What is Electoral Bond: क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बताया असंवैधानिक

Supreme Court : साल 2018 में केंद्र सरकार ने एक बांड योजना की शुरुआत की थी, इसे राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत पेश किया गया था. साथ ही चुनावी बांड की वैधता पर चुनौती दी गई थी. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है.

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट चुनावी बांड पर फैसला पर अपना फैसला दिया है. शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि चुनावी बांड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और सरकार से सवाल पूछना जनता का कर्तव्य है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ से पिछले साल 31 अक्टूबर से नियमित रूप से सुनवाई कर रही है, इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूंड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने की है.

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड, कब हुई इसकी घोषणा

भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा साल 2017 में की थी, जिसके बाद 29 जनवरी साल 2018 में इस योजना को लागू किया था, इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक जरिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी की राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है. इस इलेक्टोरल बॉन्ड को कोई भी खरीद सकता है जिसका बैंक में खाता खुला हो.

1 लाख तक बांड को खरीदा जा सकता है

राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में देखा गया था. चुनावी बांड स्टेट बैंक की कुछ चुनिंगा शाखाओं में मिलते हैं कोई भी नागरिक, कंपनी संस्था इस बांड को खरीद सकती है. ये बांड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं कोई भी व्यक्ति जिस पार्टी को चंदा देना चाहता है वह ये चुनावी बांड खरीदकर राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं खास बात ये कि बांड में चंदा देने वाले को अपना नाम नहीं लिखना पड़ता है.

किस पार्टी को मिलेगा चंदा?

इन बांड को केवल वही राजनीतिक दल प्राप्त कर सकता है जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों. First Updated : Thursday, 15 February 2024