तो क्या खाली हो जाएंगी देशभर की जेल? सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों को लेकर सुनाई बड़ी खुशखबरी
देशभर में मौजूद जेल अपनी क्षमता से ज्यादा कैदियों को कैद किए हुए हैं. कई राज्य तो ऐसे हैं कि एक कैदी की जगह पर 3 या उससे ज्यादा कैदी कैद हैं. साथ ही इन कैदियों में कुछ ही कैदी ऐसे हैं जिन्हें सजा सुनाई गई है. ज्यादातर कैदी अंडर ट्रायल हैं वो जेल की कोठड़ियों में सिर्फ इंतेजार कर रहे हैं. इसी हालत को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश जारी किया है. जिससे जेलों की स्थिति सुधरने की उम्मीद है.
देश की जेलें खचाखच भरी हुई हैं, लाखों की तादाद में कैदी अपनी जमानत या फिर अपने जुर्म की सजा के ऐलान करने का इंतेजार कर रहे हैं. देश की जेलों में मौजूद कुल कैदियों में सिर्फ 22 फीसद ही ऐसे हैं जिन्हें सजा सुनाई गई है. इसके अलावा 77 फीसद कैदी अंडर ट्रायल हैं. इस हालत को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी खुशखबरी दी है. अदालत ने कहा है कि देश की जेलों में बंद ऐसे विचाराधीन कैदी, जिन्होंने जेल में एक तिहाई सजा काट ली है उनकी जमानत का रास्ता साफ होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर खुद ही एक्शन लेते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा था.
जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की बेंच ने आदेश दिया है कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 479 को पूरे देश में लागू किया जाए. इस धारा में , अगर कोई विचाराधीन कैदी हिरासत में सजा के 1 तिहाई वक्त को काट चुका है तो उनकी जमानत पर विचार किया जाना चाहिए और 90 दिन के अंदर उसे जमानत मिले या फिर केस का निपटारा हो. इसके बाद 23 अगस्त को केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि धारा 479 एक जुलाई से पहले दर्ज किए गए सभी विचाराधीन मामलों में लागू की जाएगी. ये आदेश उन कैदियों के लिए बहुत ज्यादा सुकून वाला है जो आर्थिक तौर पर कमजोर हैं और बॉन्ड न भर पाने की वजह से जेल में रहने को मजबूर हैं.
सरकारी खजाने पर पड़ता है असर:
रिपोर्ट में कहा गया है कि विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक हिरासत में रखना इस बात का संकेत है कि केस खत्म होने में काफी वक्त लग रहा है. इससे न सिर्फ एडमिनिस्ट्रेटिव वर्कलोड बढ़ता है, बल्कि हर कैदी पर खर्च होने वाला बजट भी इसी वजह से बढ़ता है. इसका असर सरकारी खजाने पर पड़ता है.
क्या है देश की जेलों की स्थिति?
16 राज्य और तीन केंद्र शासित प्रदेश में क्षमता से ज्यादा कैदियों को रखा गया था. बिहार में इसका आंकड़ा 2020 में 113% था, जो 2021 में बढ़कर 140% हो गया. जबकि उत्तराखंड में ये आंकड़ा 185% था. नेशनल लेवल पर लगभग 30% जेल ऐसी हैं, जहां ऑक्यूपेंसी रेट 150% या उससे ज्यादा है. यानी यहां पर एक की जगह तीन या उससे ज्यादा कैदी हैं. वहीं 54% जेल ऐसी हैं, जहां 100% ऑक्यूपेंसी रेट है यानी यहां एक की जगह दो या उससे ज्यादा कैदी हैं. तमिलनाडु की कुल 139 जेलों में से 15 जेल 100% से ज्यादा भरी हैं. छोटे राज्यों की बात करें तो मेघालय की पांच जेलों में से चार क्षमता से ज्यादा भरी हुई हैं. इसके बाद हिमाचल प्रदेश की सभी जेलों में से 14 जेल 100% से ज्यादा भरी हैं.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारतीय जेलों में लगातार कैदियों की तादात बढ़ती जा रही है.
➤ जेल में केवल 22% कैदियों को ही सजा दी गई है.
➤ 77% कैदी अंडर ट्रायल यानी विचाराधीन कैदी हैं
➤ 2010 में इनकी तादात 2.4 लाख थी और 2021 में ये बढ़कर ये आंकड़ा 4.3 लाख पहुंच गया है.
बात अगर देश में पेंडिंग केसेज की करें तो ये आंकड़े करोड़ों में हैं. केवल क्रिमिनल ही नहीं बल्कि सिविल केस दोनों के पेंडिग केस की तादाद करोड़ों में हैं. आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं.
➤ निचली अदालतों में 4 करोड़ से ज्यादा केस पेंडिग हैं.
➤ क्रिमिनल केस 3.25 करोड़ के आस पास पेंडिंग हैं.
➤ 71% केस पांच साल से ज्यादा पुराने हैं.
➤ सिविल केस के 1.09 करोड़ पेंडिंग हैं.
➤ 73% केस पांच साल से ज्यादा पुराने है