कैसे मिला टाइटैनिक का मलबा? तलाश करने की खुशी में जश्न भी ना मना सके राबर्ट बैलार्ड और उनके साथी
Titanic History: ऐतिहासिक जहाज टाइटैनिक के डूबने की कहानी तो सभी जानते होंगे लेकिन इस जहाज का मलबा किस तरह मिला यह बहुत कम लोगो को मालूम होगा. आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि आखिर इस ऐतिहासिक जहाज का मलबा कैसे मिला? क्योंकि 7 दशकों तक इस जहाज के मलबे को नहीं ढूंढा जा सका था.
हाइलाइट
- टाइटैनिक को ढूंढने के लिए हो चुके थे कई असफल प्रयास
- पनडुब्बियां ढूंढने गए थे अमेरिकी नौसेना के अफसर, इसी दौरान टाइटैनक का मलबा भी मिला.
Titanic History: हाल ही में एक दर्दनाक खबर सामने आई है जिसमें बताया गया कि पनडुब्बी के ज़रिए टाइटैनिक का मलबा देखने जाने वाले सभी मुसाफिरों की मौत हो गई. बताया जा रहा है कि पनडुब्बी का कनेक्शन टूट गया था. जिसके बाद वो दोबारा राब्ते में नहीं आई और फिर जब उसकी तलाश की गई तो टाइटैनिक के मलबे के पास ही पनडुब्बी का मलबा भी मिला है. इस खबर से अलग आज हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि ऐतिहासिक टाइटैनिक का मलबा कैसे मिला? इसको ढूंढने को में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था? तो चलिए जानते हैं.
क्या है टाइटैनिक की घटना:
73 साल बाद मिला मलबा?
टाइटैनिक की दुर्घटना तब से लेकर अब तक लोगों के ज़हन में जिंदा है. हैरानी की बात यह है कि दुर्घटनास्थल का पता होने के बावजूद 7 दशकों तक इसका मलबा नहीं खोजा जा सका. एक समय था जब यह सोचा गया था कि यह कभी नहीं मिलेगा लेकिन दुर्घटना के 73 साल बाद इसके मलबे को अमेरिकी नौसेना अधिकारी और समुद्र विज्ञानी रॉबर्ट बैलार्ड और उनकी टीम ने खोजा. लेकिन टाइटैनिक की खोज के सालों बाद जो सच्चाई सामने आई वह और भी दिलचस्प थी.
पनडुब्बियों का पता लगाने निकले थे रॉबर्ट
दरअसल, दुनिया के सबसे मशहूर जहाज़ के मलबे की खोज अमेरिकी नौसेना के 2 लापता परमाणु पनडुब्बियों के मलबे को खोजने के एक गुप्त मिशन का हिस्सा थी. मिशन का नेतृत्व रॉबर्ट बैलार्ड ने किया था, जो टाइटैनिक को ढूंढना चाहते थे, लेकिन नौसेना ने पनडुब्बियों की खोज करने का निर्देश दिया, हालांकि, पनडुब्बियों का पता लगने के बाद, मिशन के लिए आवंटित समय में टाइटैनिक को खोजने की अनुमति दी गई.
1912 से ही जारी थी खोज, कई मिशन हुए फेल
जनता के सामने रॉबर्ट बैलार्ड का प्राथमिक मिशन यह प्रकट करना था कि वह टाइटैनिक की तलाश कर रहे थे. टाइटैनिक की खोज 1912 से ही जारी थी और कई मिशन नाकाम हो चुके थे.समुद्र की गहराई, पानी के नीचे के मुश्किल वातावरण और हालात के संबंध में परस्पर विरोधी रिपोर्टों के कारण सभी प्रयास विफल रहे. रॉबर्ट बैलार्ड ने भी 1977 में टाइटैनिक की खोज के लिए एक मिशन का नेतृत्व किया था लेकिन उन्हें असफलता मिली. हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और 1980 के दशक की शुरुआत से ही दूसरे अभियान के लिए कोशिश कर रहे थे. 1982 में उन्होंने सबमर्सिबल तकनीक के लिए धन का अनुरोध करने के लिए सैन्य अधिकारियों से संपर्क किया ताकि वे टाइटैनिक को ढूंढ सकें.
अमेरिकी नौसेना के पनडुब्बी युद्ध कार्यक्रम के एक अधिकारी ने अनुरोध का जवाब देते हुए कहा, "हम पनडुब्बी के लिए धन मुहैया कराएंगे, लेकिन टाइटैनिक की खोज के लिए नहीं." अमेरिकी नौसेना परमाणु पनडुब्बियों यूएसएस थ्रेशर और यूएसएस स्कॉर्पियन को ढूंढना चाहती थी, जो क्रमशः 1963 और 1968 में उत्तरी अटलांटिक की गहराई में खो गई थीं.
रॉबर्ट बैलार्ड को इन पनडुब्बियों के मलबे की तस्वीर लेने का काम सौंपा गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनके परमाणु रिएक्टरों के साथ क्या हुआ था. यदि रॉबर्ट बैलार्ड ने अपना मिशन जल्दी पूरा कर लिया होता तो शायद वह टाइटैनिक को ढूंढने में सक्षम होते, जिसके बारे में माना जाता है कि उसका मलबा दोनों पनडुब्बियों के बीच कहीं था.
रॉबर्ट बैलार्ड ने दशकों बाद एक इंटरव्यू में कहा,'नौसेना ने कभी उम्मीद नहीं की थी कि मैं टाइटैनिक को ढूंढ पाऊंगा, इसलिए जब ऐसा हुआ तो प्रचार के विचार ने अधिकारियों को परेशान कर दिया, लेकिन लोगों को कभी पता नहीं चला कि हमारे मिशन की वास्तविकता पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया'. जब रॉबर्ट बैलार्ड अटलांटिक महासागर की गहराई में पनडुब्बियों की खोज कर रहे थे तो उन्होंने पाया कि समुद्री धाराओं की वजह से भारी चीजें तेजी से डूबती हैं और अपने पीछे मलबे का निशान छोड़ जाती हैं.
2008 में एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा, "मुझे एहसास हुआ कि यह खोज एक बड़ी सफलता थी और अगर मैं टाइटैनिक के मलबे की रेखा ढूंढ सका तो मैं इस जहाज का मलबा भी ढूंढ सकता हूं."
जिस दिन (सितंबर 1, 1985) दुनिया के सबसे प्रसिद्ध जहाज़ के मलबे की खोज हुई, रॉबर्ट बैलार्ड एक शोध जहाज़ पर अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे और मिशन ख़त्म होने के तनाव से बचने की कोशिश कर रहे थे.उसी समय, एक स्टाफ सदस्य कमरे में आया और कहा कि उन्हें अनुसंधान टीम द्वारा बुलाया जा रहा है.
जब रॉबर्ट बैलार्ड जहाज के कंट्रोल रूम में पहुंचे तो उनके सहयोगियों ने सोनार तकनीक से लैस एक पानी के नीचे रोबोट और एक कैमरा खोजा जो टाइटैनिक बॉयलर था. यानी टाइटैनिक के डूबने के 73 साल बाद आखिरकार उसका मलबा मिल गया.रॉबर्ट बैलार्ड और उनकी टीम जश्न मनाना चाहती थी जब उन्हें एहसास हुआ कि सुबह के 2:20 बजे थे यानी यह वही वक्त था जिस वक्त टाइटैनिक डूबा और समुद्र के तल पर पहुंच गया. खैर मिशन से लौटने पर रॉबर्ट बैलार्ड और उनकी टीम का गर्मजोशी से स्वागत किया गया.
काफ़ी समय बाद उन्होंने कहा कि हमने जहाज़ खोज लिया था, जो हमारी सफलता थी, लेकिन वहाँ पहुँचना सबसे डरावना हिस्सा था.' हालांकि डूबने के दौरान टाइटैनिक दो हिस्सों में बंट गया, लेकिन इसकी संरचना पहचानने योग्य थी. समुद्र तल पर बर्तन, फर्नीचर और अन्य सामान बिखरे हुए थे और रॉबर्ट बैलार्ड के मुताबिक, दृश्य एक प्रेतवाधित घर जैसा था, जहां टाइटैनिक के साथ डूबने वालों का एकमात्र निशान चमड़े के जूते थे.