भारत के हर मंदिर में भक्तों के बीच भगवान का प्रसाद बांटा जाता है. कहीं मोदक, कहीं हलवा, तो कहीं 56 भोग. लेकिन तिरुपति का लड्डू सबसे खास है. यह लड्डू 308 साल पुराना है और इसे GI टैग भी मिल चुका है. लेकिन अब इस प्रसाद की गुणवत्ता पर सवाल उठा है. तो ऐसे में आइए जानते हैं इसके इतिहास मान्यता, रेसिपी, आकार, वजन आदि के बारे में.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया है कि पिछली वाईएसआरसीपी सरकार ने विश्व प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर, तिरुमाला को अपवित्र किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि मंदिर को अपवित्र करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है।
यह लड्डू, जिसे श्री वारी लड्डू के नाम से भी जाना जाता है, भगवान वेंकटेश्वर का प्रसाद है. मंदिर आने वाले हर भक्त को यह लड्डू भेंट में दिया जाता है. इसे बनाने में आटा, चीनी, घी, तेल, इलायची और सूखे मेवे का उपयोग किया जाता है. इसे लेने पर भक्त खुद को धन्य महसूस करते हैं.
श्री वारी लड्डू की एक रोचक कहानी है. एक बार, भगवान वेंकटेश्वर ने भक्तों की शादी के लिए धन इकट्ठा करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया. इस दौरान, एक महिला ने उन्हें चावल का आटा और गुड़ मिलाकर बनाई मिठाई दी. भगवान ने उस महिला को आश्वासन दिया कि उसे मंदिर में हमेशा भेंट मिलेगी. तभी से लड्डू अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई.
तिरुपति मंदिर में भगवान को चढ़ाया जाने वाला पहला लड्डू 2 अगस्त 1715 को भक्तों को दिया गया था. कल्याणम अयंगर को इस लड्डू को बनाने का श्रेय दिया जाता है. इस लड्डू का वजन लगभग 300 ग्राम होता है और इसकी कीमत करीब ₹25 होती है. कई बार इसे भक्तों को ₹10 में भी दिया जाता है.
त्योहारों के समय, तिरुपति के लड्डू की मांग बहुत बढ़ जाती है. खासकर ब्रह्मोत्सव के दौरान, इनकी बिक्री रिकॉर्ड तोड़ देती है. 2015 में, 1.8 मिलियन लड्डू बेचे गए, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
तिरुपति का लड्डू न केवल एक मिठाई है, बल्कि भक्ति और आस्था का प्रतीक है. इसे पाकर भक्तों को एक अद्भुत अनुभव मिलता है. यदि आप तिरुपति जाएं, तो इस विशेष लड्डू का अनुभव जरूर करें. First Updated : Friday, 20 September 2024