प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 दिसंबर से दो दिवसीय कुवैत दौरे पर जा रहे हैं. यह पहला मौका होगा जब कोई पीएम 43 साल बाद इस अरब देश का दौरा करेंगे. विदेश मंत्रालय (MEA) ने शुक्रवार को बताया कि इस यात्रा से भारत और कुवैत के बीच द्विपक्षीय संबंधों का एक नया अध्याय शुरू होने की उम्मीद है. MEA के अनुसार, इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार और अन्य क्षेत्रों में साझेदारी को और मजबूत करने पर चर्चा होगी.
मालूम हो कि पीएम मोदी को यह न्योता कुवैत के अमीर शेख मशाल अल-अहमद अल-जाबेर अल-सबाह ने दिया है. प्रधानमंत्री अपने दौरे में कुवैत के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात करेंगे और वहां रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से भी संवाद करेंगे. गौरतलब है कि कुवैत में भारतीय समुदाय सबसे बड़ा प्रवासी समूह है.
अरब देशों की यात्रा को तवज्जो दे रहे हैं PM मोदी
बीते दस सालों में जहां एक तरफ पीएम मोदी ने अन्य पश्चिमी देशों के साथ कई महत्वपूर्ण दौरे किए हैं, तो उन्होंने मिडिल ईस्ट को भी खास तवज्जो दी है. वह लगातार अरब देशों में जाते रहे हैं और कुवैत के इस दौरे के साथ वह 14वीं बार किसी अरब देश में पहुंचेंगे. उनकी पिछली अरब यात्राओं पर नजर डालें तो वह अब तक सात बार संयुक्त अरब अमीरात, दो-दो बार कतर और सऊदी अरब और एक-एक बार ओमान और बहरीन जा चुके हैं.
मिडिल ईस्ट से रिश्ते मजबूत कर रहा है भारत
पीएम मोदी दुनिया के ग्लोबल विलेज बनने के दौर में न सिर्फ मिडिल ईस्ट के महत्व को तवज्जो दे रहे हैं, बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी की सत्ता के इस दौर में भारत मिडिल ईस्ट के साथ अपने रिश्ते भी मजबूत कर रहा है. इसके रिजल्ट के तौर पर देखा जा सकता है कि भारतीय विदेश नीति में मिडिल ईस्ट के अरब देश सबसे अहम रणनीतिक और कूटनीतिक प्राथमिकता के रूप में सामने आ रहे हैं. इस बात का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि अपने दस साल के कार्यकाल में पीएम रहे मनमोहन सिंह सिर्फ तीन बार मिडिल ईस्ट के अरब देशों के दौरों पर गए थे.
43 साल पहले इंदिरा गांधी ने की थी कुवैत यात्रा
1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कुवैत की ऐतिहासिक यात्रा की थी, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री की कुवैत की पहली यात्रा थी. इस यात्रा का उद्देश्य भारत और कुवैत के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना था. कुवैत भारत के लिए एक प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता रहा है, और दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में ऊर्जा क्षेत्र का विशेष महत्व है. बता दें कि भारत और कुवैत के बीच राजनयिक संबंध 1961 में स्थापित हुए थे, और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग इन संबंधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है.
भारत और कुवैत के बीच पुराने हैं व्यापारिक संबंध
भारत और कुवैत के बीच परस्पर सहयोगी संबंधों के इतिहास को खंगालते हैं तो सामने आता है कि ये संबंध कुवैत में तेल के अस्तित्व में आने से पहले से प्रगाढ़ रहा है. तेल की खोज से पहले कुवैत का भारत के साथ व्यापार खजूर और घोड़ों पर आधारित था. कुवैती नाविक शत्त-अल-अरब और भारत के पश्चिमी बंदरगाहों के बीच व्यापार के लिए सालाना यात्राएं करते थे. हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद घोड़ों का व्यापार खत्म हो गया और इसके बाद कुछ समय तक मोती और सागौन जैसी इमारती लकड़ियां इस व्यापारिक संबंध के केंद्र में रहे थे.
आर्थिक संबंध और निवेश
कुवैत की अर्थव्यवस्था तेल की खोज से पहले समुद्री गतिविधियों और व्यापार पर निर्भर थी. कुवैत जहाज निर्माण का एक प्रमुख केंद्र था और मोती मछली पकड़ने और मछली पकड़ना महत्वपूर्ण व्यावसायिक गतिविधियां थीं. 1961 तक भारतीय रुपया कुवैत में कानूनी मुद्रा थी. 2011-12 में, भारत और कुवैत के बीच द्विपक्षीय व्यापार $17.56 बिलियन था, जिसमें 44% की वृद्धि हुई. पेट्रोलियम इस व्यापार का बेस रहा है. 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार $13.8 बिलियन तक पहुंच गया, जो वार्षिक आधार पर 12.8% की वृद्धि दर्शाता है. भारतीय कंपनियां कुवैत के ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जबकि कुवैती कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं. First Updated : Saturday, 21 December 2024