जो पत्नी भरण-पोषण का अधिकार छोड़ देती है वो बाद में इसकी हकदार नहीं -इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट कहा कि पत्नी सहमति से तलाक के समय गुजारा भत्ता के साथ अपने सभी अधिकार छोड़ देती है, वो बाद में अपने पहले पति से गुजारा भत्ता नहीं ले सकती है.
यह फैसला सुनाया गया है जब अदालत ने गौतमबुद्ध नगर फैमिली कोर्ट के एक आदेश को गलत ठेहराया. इस केस में गौरव मेहता और अनामिका चोपड़ा नाम का एक जोड़ा शामिल था, जिनकी शादी 27 फरवरी 2004 को हुई थी और उनका अभिमन्यु नाम का एक बच्चा भी था. जिसके बाद विवादों होने को लेकर उन्होंने 16 जून, 2006 को नई दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर की. कार्यवाही के दौरान, पत्नी ने कहा कि वो अपने पति से भविष्य में कोई गुजारा भत्ता नहीं मांगेगी. 20 अगस्त 2007 को तलाक को अंतिम रूप दिया गया और वे तब से अलग रह रहे थे.
25 हजार रुपये का भुगतान
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अगर कोई महिला आपसी सहमति से तलाक के समय अपने पति से गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार छोड़ देती है, तो वह बाद में इसकी मांग नहीं कर सकती है, जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी द्वारा दायर याचिका में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक पति की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए यह राय दी, जिसमें पति को प्रतिवादी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के लिए हर महीने 25 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था.
पत्नी ने की याचिका दायर
बाद में पत्नी ने अपने बेटे की ओर से गौतमबुद्ध नगर फैमिली कोर्ट में धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें रुपये का मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया. बच्चे के लिए 15 हजार. इसके बाद, उसने रुपये की याचिका के अलावा, अपने पहले पति की आय से अपने लिए 25% गुजारा भत्ता भी मांगा. अंतरिम भरण-पोषण के लिए 50 हजार की मांग की.जिसके बाद अब कोर्ट ने इस मामले को लेकर फैसला सुनाया है.