साल 2024 की पहली सुबह हो चुकी है. भारत समेत दुनिया ने अपने-अपने अंदाज में नये साल का स्वागत किया है. नए साल का जश्न पारंपरिक तौर पर 31 दिसंबर की मध्य रात्रि और 1 जनवरी को नए साल की शुरुआत माना जाता है. लेकिन, यह परंपरा हमेशा से नहीं रही है. क्या आप जानते हैं कि पहले नए साल की शुरुआत जनवरी महीने से नहीं होती थी. यही नहीं, पहले कैलेंडर में अब की तरह 12 महीने भी नहीं होते थे. पहले एक कैलेंडर ईयर में सिर्फ 10 महीने ही होते थे. आज हम जानते हैं कि पहे कैलेंर में कौन से दो महीने नहीं होते थे और बाद में वो दो महीने कैसे जुड़ गए. इसके अलावा हर महीने के नाम की भी अपनी अलग कहानी है. क्या आपके दिमाग में कभी यह बात आई है कि अंग्रेजी कैलेंडर में महीनों के नाम किस आधार पर रखे गए.
अंग्रेजी कैलेंडर में जनवरी पहला महीना है, लेकिन एक समय यह कैलेंडर में पहला महीना नहीं होता था. प्राचीन रोमन लोग पूरे साल युद्ध लड़ते रहते थे, लेकिन, सर्दियों में दो महीने पूरी तरह से आराम करते थे. इसके बाद मार्च में फिर युद्ध शुरू हो जाते थे. इसीलिए मार्च को पहला महीना मानते हुए रोमन युद्ध के देवता मार्स के नाम पर महीने का नाम मार्च रखा गया. दूसरे शब्दों में कहें तो पहले साल की शुरुआत जनवरी नहीं मार्च के महीने से होती थी.
गैगोरियन या अंग्रेजी कैलेंडर में एक महाना है अप्रैल. इस महीने के नाम पड़ने की अपनी कहानी है. कहा जाता है कि लैटिन भाषा में ‘दूसरे’के लिए प्रयोग किए जाने वाले शब्द के आधार पर अप्रैल का नाम रखा गया. ऐसे में अप्रैल साल का दूसरा महीना बन गया. अप्रैल को ‘Aperire’ शब्द से लिया गया है, जिसका मतलब है खिलना. आपने देखा होगा कि इसी मौसम में कलियां खिलती हैं. मई महीने को अंग्रेजी में ‘मे’ कहा जाता है. इस महीने का नाम रोमन देवी ‘मेया’ के नाम पर रखा गया था. मेया को पौधे और फसल उगाने वाली देवी माना जाता है.
रोमन काल में जून के महीने को शादी के लिए सबसे अच्छा माना जाता था. इसलिए इस महीने का नाम रोमन देवी और शादियों की साक्षी माने जाने वाली देवी ‘जूनो’ के नाम पर रखा गया था. अगर आपने रोम के राजा जूलियस सीजर की कहानी पढ़ी हो तो पता होगा. 44 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर के नाम पर एक महीने का नाम जुलाई रखा गया. जूलियस सीजर के नाम पर महीने का नाम रखने से पहले इस माह को ‘क्विन्टिलिस’ कहा जाता था. जिसका मतलब होता है ‘पांचवा’.
राजा ऑगस्टस सीजर के नाम पर 8 ईसा पूर्व में महीने का नाम ‘अगस्त’ रखा गया. इससे पहले साल के छठे महीने को ‘सेक्स्टिलिया’ कहा जाता था, जिसका मतलब ‘छठा’ होता है. लैटिन भाषा में सेप्टम का मतलब सातवां होता है. इसलिए इस महीने का नाम ‘सेप्टेम्बर’ रखा गया. रोमन कैलेंडर में यह साल का सातवां महीना था. वहीं, लैटिन भाषा में ऑक्टा का मतलब आठ होता है. इसीलिए रोमन कैलेंडर में साल के आठवें महीने का नाम अक्टूबर रखा गया था. इसी तरह नोव का मतलब नौवां होता है. इसलिए साल का नौवां महीना नवंबर कहलाया. रोमन कैलेंडर का 10वां और आखिरी महीना दिसंबर था. लैटिन भाषा के डेका का मतलब 10 ही होता है.
अभी तक तो हमने आपको 10 महीने के साल वाले कैलेंडर की कहानी सुनाई. लेकिन अब सवाल यह उठता है कि जनवरी और फरवरी महीना कैलेंडर में कब जोड़ा गया? आखिर इन दो महीनों की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल, 690 ईसा पूर्व में पोम्पिलियस ने सोचा कि सर्दियों के खत्म होने और मार्च महीने के शुरू होने के बीच में मनाए जाने वाले उत्सव ‘फब्रुआ’ को साल के महीने के तौर पर पहचान मिलनी चाहिए. इसलिए पोम्पिलियस ने इस उत्सव के आधार पर उस महीने का नाम ‘फरवरी’ रख दिया. मौजूदा कैलेंडर का पहला महीना रोमन कैलेंडर में सबसे बाद में जोड़ा गया. इसे साल के खत्म होने और नए साल के शुरू होने के आधार पर जोड़ा गया. इस महीने का नाम जनवरी रखा गया. ये नाम जेनस नाम के भगवान पर आधारित था. जेनस अंत और शुरुआत के देवता माने जाते थे. इस रोचक कहानी को और भी विस्तार से पढ़ने के लिए आप https://www.britannica.com/science/Julian-calendar इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं. First Updated : Monday, 01 January 2024