सियासत में पार्टियों के टूटने और निखरने की कहानी सब को हैरान कर देने वाली है. पार्टियों का इस तरह स टूटना यह पहली बार नहीं हुआ है इससे पहले भी कई बार राजनितिक दलों में बगावत देखी गई है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 चिराग पासवान ने बिना किसी गठबंधन के अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी. पार्टी पूरे राज्य की 143 सीटों पर चुनाव लड़ा. उसके बाद चिराद पासवान ने चुनाव के बाद भाजपा के नेतृत्व में राजग की सरकार बनाने के लिए समर्थन किया.
31 साल में सपा की राजनीतिक में किसी भी दल से गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. सपा ने सबसे पहले 1993 में बसपा के साथ गठबंधन किया था. जिसमें मुलायम सिंह और कांशीराम एक साथ आए थे. उस वक्त ये दोनों बीजेपी सत्ता को रोकना चाहते थे.
आपसी खटपट के कारण 32 जून 1995 में बसपा वे गठबंधन से किनारा कर लिया. 2003 में बीजेपी और बसपा का गठबंधन टूट गया. 2016 में अखिलेश ने शिवपाल के करीबी माने जाने वाले गायत्री प्रसाद प्रजापति और राजकिशोर सिंह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. 2022 के यूपी चुनाव में शिवपाल खुद भी सपा सिंबल पर जीतकर विधनासभा पहुंचे.
कांग्रेस पार्टी एक ऐसी पार्टी है जो कि कई बार टूट चुकी है. 1969 और 1978 में कांग्रेस पार्टी टूट गई थी उस वक्त इंधिरा गांधी के खिलाफ हो गए थे साथ ही ये भी कहा जाता है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी हटाने के लिए पार्टियां क दूसरे के खिलाफ हो गई थी.
कांग्रेस में अंदर दो धड़े बन चुके थे एक इंदिरा गांधी का और दूसरा इंदिरा विरोधियों का जिसे सिंडिकेट कहा जाता है. इसी बीच राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन का निधन हो गया. डॉक्टर हुसैन के निधन के बाद राष्ट्रपति चुनाव हुए इंदिरा वीवी गिरि को उम्मीदवार बनाने के पक्ष में थीं लेकिन पार्टी ने नीलम संजीव रेड्डी को मैदान में उतार दिया. First Updated : Saturday, 22 July 2023