Supreme Court: 'जम्मू-कश्मीर में भारतीयों से छीने मौलिक अधिकार,' 370 पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने क्या कुछ कहा?
Supreme Court Hearing: सोमवार को 370 पर सुनवाई का 11वां दिन था. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक टिप्पणी करते हुए कहा कि 'अनुच्छेद 35ए ने भारत के लोगों के तमाम मौलिक अधिकारों को छीन लिया था.''
हाइलाइट
- अनुच्छेद 16(1) के तहत सार्वजनिक नौकरियों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे अवसर
- अनुच्छेद 19(1)(एफ) और 31 के तहत संपत्तियों का अधिग्रहण
- अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत देश के किसी भी हिस्से में बसने का अधिकार
Supreme Court Hearing On Article 370: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के मामले की सुनवाई की. जिसमें कोर्ट ने कहा कि 'आर्टिकल 370 के हटाए जाने से पहले जम्मू-कश्मीर के रहने वाले लोगों को विशेष अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35ए ने उनसे तमाम मौलिक अधिकारों को छीन लिया था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के प्रधान सुप्रीम कोर्ट के जज धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के कहा, अनुच्छेद 35ए ने, जिसे 1954 में राष्ट्रपति के हुक्म से संविधान में जोड़ा गया था, लोगों को कम से कम तीन मौलिक अधिकारों को छीन लिया गया है.
कौन से तीन मूल अधिकार छीने गए?
1- अनुच्छेद 16(1) के तहत सार्वजनिक नौकरियों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे अवसर
2- अनुच्छेद 19(1)(एफ) और 31 के तहत संपत्तियों का अधिग्रहण
3- अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत देश के किसी भी हिस्से में बसने का अधिकार
अनुच्छेद 35ए क्या है?
जम्मू-कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 35ए के तहत विशेष अधिकार दिए गए थे. इसमें राज्य की लेजिसलेचर को ऐसे कानून बनाने का हक मिला, जिसे दूसरे राज्यों के लोगों के समानता के अधिकार या भारतीय संविधान के तहत किसी अन्य अधिकार के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं नहीं दी जा सकती थी. आपको बता दे कि अनुच्छेद 35ए को अनुच्छेद 370 के तहत मिली पॉवर्स का इस्तेमाल करके संविधान में जोड़ा गया था. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के रद्द होने के साथ ही 35ए को भी खत्म कर दिया गया था.
बीते दिन अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने को चुनौती दने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की गई. सुनवाई के 11वें दिन सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील पैश करते हुए कहा कि ''अनुच्छेद 35ए ने न सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लोगों और अन्य निवासियों के बीच बल्कि देश के अन्य लोगों के बीच भी एक अंतर पैदा किया था. पीठ ने इस बात पर अफसोस जताते हुए कहा कि ''कॉन्स्टिट्यूशन प्रोविजनल ने फंडामेंटल राइट्स को लागू करने के लिए एक पूरी तरह से अलग मैकेनिज्म तय किया.''