New Delhi: खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह और कश्मीरी नेता शेख अब्दुल रशीद को लोकसभा सांसद के तौर पर शुक्रवार को शपथ दिलाई गई. इसके लिए संसद भवन के अंदर और बाहर कड़ी सुरक्षा की गई थी. अमृतपाल को शपथ दिलाने के लिए असम के डिब्रूगढ़ जेल से दिल्ली लाया गया. इसके लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. लोकसभा सांसद के तौर पर शपथ लेने के लिए कोर्ट ने अमृतपाल सिंह को 4 दिन की पैरोल दी है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अमृतपाल संग कश्मीरी नेता शेख अब्दुल रशीद ने भी सासंद सदस्य के रूप में शपथ ली. रशीद गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम के तहत दर्ज आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है.
1-अमृतपाल सिंह राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत दर्ज मामले में असम के डिब्रूगढ़ की जेल में कैद है. सुरक्षाकर्मियों ने शुक्रवार सुबह संसद परिसर लाए. लोकसभा के एक बुलेटिन में कहा गया कि रशीद ने संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष के सभागार में कश्मीरी, जबकि अमृतपाल ने पंजाबी में शपथ ली.
2-अमृतपाल और रशीद ने हाल ही में जेल में रहते हुए पंजाब के खडूर साहिब और जम्मू-कश्मीर के बारामूला से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव जीता था. दोनों विजयी उम्मीदवारों के साथ 24 और 25 जून को 18वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ नहीं ले सके थे.
3-रशीद को शपथ लेने के लिए 2 घंटे की हिरासती परोल दी गई थी, जिसमें तिहाड़ जेल से संसद भवन तक की यात्रा का समय शामिल नहीं था. अमृतपाल को असम से दिल्ली आने जाने के मद्देनजर 4 दिन की हिरासत पैरोल दी गई थी, जो 5 जुलाई से शुरू हुई.
भारत में आज सरपंच से लेकर राष्ट्रपति पद तक हर किसी को पद की गरिमा, ईमानदारी व निष्पक्षता बनाए रखने के साथ ही देश की संप्रभुता और अखंडता बनाए रखने की शपथ दिलाई जाती है. सभी सांसद पद की गरिमा बनाए रखने की शपथ लेते हैं. इसमें ईमानदारी और निष्पक्षता से काम करने की प्रतिज्ञा होती है तो हर हाल में देश की संप्रभुता व अखंडता बनाए रखने का प्रण भी होता है
अगर कोई सांसद शपथ नहीं लेता है तो वह किसी भी सरकारी कामकाज में हिस्सा नहीं ले सकता. न तो उसे सदन में सीट दी जाती है और न ही सदन में बोलने दिया जाता है. सीधा सा मतलब यह कि वह चुन कर तो जरूर आए हैं पर शपथ नहीं लेने पर वह सांसद नहीं माने जाएंगे और उनको वेतन और सुविधाएं भी नहीं दी जाएगी.
सांसद ही नहीं, संवैधानिक पद के लिए शपथ लेने वाला हर कोई भी व्यक्ति अगर अपने पद की गोपनीयता भंग करते हैं तो इसे शपथ का उल्लंघन माना जाता है. इसके बाद उन्हें पद से हटाने के लिए महाभियोग चलाया जाता है. वैसे तो इस प्रक्रिया में कोई केस दर्ज नहीं होता, मगर गबन का मामला बने तो आपराधिक केस भी दर्ज हो सकता है. First Updated : Saturday, 06 July 2024