सुप्रीम कोर्ट: सभी निजी संपत्तियां सामुदायिक संपत्ति नहीं हो सकतीं

सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकार हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं बना सकती और सिर्फ वही संपत्तियां जनहित में हो सकती हैं जिन्हें सामुदायिक संसाधन माना जाए. जानिए इस ऐतिहासिक फैसले से जुड़ी अहम बातें और क्या इसका असर आपके अधिकारों पर पड़ेगा!

calender

New Delhi: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 नवंबर) को निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. सीजेआई (मुख्य न्यायाधीश) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 9 जजों की संविधान पीठ ने इस मसले पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया कि सरकार हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं बना सकती. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार को निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने और उसे पुनर्वितरित करने का अधिकार नहीं है, जैसा कि कुछ पुराने फैसलों में माना गया था.

सरकार को निजी संपत्ति पर कब्ज़ा नहीं करने का अधिकार

दरअसल यह मामला एक ऐतिहासिक विवाद से जुड़ा था, जिसमें पूछा गया था कि क्या संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत निजी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्तियां मानकर उनका वितरण किया जा सकता है. इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि सभी निजी संपत्तियां सामुदायिक संपत्ति के रूप में नहीं देखी जा सकतीं. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'आज के आर्थिक ढांचे में निजी क्षेत्र का महत्व है और हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति का दर्जा नहीं दिया जा सकता.'

क्या निजी संपत्ति समुदाय की संपत्ति बन सकती है?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल वही निजी संपत्तियां सामुदायिक संसाधन मानी जा सकती हैं, जो जनहित में हों और जिनकी आवश्यकता समाज के लिए हो. कोर्ट ने पुराने फैसलों को खारिज करते हुए यह भी कहा कि 1960 और 70 के दशक में समाजवादी आर्थिक मॉडल को बढ़ावा दिया गया था लेकिन अब भारत ने 1990 के दशक से एक बाजार उन्मुख आर्थिक नीति अपनाई है. इसका मतलब यह है कि सरकार निजी संपत्तियों पर स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती, जब तक कि वह विशेष रूप से समाज की भलाई में न हो.

कोर्ट का तर्क और पुराने फैसलों पर टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में जस्टिस कृष्णा अय्यर के पुराने फैसले को पलटते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन के रूप में देखना एक विशेष प्रकार की आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था, जो अब बदल चुकी है. अब भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा अधिक उदारवादी और वैश्विक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की जा रही है.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा, 'किसी निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति कहा जा सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी निजी संपत्तियां अपने आप सामुदायिक संपत्ति बन जाएंगी. इसके लिए संपत्ति की स्थिति, सार्वजनिक हित में उसकी आवश्यकता और उसके योगदान का मूल्यांकन जरूरी होगा.'

महाराष्ट्र में कानून पर भी सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में प्राइवेट बिल्डिंग के अधिग्रहण से जुड़े संशोधन को भी चुनौती दी थी. महाराष्ट्र सरकार ने इस संशोधन को संविधान के अनुरूप बताया था, जबकि याचिकाकर्ता ने इसे भेदभावपूर्ण और निजी संपत्ति के उल्लंघन के रूप में पेश किया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष में अपना रुख रखा, लेकिन यह भी साफ किया कि निजी संपत्ति पर कब्ज़ा सिर्फ उन परिस्थितियों में किया जा सकता है, जब यह जनहित में हो.

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले ने यह साफ कर दिया कि सरकार को हर निजी संपत्ति पर अधिकार नहीं मिल सकता. हालांकि, कुछ परिस्थितियों में जब यह समाज की भलाई में हो, तो सरकार के पास ऐसे संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करने का अधिकार हो सकता है. इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि भारत की बदलती आर्थिक नीति के साथ निजी संपत्ति की स्थिति और उसके अधिकारों को लेकर अदालतों का दृष्टिकोण अब अधिक उदार और बाजार उन्मुख है. First Updated : Tuesday, 05 November 2024