Supreme Court: समलैंगिक विवाह मामले पर आज की सुनवाई खत्म, केंद्र ने राज्यों को पक्ष बनाने का किया आग्रह

समलैंगिक विवाह पर केंद्र सरकार ने कहा कि इस मामले पर राज्य और और केंद्र शासित प्रदेशों से भी राय लेने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में कल भी इस मामले पर सुनवाई होगी।

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समलैंगिक विवाह मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई खत्म हो गई है। अब कल फिर इस मामले में सुनवाई की जाएगी। केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। इसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में एक पक्ष बनाने का आग्रह किया है। 

कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि समलैंगिक विवाह मामले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की राय लेनी चाहिए। याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि केंद्रीय कानून को चुनौती दी गई है। इस मामले में राज्यों को नोटिस जारी करना जरूरी नहीं है। वहीं केंद्र ने इस मामले में सभी राज्यों को चिट्ठी लिख कर दस दिन के भीतर अपनी राय बताने के लिए कहा है।

बुधवार को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को एक पक्ष बनाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामें में कहा कि 18 अप्रैल को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को एक पत्र लिखकर इस मामले में दायर याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर टिप्पणी करने और अपनी राय रखने के लिए आमंत्रित किया है। 

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से आग्रह करते हुए कहा कि राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को इस मामले में सुनवाई का पक्ष बनाया जाए। बता दें कि न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल हैं। कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई हुई है। वहीं कल भी इस मामले पर सुनवाई जारी रहेंगी।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या सभी अभिव्यक्तियों में अपनी लैंगिक पहचान को व्यक्त करने का अधिकार शामिल है। अधिकार के इस आधार पर सवाल उठाया जा रहा है कि विषमलैंगिकों के पास जो अधिकार हैं, गैर-विषमलैंगिक जोड़ों के पास नहीं हैं।' सिंघवी ने कहा कि 'केंद्र सरकार ने विवाह को पुरुष और महिला के बीच विवाह के रूप में परिभाषित किया है, जो गलत है।'  First Updated : Wednesday, 19 April 2023