भूख से तड़पकर मर गई लालकिले की राजकुमारी, शाही रुतबे का ऐसे हुआ अंत
मिर्जा बख्त बहादुर की बेटी गुलबानो की कहानी ढहते मुगल साम्राज्य की सबसे दर्दनाक कहानियों में से एक है. कभी शाही ठाठ में पली गुलबानो के अंतिम दिन बेहद कष्टदायक रहे. उसके पास ओढ़ने के लिए सिर्फ एक फटा हुआ कंबल था और खाने को कुछ नहीं था. भूख, तन्हाई और बेबसी ने उसे तोड़ दिया, और अंत में उसने दम तोड़ दिया. यह कहानी मुगलिया सल्तनत के पतन की कहानी है.

मुगल सल्तनत के दौर में लालकिले की आलीशान दीवारों के भीतर एक ऐसी शहजादी भी रही, जो कभी शाही परिवार की लाडली मानी जाती थी. उसका नाम था ज़ीनत महल या कुछ इतिहासकारों के अनुसार, बेगम ज़ीनत-बहादुर शाह ज़फर की बेहद प्रिय और चहेती शहजादी. जीवन के शुरुआती वर्षों में उन्होंने शाही ठाठ-बाट, इज्जत और दौलत के साये में समय बिताया. वह न सिर्फ़ खूबसूरती बल्कि बुद्धिमत्ता और कला में भी निपुण मानी जाती थीं.
1857 की क्रांति ने ना केवल मुगलिया तख्त को हिला दिया, बल्कि शाही परिवार की किस्मत भी पूरी तरह बदल दी. बहादुर शाह ज़फर को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया और दिल्ली पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया. इसके साथ ही शाही खानदान का वैभव भी लुट गया. जिन महलों में पहले नौकर-चाकर की भीड़ होती थी, वहां अब सन्नाटा छा गया.
भूख और तन्हाई से हुई मौत
अंग्रेजों ने बहादुर शाह ज़फर के परिवार के कई सदस्यों को या तो मार दिया या जेल में डाल दिया. ज़ीनत महल को भी धीरे-धीरे शाही सुविधाओं से वंचित कर दिया गया. जिनके लिए कभी दस्तरख्वान पर सैकड़ों पकवान सजते थे, उन्हें अब दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी. कहा जाता है कि एक समय ऐसा आया जब ज़ीनत महल भूख से तड़पने लगीं और आखिरकार तिल-तिल कर दम तोड़ दिया.
इतिहास में दर्ज है यह कड़वी हकीकत
लालकिले की चमक के पीछे छिपी इन कहानियों को इतिहास भले ज्यादा नहीं गाता, लेकिन यह सच्चाई है कि एक दौर की सबसे लाडली मुगल शहजादी की मौत बेबसी और भूख की हालात में हुई. उनके अंतिम दिन इतने दर्दनाक थे कि सुनने वाला भी सिहर उठे. यह कहानी न सिर्फ एक शहजादी की है, बल्कि युग के अंत की है.