इंसाफ की लड़ाई का अंत, लेकिन जकिया जाफरी की हिम्मत हमेशा ज़िंदा रहेगी!
गुजरात दंगों की गवाह और इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली जकिया जाफरी का 86 साल की उम्र में अहमदाबाद में निधन हो गया. वो 2002 के गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार में अपने पति, कांग्रेस सांसद अहसान जाफरी को खो चुकी थीं और तब से न्याय के लिए संघर्ष कर रही थीं. सालों तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने के बाद भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. सुप्रीम कोर्ट से झटका लगने के बावजूद, वो आखिरी वक्त तक गोधरा दंगों के पीड़ितों की आवाज़ बनी रहीं. उनका जाना सिर्फ एक शख्सियत का अंत नहीं, बल्कि इंसाफ की एक लंबी लड़ाई का अहम पड़ाव है. आखिर वो कौन थीं, क्यों उनकी कहानी इतनी खास है? जानिए पूरी खबर...

Witness of Godhra Riots: गुजरात दंगों के दौरान अपने पति को खोने वाली और उसके बाद सालों तक न्याय की लड़ाई लड़ने वाली जकिया जाफरी का शनिवार को अहमदाबाद में निधन हो गया. 86 साल की जकिया उम्र संबंधी परेशानियों से जूझ रही थीं. वह अपनी बेटी निशरीन के साथ अहमदाबाद में रह रही थीं. उनके बेटे तनवीर, जो सूरत में रहते हैं, ने उनके निधन की पुष्टि की. जकिया को उनके पति, दिवंगत कांग्रेस सांसद अहसान जाफरी के बगल में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा.
गुजरात दंगों की गवाह और इंसाफ की सशक्त आवाज़
27 फरवरी 2002 को गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद गुजरात में भड़के दंगों में हजारों लोगों की जान गई थी. 28 फरवरी को अहमदाबाद के चमनपुरा इलाके में स्थित गुलबर्ग सोसायटी में भी हिंसा भड़क उठी थी. इस हमले में 68 लोग मारे गए थे, जिनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी भी शामिल थे.
उस दिन जकिया जाफरी ने अपने पति को भीड़ के हवाले होने से बचाने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन वह असफल रहीं. अहसान जाफरी की दर्दनाक हत्या कर दी गई थी, और उनके साथ कई अन्य निर्दोष लोग भी मार दिए गए थे.
लेकिन जकिया ने हार नहीं मानी. वह इस भयानक हादसे की केवल गवाह बनकर नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने इसे इंसाफ तक पहुंचाने की ठानी. उन्होंने 2006 में गुजरात सरकार के खिलाफ़ कानूनी लड़ाई शुरू की और लगातार 16 साल तक इंसाफ के लिए संघर्ष किया.
सुप्रीम कोर्ट से झटका, लेकिन हिम्मत नहीं हारी
जकिया ने गुजरात दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शिकायत दर्ज करवाई थी. उनका आरोप था कि सरकार ने हिंसा को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. हालांकि, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी (विशेष जांच दल) की रिपोर्ट को बरकरार रखते हुए मोदी और अन्य नेताओं को क्लीन चिट दे दी और जकिया की याचिका को खारिज कर दिया.
हालांकि, इस फैसले के बावजूद जकिया का संघर्ष कमजोर नहीं पड़ा. वह 2023 तक हर साल गुलबर्ग सोसायटी के अपने घर के अवशेषों को देखने जाती रहीं, जो उनके लिए सिर्फ चार दीवारें नहीं, बल्कि उनकी यादों और संघर्ष की पहचान बन चुका था.
इंसाफ की लड़ाई का अंत, लेकिन यादें रहेंगी ज़िंदा
जकिया जाफरी सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उन सैकड़ों पीड़ितों के लिए लड़ीं, जिन्होंने 2002 के दंगों में अपनों को खोया. उनका संघर्ष उन्हें इतिहास में एक मजबूत महिला के रूप में दर्ज करेगा, जिसने अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाई, भले ही अदालत से उन्हें न्याय न मिला हो. आज वह हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनकी हिम्मत और उनका संघर्ष हमेशा याद रखा जाएगा.