अयोध्यानामा : पंडित नेहरू को इस अधिकारी ने अयोध्या आने से रोक दिया था, गंवानी पड़ी नौकरी, बाद में बना सांसद

Ayodhyanama:अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होनी है. अयोध्या में नागर शैली में बने राम मंदिर में राम लला हमेशा के लिए गद्दी पर बैठने वाले हैं.अयोध्या में मंदिर और मस्जिद की लड़ाई कई सौ साल तक चली.

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Ayodhyanama:अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होनी है. अयोध्या में नागर शैली में बने राम मंदिर में राम लला हमेशा के लिए गद्दी पर बैठने वाले हैं. अयोध्या  में मंदिर और मस्जिद की लड़ाई कई सौ साल तक चली. इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो पता लगता है कि अयोध्या विवाद के तीन अहम पड़ाव हैं. पहला साल 1949, दूसरा 1986 और तीसरा 1992. आज हम आपको इतिहास के इन्हीं पड़ावों के बारे में बताने जा रहे हैं. 

1949 में क्या हुआ था?

1947 में देश आजाद हुआ था, लोगों में आजादी की खुमारी थी. दूसरी और देश बंटवारे के जख़्म को भरने में लगा था. लेकिन तभी अयोध्या से एक ऐसी खबर आई, जिसने देश के साथ ही केंद्र सरकार को परेशान कर दिया. 22-23 दिसंबर 1949 की रात अयोध्या में विवादित मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्तियां रख दी गईं. दूसरे दिन सुबह राम भक्त मौके पर पहुंत गए और ....भय प्रकट कृपाला.. की धुन गाने लगे. इलाके में यह बात तेजी से फैल गई कि विवादित बाबरी के अंदर राम लला प्रकट हुए हैं. इसके बाद मौके पर लाखों राम भक्त पहुंच गए. मुस्लिम पक्ष के लोग इसका विरोध जताने लगे इसके बाद माहौल तनावपूर्ण हो गया.  

यह मामला प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक पहुंचा तो वो भी परेशान हो गए. देश में अभी हिंदू-मुस्लिम दंगों की आग ढंग से बुझी भी नहीं थी. प्रधानमंत्री नेहरू, उत्तर प्रदेश सरकार और फैजाबाद प्रशासन से एक-एक घटना की जानकारी ले रहे थे. तभी पंडित नेहरू ने तय किया कि वह खुद अयोध्या जाकर विवादित घटनास्थल का दौरा करेंगे और समझेंगे कि आखिर क्यों तनाव की जड़ क्या है और इसको कैसे शांत किया जा सकता है.


किसने पंडित नेहरू को रोक दिया?

उस वक्त फैजाबाद के जिलाधिकारी (DM) केके नायर हुआ थे. उन्हें 7 महीने पहले ही फैजाबाद के डीएम की कुर्सी मिली थी. नायर मूल रूप से केरल के रहने वाले थे. 1930 बैच के आईसीएस अफसर नायर, दक्षिणपंथी माने जाते थे. प्रदेश सरकार के जरिये जब नायर को पता चला कि पीएम नेहरू अयोध्या आना चाहते हैं, तो उन्होंने साफ मना कर दिया. नायर ने कहा कि प्रधानमंत्री नेहरू के अयोध्या आने से हालात और तनावपूर्ण हो सकते हैं. राज्य समेत देश में इसका असर प्रतिकूल हो सकता है. दंगे हो सकते हैं जिनको काबू करना मुश्किल हो जाएगा.

के. के. नायर.

 

केके नायर पर यह भी आरोप लगा था कि वह हिंदू महासभा की तरफ झुकाव रखते हैं और इसी के चलते उन्होंने प्रधानमंत्री को अयोध्या आने से मना किया. एक पक्ष अपने इस दावे के समर्थन में कहता है कि इसका उदाहरण है कि जब 22-23 दिसंबर की दरम्यानी रात विवादित स्थल पर रामलला की मूर्ति रखी गई तो नायर ने अगले दिन दोपहर तक लखनऊ में आला अफसरों को इसकी सूचना दी.

पंडित नेहरू ने गुस्से में लिखी चिट्ठी

डीएम के द्वारा जब पीएम को अयोध्या में आने से मना कर दिया गया तो पंडित नेहरू ने 26 दिसंबर 1949 को तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को टेलीग्राम भेजा और तीखी नाराजगी जाहिर की. पंडित नेहरू ने लिखा, "अयोध्या में एक बुरा उदाहरण स्थापित किया जा रहा है और आगे चलकर इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं." नेहरू ने 5 फरवरी 1950 को एक और चिट्ठी लिखी और दोबारा अयोध्या आने के बारे में पूछा.

इस बार भी राज्य सरकार और गृह विभाग ने फैजाबाद के डीएम नायर से उनकी सहमति मांगी. लेकिन इस बार भी जिलाधिकारी ने प्रधानमंत्री को सुरक्षा और कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए अयोध्या आने से मना कर दिया. इसके बाद डीएम केके नायर को मस्जिद के अंदर से मूर्ति निकाल कर राम चबूतरे पर दोबारा रखने के लिए कहा गया, जिस आदेश को मानने से केके नायर ने इंनकार कि दिया.  

पति-पत्नी दोनों लोकसभा में पहुंचे

इसके बाद नायर को फैजाबाद से हटाकर दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया गया. साल 1952 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी. 1962 में जब चौथे लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो लोग फिर नायर से चुनाव लड़ने का आग्रह करने लगे. इस बार उन्होंने जनसंघ के टिकट पर उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से चुनाव लड़ा. राम मंदिर के लिए नायर ने जो काम किया इसके बाद वह हिंदुत्व के चहेते बन चुके थे. इलाके में कट्टक हिंदूवादी की उनकी छवि बन गई थी. 

उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज सीट से चुनाव मैदान में उतरीं. दोनों ने जीत हासिल की. शकुंतला नायर तो दो बार और लोकसभा में पहुंचीं. यहां तक कि डीएम रहते नायर के ड्राइवर रहे शख़्स ने भी विधायक का चुनाव जीत लिया था. First Updated : Saturday, 13 January 2024

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