Explainer : दुनिया में जितने देश उतने टाइम जोन…आसान भाषा में समझें यह कैसे तय होता है?
अगर आप 1 जनवरी की सुबह 1 बजे को टोक्यो से फ्लाइट लेकर लॉस एंजेलिस जाते हैं तो पहुंचने पर वहां का टाइम लगभग 10 घंटे पीछे हो जाएगा. दरअसल, लॉस एंजेलिस में उस समय 31 दिसंबर के शाम 5 बज रहे होंगे. यह कोई जादू नहीं है.
अगर आप 1 जनवरी की सुबह 1 बजे को टोक्यो से फ्लाइट लेकर लॉस एंजेलिस जाते हैं तो पहुंचने पर वहां का टाइम लगभग 10 घंटे पीछे हो जाएगा. दरअसल, लॉस एंजेलिस में उस समय 31 दिसंबर के शाम 5 बज रहे होंगे. यह कोई जादू नहीं है. इसकी वजह है टाइम जोन का अंतर. आज हम आपको टाइम जोन के बारे में बताने जा रहे हैं. अलग-अलग देशों में अलग- अलग टाइम जोन होता है.आखिर दुनिया का एक टाइम जोन क्यों नहीं है. इंसानों को टाइम ट्रैवल का कॉन्सेप्ट बहुत लुभाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि टाइम ट्रैवल सिर्फ फिल्मी कहानियों तक सीमित नहीं है. बल्कि आप भी एक तरह से समय का पहिया आगे या पीछे की ओर घूमा सकते हैं. इसी तरह का फायदा उठाकर कई लोगों ने 2024 का एक नहीं बल्कि दो बार स्वागत किया था.
सब देशों का अलग टाइम जोन क्यों है?
दरअसल धरती सौर मंडल में सूरज का चक्कर लगा रही है. साथ ही वो अपने एक्सिस पर भी 24 घंटे घूमती रहती है. सूरज का चक्कर लगाने से साल बदलता है. और एक्सिस पर घूमने से धरती पर दिन और रात होती है. मगर धरती का आकार इतना बड़ा है कि एक समय पर यहां एक जगह दिन, तो दूसरी जगह रात हो जाती है. देशों के अलग-अलग टाइम जोन होने की मूल वजह यही है. क्योंकि समय को सूर्य की पोजीशन के हिसाब से सेट किया जाता है. इसलिए अलग-अलग जगह अलग-अलग समय पर सूरज उगने से टाइम बदल जाता है.
टाइम जोन का फंडा कैसे शुरू हुआ?
पहले इस तरह की परेशानी नहीं होती थी, लेकिन बाद में रेल चलने लगी. जिससे इंसान कुछ घंटों में एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने लगे. इसी के साथ लोगों में समय को लेकर कन्फ्यूजन शुरू हो गया. यात्रियों की ट्रेन छूटने लगी और रेलवे भी ढंग से ट्रेनों को प्लान नहीं कर पा रहा था. उदाहरण के लिए कोई शख्स अगर सुबह 7 बजे अपने स्टेशन से निकलता. तो 2 घंटे के सफर के बाद, वो जहां पहुंचता वहां का समय केवल सुबह 8 ही होता. इस सब से काफी परेशानी होती थी.
किसने बनाया टाइम जोन?
टाइम जोन बनाने का श्रेय कनाडाई रेलवे के लिए एक इंजीनियर को जाता है. नाम था सर सैनफोर्ड फ्लेमिंग. अलग-अलग टाइम की परेशानी से एक बार इनकी भी ट्रेन छूट गई. तब इनको स्टैंडर्ड टाइम बनाने का विचार आया. उन्होंने सुझाव दिया कि दुनिया को 24 टाइम जोन में बांट दिया जाए. इन सब में 15 डिग्री लॉन्गिट्यूड की बराबर की दूरी होती. हर 15 डिग्री की दूरी में एक घंटे का अंतर होता. मगर अब भी यह दिक्कत थी कि 24 समय क्षेत्रों को बांटते समय मैप का केंद्र बिंदु किसे माना जाए. इसी को तय करने के लिए 1884 में अंतर्राष्ट्रीय प्राइम मेरिडियन सम्मेलन बुलाया गया. इस सम्मेलन में ग्रीनविच, इंग्लैंड को प्राइम मेरिडियन चुना गया.
प्राइम मेरिडियन मतलब मैप का केंद्र बिंदु. ग्रीनविच को 0 डिग्री रखा गया. इस हिसाब से जब हम पूर्व की ओर जाते हैं तो टाइम बढ़ता है. वहीं, जब ग्रीनविच से पश्चिम की ओर जाते हैं तो टाइम घटता है. दुनिया के कई देशों ने ग्रीनविच को प्राइम मेरिडियन मानकर अपने देश की घड़ियों का समय सेट किया था.
भारत का टाइम जोन क्या है?
भारत का सबसे पहला टाइम जोन ब्रिटिश राज में 1884 में अपनाया गया था. आजादी से पहले भारत में तीन टाइम जोन होते थे- बॉम्बे, कलकत्ता और मद्रास. यानी कि अगर कोई बॉम्बे से मद्रास जाता था तो उसे दो बार अपनी घड़ी का समय बदलना पड़ता था. तकनीकी रूप से तो भारत का क्षेत्रफल दो ज्योग्राफिकल टाइम जोन में फैला हुआ है. मगर भारत में सिर्फ एक टाइम जोन यानी इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (IST) माना जाता है.
1905 में मिर्ज़ापुर (82°33’पूर्व), उत्तर प्रदेश से गुजरने वाली रेखा को पूरे देश के लिए स्टैंडर्ड टाइम चुना गया. इसे ही 1947 में इंडियन स्टैंडर्ड टाइम घोषित किया गया था. हालांकि, कलकत्ता टाइम जोन का इस्तेमाल 1948 तक और बॉम्बे टाइम जोन का 1955 तक इस्तेमाल किया जाता था.