Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता के खिलाफ उतरा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, विधि आयोग को सौंपा जवाब

Uniform Civil Code: बोर्ड के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास ने बताया कि बोर्ड की कार्यसमिति ने गत 27 जून को UCC को लेकर तैयार किए गए प्रतिवेदन के मसौदे को मंजूरी दी थी, जिसे आज आनलाइन माध्यम से हुई बोर्ड की साधारण सभा में विचार के लिए पेश किया गया.

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Uniform Civil Code: बुधवार 5 जुलाई को देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन AIMPLB (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) ने UCC (समान नागरिक संहिता) पर अपनी आपत्ति संबंधी दस्तावेज बोर्ड की साधारण सभा से अनुमोदन मिलने के बाद विधि आयोग को भेज दिया.

बोर्ड के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास ने बताया कि बोर्ड की कार्यसमिति ने गत 27 जून को UCC को लेकर तैयार किए गए प्रतिवेदन के मसौदे को मंजूरी दी थी, जिसे आज आनलाइन माध्यम से हुई बोर्ड की साधारण सभा में विचार के लिए पेश किया गया. कासिम रसूल इलियास ने बताया कि बैठक में इस प्रतिवेदन को सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया. उसके बाद इसे विधि आयोग को भेज दिया गया है.

गौरतलब है कि विधि आयोग ने UCC पर विभिन्न पक्षकारों और हितधारकों को अपनी आपत्तियां दाखिल करने के लिए 14 जुलाई तक का समय दिया है. हालांकि बोर्ड ने इसे छह महीने तक बढ़ाने की इल्तिजा की थी. बोर्ड द्वारा जारी एक बयान के अनुसार UCC को लेकर विधि आयोग के सामने पेश की गई आपत्ति में बोर्ड ने कहा है कि आयोग की ओर से इस सिलसिले में जारी की गई नोटिस बहुत ही साधारण सी है.

बता दें कि इसमें कहा गया है कि आयोग इससे पहले भी UCC को लेकर जनमत ले चुका है और उस समय वह इसी निष्कर्ष पर पहुंचा था कि UCC न तो आवश्यक है और ना ही अभिलषित, ऐसे में आयोग ने अपनी इच्छा का कोई ब्लूप्रिंट सामने रखे बिना ही फिर से इस पर जनमत मांगा है, जिसकी उपयुक्तता नहीं है. व

हीं बोर्ड ने अपने प्रतिवेदन में भारत के व्यापक विविधता, बहुलतावादी सिद्धांतों और बहुसांस्कृतिक प्रकृति की चर्चा की है. बोर्ड ने प्रतिवेदन में कहा है कि देश में कई समुदायों के विविध पर्सनल लॉ लागू हैं, जो भारत के संविधान में वर्णित धार्मिक-सांस्कृतिक अधिकारों के तहत संरक्षित हैं.

बोर्ड ने प्रतिवेदन में कहा है कि भारत का संविधान अपने आप में समानतापूर्ण नहीं है और इसमें कई समुदायों के लिए अलग-अलग सामंजस्य किए गए हैं. विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग आचरण तय किए गए हैं और विभिन्न समुदायों को उनसे संबंधित विभिन्न अधिकार दिए गए हैं.

बोर्ड ने प्रतिवेदन में कहा कि, "यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है इसका जवाब भले ही आसान लगता हो लेकिन यह जटिलताओं से भरा है. वर्ष 1949 में जब UCC पर संविधान सभा में चर्चा हुई थी तब ये जटिलताएं उभर कर सामने आई थी और मुस्लिम समुदाय ने भी इसका पूरा विरोध किया था. उस समय डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के स्पष्टीकरण के बाद वह विवाद समाप्त हुआ था. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अंबेडकर ने कहा था यह बिल्कुल संभव है कि भविष्य की संसद एक ऐसा प्रावधान कर सकती है कि संहिता सिर्फ उन्हीं लोगों पर लागू होगी जो इसके लिए तैयार होने की घोषणा करेंगे, इसलिए संहिता को लागू करने की शुरुआती स्थिति पूरी तरह से स्वैच्छिक होगी."

बोर्ड के प्रवक्ता ने बताया कि बैठक में बोर्ड के 251 में से करीब 250 सदस्य शामिल हुए. बैठक में सभी सदस्यों से कहा गया कि वे व्यक्तिगत तौर पर विधि आयोग में UCC के खिलाफ अपनी बात रखें और अपने रिश्तेदारों और दोस्तों एवं अन्य लोगों से भी ऐसा करने के लिए कहें.

उन्होंने बताया कि बोर्ड का कहना है कि UCC के दायरे से सिर्फ आदिवासियों को ही नहीं बल्कि हर धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग को अलग रखा जाना चाहिए. AIMPLB हमेशा से UCC के खिलाफ रहा है. उसका कहना है कि भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश में UCC के नाम पर एक ही कानून लागू करना लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है.

विधि आयोग ने 14 जून को UCC को लेकर सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित करने की प्रक्रिया शुरू की थी, जिन्हें 14 जुलाई तक आयोग के सामने दाखिल किया जा सकता है. हाल ही में भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने UCC की पुरजोर वकालत की थी. First Updated : Thursday, 06 July 2023