय पर निर्भर है, न कि न्यायपालिका पर। जानिए इस फैसले का क्या असर होगा और क्या समलैंगिक विवाह के कानूनी मान्यता की राह अभी भी खुली है?
Supreme Court Big Decision: भारत में समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 2023 में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने वाले अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं। इस फैसले ने समलैंगिक समुदाय और उनके अधिकारों को लेकर एक नया मोड़ लिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को सही ठहराया है।
क्या था 2023 का फैसला?
17 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से मना कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि विवाह कोई मौलिक अधिकार नहीं है, और यह सरकार और संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि समलैंगिक जोड़े बच्चा गोद नहीं ले सकते, क्योंकि यह एक अलग मामला है, जो कानूनी दृष्टिकोण से अलग है।
पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ 13 याचिकाएं दाखिल की गईं थी, जिनमें पुनर्विचार करने की मांग की गई थी। इन याचिकाओं में यह कहा गया था कि समलैंगिकों को अपने साथी के साथ रहने का अधिकार होना चाहिए, लेकिन उन्हें शादी का दर्जा देना सरकार का काम नहीं हो सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार करते हुए इसे दोबारा सुनवाई के लिए लाने की जरूरत नहीं समझी।
पाँच जजों की बेंच का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने पुनर्विचार याचिकाओं पर बंद कमरे में विचार किया। इस बेंच की अध्यक्षता जस्टिस बी आर गवई ने की थी, और इसमें जस्टिस सूर्य कांत, बी वी नागरत्ना, पी एस नरसिम्हा और दीपांकर दत्ता शामिल थे। जस्टिस नरसिम्हा ही केवल वह जज थे, जो 2023 के फैसले में भी शामिल थे। बाकी चार जज अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बेंच ने यह माना कि पहले का फैसला सही था और इस पर कोई कानूनी गलती नहीं है।
अर्थपूर्ण फैसला
इस फैसले के बाद अब समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यह मामला सरकार के निर्णय पर निर्भर है, और इसे कानूनी रूप से लागू करने का अधिकार संसद और सरकार के पास है, न कि न्यायपालिका के। हालांकि, समलैंगिक समुदाय के लिए यह एक अहम विषय है और उनके लिए यह एक निराशाजनक फैसला साबित हो सकता है, जो उनके अधिकारों और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम था। समलैंगिक विवाह के कानूनी मान्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार और संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह समलैंगिक समुदाय के अधिकारों पर प्रभाव डालने वाला फैसला है, लेकिन अब यह सरकार और सांसदों के ऊपर निर्भर करेगा कि वे इस मामले पर आगे क्या कदम उठाते हैं।