नॉलेज : लाला लाजपत राय ने जिस बैंक की रखी नींव वो आज है देश का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक
Lala Lajpat Rai : पंजाब में स्वाधीनता आंदोलन की अगुवाई करने वाले लाला लाजपत राय का मानना था कि केवल लड़ाई से स्वाधीनता नहीं मिलेगी. इसके लिए स्वावलंबन भी जरूरी है. इसी दिशा में उन्होंने अपने साथियों के साथ एक बैंक की शुरुआत की.
भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए लाखों वीरों ने लड़ाई लड़ी और कुर्बानियां दी थीं. वहीं भारत की समृद्धि और विकास का सपना देखने वाले लोगों की भी कमी नहीं थी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जहां अहिंसक तरीके से देश को आजादी दिलाने चाहते थे वहीं कुछ नेता ऐसे भी थे जो अंग्रेजों को लड़कर भगाना चाहते थे. इन्हीं में एक लाल लाजपत राय थे, जिन्हें गरम दल का नेता माना जाता था. तब देश की आजादी की लड़ाई की अगुवाई कर रही कांग्रेस में गरम दल के तीन नेताओं लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक की तिगड़ी लाल, बाल, पाल के रूप में मशहूर थी. इनमें से लाला लाजपत राय वह शख्स थे, जिन्होंने एक बैंक की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी. आइए उनकी जयंती पर आज बैंक की कहानी के बारे में जानते हैं.
पंजाब में हुआ था लाला लाजपत राय का जन्म
पंजाब में स्वाधीनता आंदोलन की अगुवाई करने वाले लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के फिरोजपुर में हुआ था. इनके पिता का नाम मुंशी राधा कृष्ण आजाद था. वह उर्दू और फारसी के विद्वान थे, जबकि माताजी गुलाब देवी घरेलू धार्मिक महिला थीं. बचपन से ही लाला जी को लेखन और भाषण पसंद था. लाला जी ने कानून की पढ़ाई पूरी कर हरियाणा में वकालत भी की. स्वाधीनता अंदोलन से जुड़े तो पंजाब केसरी और शेर-ए-पंजाब जैसे खिताबों से नवाजा गया.
स्वावलंबन पर था लाला जी का जोर
साल 1897 में देश में अकाल पड़ा था. उस वक्त अंग्रेजों ने भारत की जनता के लिए कुछ नहीं किया पर लाला जी तन, मन और धन से पीड़ितों की मदद के लिए जुटे रहे. 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का बंटवारा किया तो लाला जी ने बिपिनचंद्र पाल और सुरेंद्रनाथ बनर्जी के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के नाक में दम कर दिया. स्वावलंबन की अपनी मुहिम के तहत ब्रिटेन में बने सामानों के बहिष्कार का आह्वान कर दिया. बस फिर क्या था, देश की जनता उनके और भी करीब होती चली गई.
ऐसे हुआ बैंक की स्थापना का आगाज
स्वावलंबन की इसी कड़ी में राय मूल राज ने एक बार लाला जी से अनुरोध किया कि देश में अपना एक बैंक होना चाहिए. इस पर लाला जी ने गिने-चुने दोस्तों को इसके लिए एक चिट्ठी लिखी, जिसे भारत में स्वदेशी ज्वाइंट स्टाक बैंक की स्थापना की दिशा में पहला कदम माना जाता है. इस बैंक की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हो गई और 19 मई 1894 को इंडियन कंपनी एक्ट 1882 के अधिनियम 6 के तहत एक बैंक की स्थापना भी हो गई, जिसे नाम दिया गया पंजाब नेशनल बैंक. यह आज देश का दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रीयकृत बैंक है.
लाहौर के अनारकली बाजार से हुई शुरुआत
बैंक की स्थापना हो गई थी पर इसका कामकाज शुरू होना बाकी थी. तब लाला लाजपत राय, दयाल सिंह मजीठिया, लाला लालचंद, लाला हरकिशन लाल, काली प्रोसन्ना, प्रभु दयाल और लाला ढोलना दास बैंक के प्रबंधन से जुड़े. इसका पहला अध्यक्ष दयाल सिंह मजीठिया को बनाया गया. लाहौर में उन्हीं के निवास पर 23 मई 1894 को बैठक हुई. इसके बाद लाहौर के अनारकली बाजार में एक घर किराए पर लिया गया और बैसाखी से ठीक एक दिन पहले 12 अप्रैल 1895 को बैंक ने कामकाज शुरू कर दिया. तब इस बैंक के 14 शेयर धारक और 7 निदेशक थे. इन लोगों ने फैसला किया कि अपने पास कम से कम शेयर रखेंगे. इस बैंक का असली मालिकाना आम शेयरधारकों के पास रहेगा.