Ayodhya Ram Temple: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. जिसको लेकर भगवान राम के भक्त काफी उत्साहित हैं. राम नगरी अयोध्या के साथ निर्माणाधीन मंदिर को भव्य एवं दिव्य रूप दिया जा रहा है. इस बीच अधिकांश श्रद्धालुओं की यह जानने की काफी उत्सुकता होगी कि आखिर किस शैली में इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. तो आइए हम आपको बताते हैं कि भगवान राम के इस ऐतिहासिक मंदिर को किस शैली में बनाया जा रहा है.
बता दें कि अयोध्या में निर्मामाधीन भगवान राम के मंदिर को नागर शैली में बनाया जा रहा है. इस शैली का ज्यादातर प्रयोग उत्तर भारत के मंदिरों में किया जाता रहा है. नागर शैली की उत्पत्ति नगर से हुई है. सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इन्हें नागर की संज्ञा दी गई. भारत में तीन शैलियों नागर, द्रविड़ और बेसर में मंदिरों का निर्माण किया जाता है.
इन शौलियों की बात करें तो मंदिर स्थापत्य की नागर शैली हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत क्षेत्रों में प्रचलित थी. इसे 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत में मौजूद शासक वंशों द्वारा संरक्षण दिया गया. नागर शैली की विशेषता की बात करें तो इस शैली के मंदिरों में समतल छत से उठती हुई शिखर की प्रधानता पाई जाती है, इसे अनुप्रस्थिका एवं उत्थापन समन्वय भी कहा जाता है. नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं. मंदिर ऊंचाई में 08 भागों में बांटे जाते हैं, जिनमें मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश). इस शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ नामों से पुकारा जाता है.
अगर बात करें इस शैली के प्रभाव का तो उत्तर भारत में नर्मदा नदी के उत्तरी क्षेत्र तक नागर शैली का प्रभाव देखा जा सकता है. नागर शैली के मंदिरों में योजना और ऊंचाई को मापदंड के रूप में रखा गया है. नागर वास्तुकला में वर्गाकार योजना के शुरूआत में ही दोनों कोनों पर कुछ उभरा हुआ भाग प्रकट देखने को मिलता है. जिसको ‘अस्त’ कहा जाता है. इसमें चांड़ी समतल छत से उठती हुई शिखा की प्रधानता पाई जाती है. यह शिखा कला उत्तर भारत में सातवीं शताब्दी के पश्चात विकसित हुआ. ऐसा कहा जाता है कि परमार शासकों ने वास्तुकला के क्षेत्र में नागर शैली को प्रधानता देते हुए इस क्षेत्र में नागर शैली के अधिकांश मंदिरों का निर्माण करवाया.
भारत में कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक अधिकांश द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं. दक्षिण भारत के मंदिर द्रविड़ शैली के होते हैं. इस शैली की शुरुआत 8वीं शताब्दी में हुई. द्रविड़ शैली के मंदिरों में- प्राकार (चारदीवारी), गोपुरम (प्रवेश द्वार), वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा शिखर, मंडप (नंदी मंडप) विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना शामिल हैं. द्रविड़ शैली के मंदिर बहुमंजिला होते हैं. पल्लवों ने द्रविड़ शैली को जन्म दिया और चोल काल में इस शैली ने ऊंचाइयां छुईं. विजयनगर काल में इस शैली के मंदिर और भव्य हुए, इसमें कला का संगम हुआ. चोल काल में द्रविड़ शैली की वास्तुकला में मूर्तिकला और चित्रकला का संगम हो गया. द्रविड़ शैली में ही आगे नायक शैली का विकास हुआ. मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), रंगनाथ मंदिर (श्रीरंगम, तमिलनाडु), रामेश्वरम मंदिर इसी शैली में बने हुए हैं.
नागर और द्रविड़ शैलियों के मिले-जुले रूप को बेसर शैली कहा जाता है. इस शैली के मंदिर विंध्याचल पर्वत से लेकर कृष्णा नदी तक पाए जाते हैं. बेसर शैली को चालुक्य शैली भी कहते हैं. बेसर शैली के मंदिरों का आकार आधार से शिखर तक गोलाकार (वृत्ताकार) या अर्द्ध गोलाकार होता है. बेसर शैली का इस्तेमाल वृंदावन का वैष्णव मंदिर जिसमें गोपुरम बनाया गया. अब आमतौर पर इस शैली के मंदिर नहीं बनते हैं. First Updated : Thursday, 28 December 2023