'जो कई वर्षों से शत्रुता का भवन था, उसे इस्लाम का भवन बना दिया' – क्या सच में राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था?

16वीं सदी में भारत की सियासत उलझी हुई थी और इसी दौरान बाबर आया और खानवा का युद्ध हुआ. लेकिन क्या वाकई राणा सांगा ने उसे बुलाया था या फिर इसके पीछे कोई और साजिश थी? बाबर ने इसे 'जिहाद' क्यों कहा? इतिहासकार भी इस पर अलग-अलग राय रखते हैं. तो आखिर सच क्या है? जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर!

Aprajita
Edited By: Aprajita

Rana Sanga Controversy: 16वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत की राजनीति उथल-पुथल से भरी हुई थी. दिल्ली सल्तनत कमजोर पड़ रही थी और कई क्षेत्रीय शासक अपनी सत्ता को मजबूत करने में लगे थे. इसी दौरान, बाबर का आगमन और 1527 में खानवा का युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ों में से एक बन गया.

क्या राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था?

आज भी इतिहासकारों के बीच यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या मेवाड़ के शक्तिशाली राजा राणा सांगा ने बाबर को भारत आने के लिए न्योता दिया था. ज़्यादातर इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि बाबर को भारत लाने में सबसे बड़ी भूमिका दौलत खान लोदी ने निभाई थी. वह दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के खिलाफ था और उसने बाबर से मदद मांगी थी.

हालांकि, कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि राणा सांगा ने अप्रत्यक्ष रूप से बाबर से संपर्क किया होगा ताकि इब्राहिम लोदी को कमजोर किया जा सके. बाबर ने अपने संस्मरण 'बाबरनामा' में लिखा कि राणा सांगा ने पहले उसका समर्थन किया लेकिन बाद में उससे अलग हो गए.

दौलत खान लोदी और बाबर का गठजोड़

दौलत खान लोदी ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया था ताकि वह इब्राहिम लोदी को हटा सके. इतिहासकार सतीश चंद्रा लिखते हैं कि दौलत खान ने अपने पुत्र दिलावर खान को बाबर के पास भेजा और उसे इब्राहिम लोदी के खिलाफ सहायता का प्रस्ताव दिया. आर.सी. मजूमदार और ऐन डेविडसन भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि दौलत खान और इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खान, दोनों ने बाबर से मदद मांगी थी.

खानवा का युद्ध: जिहाद या सत्ता संघर्ष?

17 मार्च 1527 को बाबर और राणा सांगा के बीच खानवा का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया. बाबर ने इस युद्ध को 'जिहाद' घोषित किया और खुद को 'गाजी' (इस्लामिक योद्धा) कहा. उसने अपने सैनिकों को प्रेरित करने के लिए शराब छोड़ दी और इस युद्ध को धार्मिक रूप देने की कोशिश की. इतिहासकार आर.सी. मजूमदार लिखते हैं कि बाबर ने राजपूत सेना को 'काफिर' कहकर अपने सैनिकों को एकजुट किया.

लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह सच में जिहाद था? कई विशेषज्ञ मानते हैं कि बाबर ने यह रणनीति सिर्फ अपनी सेना का हौसला बढ़ाने के लिए अपनाई थी. असल में, यह युद्ध दो महाशक्तियों के बीच सत्ता संघर्ष था, जिसमें बाबर विजयी रहा और उसने अपने मुगल साम्राज्य की नींव मजबूत की.

बाबरनामा में राणा सांगा का उल्लेख

बाबर ने 'बाबरनामा' में राणा सांगा को एक शक्तिशाली योद्धा बताया है. वह लिखता है कि राणा सांगा ने रणथंभौर, सारंगपुर और चांदेरी जैसे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था. बाबर यह भी स्वीकार करता है कि राणा सांगा ने अपनी वीरता और तलवार के दम पर अपनी शक्ति बढ़ाई थी.

चांदेरी का युद्ध और उसका परिणाम

खानवा की हार के बाद भी राणा सांगा का प्रभाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था. 1528 में बाबर ने चांदेरी पर आक्रमण किया, जहां राणा सांगा के सेनापति मेदिनीराय ने वीरतापूर्वक संघर्ष किया. बाबर ने इस जीत को इस्लाम की विजय बताया और चांदेरी को अपने नियंत्रण में ले लिया.

राणा सांगा और बाबर की मंशा

राणा सांगा और बाबर दोनों ही अपने-अपने हितों के लिए लड़ रहे थे. जहां राणा सांगा एक शक्तिशाली राजपूत साम्राज्य की स्थापना करना चाहते थे, वहीं बाबर हिंदुस्तान में अपनी सत्ता जमाने आया था. इतिहास के इन पन्नों को पढ़कर यह साफ होता है कि खानवा का युद्ध सिर्फ धर्म का नहीं बल्कि सत्ता का भी संघर्ष था, जिसने भारतीय इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया.

calender
27 March 2025, 07:08 PM IST

जरूरी खबरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो