NFHS-5: देश में 50 फीसदी तक की गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के लक्षण पाए जा रहे हैं. दरअसल इस बीमारी में खून की कमी से महिलाएं पीड़ित होती है, इस परेशानी में न सिर्फ मां बल्कि पेट में पल रहे बच्चे दोनों पर इसका बुरा प्रभाव देखने को मिलता है. वहीं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के अनुसार देश में 52.2 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया के लक्षण से पीड़ित हैं.
जर्नल साइंटिफिक की रिपोर्ट्स में बताया गया है कि, अगर 15-49 साल की उम्र के मध्य सभी महिलाओं को देखा जाए तो साल 2015-2016 में किए सर्वेक्षण में इस आयु-समूह की 53.1% महिलाएं एनीमिया से ग्रसित थी. जबकि साल 2019-2021 में इसमें 4 % की वृद्धि दर्ज की गई है. वहीं इसके लिए खान-पान में पोषण की कमी और अन्य कारण इसमें शामिल हैं. बता दें कि एनएफएचएस-4 को देखा जाए तो यह आंकड़ा 50.4 फीसदी था. साथ ही वर्ष 2019-2021 के बीच शहरी इलाकों में रह रहे 45.7 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं. इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या 54.3 फीसदी बताई गई थी.
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि, ग्रामीण क्षेत्रों के मुताबिक शहरों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के लक्षण 9.4 फीसदी कम होती है. सामाजिक-आर्थिक हालात भी इस बीमारी को बढ़ाने में अधिक मदद करती है. जहां समृद्ध वर्ग की तुलना में गरीब घर की गर्भवती महिलाओं को एनीमिया से प्रभावित होने का खतरा 34.2% अधिक हैं. इसी प्रकार अशिक्षित गर्भवती महिलाओं में 37% अधिक इसकी संभावना बनती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एनीमिया से ग्रसित लोगों में खून में पाए जाने वाले लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है. जिसके कारण कमजोरी, चक्कर आना, थकान, सांस लेने की समस्या पैदा होनी शुरू हो जाती है. इतना ही नहीं इस समस्या से परेशान लोगों को जान जाने का खतरा भी बना रहता है. First Updated : Friday, 29 December 2023