पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश नम आंखों से याद कर रहा है. 26 दिसंबर की रात करीब 10 बजे उनका एम्स में निधन हो गया. इस बीच उनसे जुड़ा एक ऐसा किस्सा बताते हैं, जो बहुत ही कम लोगों को पता होगा. वह फोन कॉल, जिसने सिर्फ देश की तस्वीर ही नहीं बल्कि मनमोहन सिंह की जिंदगी भी बदलकर रख दी. यह किस्सा है जून 1991 का. मनमोहन सिंह सो रहे थे. वह नीदरलैंड्स से एक सम्मेलन में भाग लेकर लौटे थे और काफी थके हुए थे. तभी डॉ मनमोहन सिंह के दामाद विजय तनखा के फोन पर एक घंटी बजी.
यह फोन किया था उस वक्त के पीएम नरसिम्हा राव के सहयोगी पीसी एलेक्जेंडर ने. एलेक्जेंर ने विजय तनखा से कहा कि कृपया मनमोहन सिंह को जगा दें. इस फोन कॉल के कुछ ही घंटों बाद मनमोहन सिंह और एलेक्जेंडर की मुलाकात हुई. उन्होंने डॉ. सिंह को नरसिम्हा राव की उनको वित्त मंत्री नियुक्त करने की योजना के बारे में बताया. उस समय मनमोहन सिंह यूजीसी अध्यक्ष थे. उनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं था. इसीलिए उन्होंने एलेक्जेंडर को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन नरसिम्हा राव उनको लेकर बहुत गंभीर थे.
खराब थी देश की आर्थिक स्थिति
1991 में जब नरसिम्हा राव पीएम बने तो उन्हें वित्त मंत्रालय के लिए एक काबिल शख्स की जरूरत थी. दो दिन पहले ही कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने नरसिम्हा राव को एक नोट भेजा था, जिसमें देश की आर्थिक स्थिति खराब होने की बात कही गई थी.
पीसी अलेक्जेंडर ने सुझाया नाम
पीसी अलेक्जेंडर उस वक्त नरसिम्हा राव के सलाहकार थे. नरसिम्हा राव ने उनसे कहा कि वित्त मंत्री के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के व्यक्ति की जरूरत है. अलेक्जेंडर ने उन्हें आरबीआई के पूर्व गवर्नर आईजी पटेल का नाम सुझाया, लेकिन मां के बीमार होने के चलते उन्होंने इनकार कर दिया. फिर अलेक्जेंडर ने मनमोहन सिंह का नाम सुझाया.
मनमोहन सिंह ने अपनी बेटी दमन सिंह की किताब 'स्ट्रिक्टली पर्सनल, मनमोहन एंड गुरशरण' में कहा है, 21 जून को वह अपने यूजीसी कार्यालय में थे. उन्हें घर जाने, कपड़े पहनने और शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए कहा गया था. उन्होंने कहा, मुझे पद की शपथ लेने के लिए तैयार नई टीम के सदस्य के रूप में देखकर सभी आश्चर्यचकित थे. मेरा पोर्टफोलियो बाद में आवंटित किया गया था, लेकिन नरसिंह राव जी ने मुझे सीधे बताया कि मैं वित्त मंत्री बनने जा रहा हूं.
...अगर हमारे हाथ असफलता लगती है तो आपको जाना पड़ेगा
विनय सीतापति ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव पर एक किताब लिखी. अपनी किताब हॉफ लॉयन में उन्होंने लिखा है कि शपथ ग्रहण समारोह से पहले नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह से कहा कि अगर हम सफल होते हैं तो हम दोनों को इसका श्रेय मिलेगा लेकिन अगर हमारे हाथ असफलता लगती है तो आपको जाना पड़ेगा.” सीतापति बताते हैं कि 1991 के बजट से दो हफ़्ते पहले जब मनमोहन सिंह बजट का मसौदा लेकर नरसिम्हा राव के पास गए तो उन्होंने उसे सिरे से खारिज कर दिया. उनके मुंह से निकला, “अगर मुझे यही चाहिए था तो मैंने आपको क्यों चुना?”
वित्त मंत्री के रूप में शुरू हुआ राजनीतिक सफर
वित्त मंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद मनमोहन सिंह का राजनीतिक सफर शुरू हुआ. वह 1991 में असम से राज्यसभा सदस्य बने. वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल 1991 से 1996 तक का था. वित्ती मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह आर्थिक उदारीकरण के अगुआ बने. लाइसेंसी राज खत्म किया, विदेशी निवेश बढ़ा और नौकरियां आईं. इसके बाद मनमोहन सिंह 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता रहे और फिर 2004 से 2014 तक देश के पीएम रहे.
First Updated : Friday, 27 December 2024