'बुलडोजर जस्टिस' पर फिर बोला सुप्रीम कोर्ट, याद रखने लायक है SC की टिप्पणी

Supreme Court on Bulldozer Justice: गुरुवार को एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने देश में "बुलडोजर न्याय" की बढ़ती प्रवृत्ति पर एक बार फिर कड़ी टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि ऐसे विध्वंस के खतरे अकल्पनीय हैं. ध्यान रहे कि कानून सर्वोपरि है. यह टिप्पणी गुजरात के खेड़ा जिले में एक मकान के विध्वंस के प्रयास से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की गई.

JBT Desk
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Supreme Court on Bulldozer Justice: सुप्रीम कोर्ट ने एक महीने में दूसरी बार घरों पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई को गलत ठहराया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप उसकी संपत्ति को नष्ट करने का आधार नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने इस 'देश के कानूनों को नजरअंदाज करने' की तरह माना है. कोर्ट ने 'बुलडोजर कार्रवाई' की कड़ी आलोचना करते हुए इसे अवैध घोषित किया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि आपराधिक मामलों में संपत्ति को नष्ट करना कानूनी रूप से उचित नहीं है और इस तरह के मनमाने कार्यों को रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जरूरी हैं.

यह फैसला इस महीने की शुरुआत में उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में इसी तरह की कार्रवाइयों की आलोचना के बाद आया है. इससे कुछ दिन पहले ही मध्य प्रदेश के एक मामले में कोर्ट ने कमेंट करते हुए इस तरह की कार्रवाई को गलत बताया था. अब एक बार फिर से फैसला आने पर चर्चा होने लगी है.

किस मामले पर आया कमेंट

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, सुधांशु धूलिया और एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि अदालत ऐसे कार्यों को नजरअंदाज नहीं कर सकती जो "देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने" जैसे प्रतीत होते हैं. मामला खेड़ा जिले के एक पारिवारिक घर के विध्वंस से जुड़ा था, जहां एक परिवार के सदस्य पर आपराधिक घटना में शामिल होने का आरोप था.

परिवार को सजा देने का आरोप

याचिकाकर्ता जावेदअली महबूब मिया सैयद ने दावा किया कि काठलाल नगर पालिका ने उनके घर को गिराने का नोटिस 6 सितंबर को जारी किया था. जबकि, उनके भाई पर यौन उत्पीड़न और हमले का मामला 2 सितंबर को दर्ज किया गया था. याचिका में कहा गया कि घर का विध्वंस परिवार को अपराधी ठहराने का प्रयास था, जो कि उचित नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

गुरुवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी अपराध में संलिप्तता संपत्ति को गिराने का आधार नहीं हो सकता. एक ऐसे देश में जहां राज्य के कार्य कानून के शासन से संचालित होते हैं. परिवार के एक सदस्य द्वारा की गई गलती का परिणाम अन्य सदस्यों या उनके कानूनी रूप से निर्मित घर पर नहीं पड़ सकता. आरोपित अपराध को अदालत में कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से सिद्ध करना आवश्यक है. ऐसे विध्वंस को कानून की नजरअंदाजी के रूप में देखा जा सकता है.

विध्वंस पर रोक और जवाब तलब

पीठ ने विध्वंस पर रोक लगाते हुए संबंधित अधिकारियों से एक महीने के भीतर स्पष्टीकरण मांगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बीच याचिकाकर्ता की संपत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाए.

बुलडोजर न्याय के खिलाफ पिछले आदेश

हाल के दिनों में स्थानीय सरकारें और पुलिस अपराधियों या उनके परिवार की संपत्ति को बुलडोजर से गिराने की कार्रवाई कर रही हैं, बिना किसी उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए. 2 सितंबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत में विध्वंस की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की बात कही थी. न्यायमूर्ति भूषण आर. गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने सवाल किया कि किसी व्यक्ति के आरोपित होने के कारण उसके घर को कैसे गिराया जा सकता है.

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13 September 2024, 09:35 AM IST

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