संविधान का मजाक नहीं सहेंगे- सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री और अध्यक्ष को भड़ी सभा में लताड़ा
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को संविधान का मजाक उड़ाने के लिए कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि अगर दलबदल विरोधी कानून का उल्लंघन होगा तो हम चुप नहीं बैठेंगे. मुख्यमंत्री के बयान पर भी आपत्ति जताते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसा कहकर उन्होंने संविधान की 'दसवीं अनुसूची' का अपमान किया है. कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष से पूछा कि अब तक अयोग्यता पर क्यों फैसला नहीं लिया गया. इस पूरे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख साफ है – संविधान का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं होगा. जानें पूरी कहानी में और क्या हुआ.

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है, जिसमें उन्होंने विधानसभा में यह कहा था कि राज्य में कोई उपचुनाव नहीं होंगे. कोर्ट ने कहा कि यदि संविधान का मजाक उड़ाया जाएगा तो सुप्रीम कोर्ट चुप नहीं बैठेगा और इसे बर्दाश्त नहीं करेगा. खासतौर से, कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई कि मुख्यमंत्री ने दलबदल से जुड़ी संविधान की 'दसवीं अनुसूची' का अपमान किया है.
तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष पर सुप्रीम कोर्ट की नजर
यह मामला तब उठाया गया जब सुप्रीम कोर्ट तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष की कार्यवाही पर सवाल उठा रहा था, खासकर उन विधायकों के मामले में जिन्होंने अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थामा था. अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष से यह पूछा कि आखिर उन्होंने 10 महीने तक इन विधायकों की अयोग्यता पर फैसला क्यों नहीं लिया. कोर्ट ने कहा कि संविधान के प्रावधानों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से अदालत को चुप नहीं रहना चाहिए, खासकर जब यह दलबदल कानून से जुड़ा हो.
मुख्यमंत्री के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के विधानसभा में दिए गए बयान पर भी कड़ा रुख अपनाया. जस्टिस बी आर गवई ने कहा, टअगर यह बात सदन में कही गई है, तो मुख्यमंत्री संविधान की दसवीं अनुसूची का मजाक उड़ा रहे हैं." संविधान की दसवीं अनुसूची दल-बदल के मामलों से जुड़ी है, और इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी विधायक अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में न जा सके.
कोर्ट ने दिया संविधान का रक्षक होने का संदेश
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने विधानसभा अध्यक्ष से यह सवाल किया कि अगर वह कोई कार्रवाई नहीं करते, तो क्या अदालतें संविधान की रक्षा में अपनी जिम्मेदारी निभाने में सक्षम नहीं होंगी. अदालत ने यह भी कहा कि संविधान को किसी भी हालत में कमजोर नहीं होने दिया जाएगा और इसे लागू करना उनका कर्तव्य है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर की दलील पर जताई हैरानी
सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की उस दलील पर भी हैरानी जताई, जिसमें उन्होंने कहा था कि अदालत संविधान के तहत स्पीकर के फैसले पर कोई समय सीमा नहीं तय कर सकती. रोहतगी ने यह भी कहा था कि स्पीकर के निर्णय पर न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन कोर्ट ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की.
सुप्रीम कोर्ट की चिंता: संविधान की अवहेलना नहीं होगी सहन
इस सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि संविधान की अवहेलना किसी भी सूरत में नहीं की जा सकती. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी राज्य के विधानसभा अध्यक्ष संविधान के अनुरूप कार्रवाई नहीं करते हैं, तो अदालत का दायित्व बनता है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करें.
आगे क्या होगा?
यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, और तीन अप्रैल को इस पर और दलीलें सुनवाई के लिए जारी रहेंगी. कोर्ट ने अब तक यह स्पष्ट कर दिया है कि संविधान की रक्षा करना उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी है और अगर किसी भी स्तर पर इसकी अवहेलना होती है, तो वह बर्दाश्त नहीं करेगा.