Explainer: बार काउंसिल की परीक्षा में टॉपर से SC की पहली महिला जज बनने की कहानी, जानें फातिमा बीवी से जुड़ी अहम बातें

Fathima Beevi Death: सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज रही फातिमा बीवी लैंगिक न्याय के लिए एक आदर्श मॉडल और महिला सशक्तिकरण की एक प्रतीक रही हैं क्योंकि उन्होंने कानूनी पेशे और अन्य क्षेत्रों में एक अलग ही छाप छोड़ी हैं.

Manoj Aarya
Edited By: Manoj Aarya

Fathima Beevi Death: सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज रही फातिमा बीवी का गुरुवार, 23 नवंबर को केरल के कोल्लम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वह 96 वर्ष की थीं. लैंगिक न्याय के लिए एक आदर्श मॉडल मानी जाने वाली फातिमा बीवी महिला सशक्तिकरण की एक प्रतीक रही हैं क्योंकि उन्होंने कानूनी पेशे और अन्य क्षेत्रों में एक अलग ही छाप छोड़ी हैं.

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने अपने शोक संदेश में कहा कि न्यायमूर्ति बीवी का जीवन केरल में महिला सशक्तिकरण के उल्लेखनीय अध्यायों में से एक था. उन्होंने आगे कहा, न्यायमूर्ति बीवी के कारण केरल ने देश को पहली महिला न्यायाधीश देने वाले राज्य के रूप में पहचान हासिल किया है.

'महिलाओं के लिए प्रेरणा है उनका जीवन'

विजयन ने कहा कि न्यायमूर्ति बीवी में जीवन की सभी बाधाओं को पार करने की अद्वितीय शक्ति थी और उनका जीवन पूरे समाज, विशेषकर महिलाओं के लिए प्रेरणा है. मुख्यमंत्री ने कहा, संवैधानिक मामलों में उनकी विद्वता तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान प्रदर्शित हुई थी.

तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप कर चुकी थीं काम

न्यायमूर्ति फातिमा बीवी साल 1997 से 2001 तक तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में भी काम किया था. अन्नवीटिल मीरा साहिब और खदीजा बीवी की आठ संतानों में वह सबसे बड़ी थीं. फातिमा बीवी के पिता पंजीकरण विभाग के एक सरकारी कर्मचारी थें. उनके पिता उस समय अपने बच्चों, विशेषकर अपनी छह बेटियों की पढ़ाई-लिखाई को पूरे दिल से समर्थन और प्रोत्साहन किया, जब मुस्लिम लड़कियां उच्च शिक्षा से दूर भागती थीं.

बीवी के रसायन विज्ञान में स्नातक होने के बाद, उनके पिता ही थी जिन्होंने अपनी बेटी को कानून का कोर्स करने के लिए राजी किया. उस वक्त फातिमा का सपना रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर करने का था, लेकिन साहिब तत्कालीन त्रावणकोर राज्य की पहली महिला न्यायिक अधिकारी अन्ना चांडी की कहानी से प्रेरित थें. उनके पिता ने तब कहा था कि रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर उन्हें शिक्षण करियर में ले जाएगा, लेकिन कानून उन्हें सीढ़ियाँ चढ़ने में मदद करेगा.

बार काउंसिल की परीक्षा में रचा इतिहास

फातिमा बीवी ने कानूनी पेशे के साथ-साथ न्यायपालिका के हर स्तर पर इतिहास रचा. 1949-50 में, जब उन्होंने कानून की छात्रा के रूप में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, तो वकील के रूप में नामांकित होने के लिए बार काउंसिल द्वारा एक परीक्षा पास करना अनिवार्य था. तब 1950 में बीवी बार काउंसिल से स्वर्ण पदक पाने वाली पहली महिला लॉ ग्रेजुएट बनीं और उस परीक्षा में टॉप की.

इसके बाद उन्होंने कोल्लम जिला अदालत में जूनियर वकील के रूप में दाखिला लिया. अदालत में हिजाब पहने एक मुस्लिम महिला ने मुस्लिम समुदाय के रूढ़िवादी तत्वों को परेशान कर दिया था. लेकिन बीवी कांच की छत को तोड़ने के लिए आगे बढ़ी. आठ साल के बाद, वह मुंसिफ के रूप में न्यायिक सेवा में शामिल हो गईं और फिर 1974 में जिला सत्र न्यायाधीश बन गईं. तत्कालीन सरकार द्वारा आयोजित एक प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से उन्हें मुंसिफ के रूप में चुना गया.

हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और राजभवन तक

बीवी को 1983 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और 1989 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था. न्यायमूर्ति बीवी ने 1989 से 1992 तक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में एक शानदार रिकॉर्ड दर्ज किया था. एक न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति बीवी महत्वपूर्ण फैसलों में समानता के लिए खड़े रहे. 

वह उस पीठ का हिस्सा थीं जिसने 1991 में कर्नाटक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (नियुक्तियों का आरक्षण) अधिनियम के कुछ प्रावधानों से संबंधित मामले की सुनवाई की थी. उन्होंने उस संवैधानिक प्रावधान पर भी प्रकाश डाला जो प्रत्येक नागरिक को राज्य या उसके अधिकारी द्वारा मनमाने प्रयोग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है. शीर्ष अदालत से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य और तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया.

राजीव गांधी के हत्यारों की दया याचिका खारिज की थीं

तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में वह राजीव गांधी हत्या मामले में दोषी लोगों की दया याचिका खारिज करने के बाद सुर्खियों में आई थीं. 1999 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नलिनी, मुरुगन, संथन और पेरारिवलन को दी गई मौत की सजा की पुष्टि करने के बाद, तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में बीवी ने अगले साल नलिनी को दी गई मौत की सजा को इस आधार पर बदल दिया कि वह एक महिला थी और उसकी एक बेटी थी. हालांकि, उसने अन्य तीन आरोपियों की क्षमादान याचिका खारिज कर दी.

इन कारणों से विवादों में रही फातिमा बीवी

तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल एक नजरिए से घटनापूर्ण था. दरअसल, तमिलनाडु में साल 2001 के विधानसभा चुनावों में जे जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक ने बहुमत हासिल किया था, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें छह साल के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था. लेकिन बीवी ने जयललिता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया और उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए तैयार थीं.

बीवी का विचार था कि बहुमत दल ने उन्हें अन्नाद्रमुक के संसदीय दल का नेता चुना है. इसके बाद उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति को इस आधार पर राज्यपाल को वापस बुलाने की सिफारिश करने के बाद अपना इस्तीफा सौंप दिया कि राजभवन अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहा है.

''मैंने बंद दरवाज़ा खोल दिया था"

सालों बाद केरल वापस आने पर जस्टिस बीवी ने कहा, ''मैंने बंद दरवाज़ा खोल दिया था. मैं सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाला पहला व्यक्ति हूं. ऐसा इसलिए नहीं था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाली सक्षम महिलाओं की कोई कमी थी. सक्षम व्यक्ति भी थे, महिलाएँ भी. लेकिन ऐसा करना कार्यपालिका का काम था.”

2001 में जयललिता को सरकार का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित करने के अपने निर्णय के संबंध में, न्यायमूर्ति बीवी ने कहा, “उस समय, उन्हें बरी कर दिया गया था और कोई दोषसिद्धि प्रचलित नहीं थी. मैंने फैसले से पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से परामर्श किया था और वे सभी मुझसे सहमत थे.''

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23 November 2023, 06:57 PM IST

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