Law Commission of India: भारत के विधि आयोग ने देश के तमाम धार्मिक संगठनों और लोगों से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) के मुद्दे पर राय मांगी है. विधि आयोग ने 30 दिनों के अंदर सुझाव देने को कहा है. इस क़दम के बाद समान नागरिक संहिता का मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है.
विधि आयोग ने बाक़ायदा इसके लिए आधिकारिक ईमेल आईडी जारी की है जिसपर लोग अपनी राय या सुझाव भेज सकते हैं. विधि आयोग द्वारा जारी आधिकारिक ईमेल आईडी membersecretary-lci@gov.in पर धार्मिक संगठन या आम लोग अपने सुझाव भेज सकते हैं. आयोग इस मुद्दे पर सुझाव देने वाले धार्मिक संगठनों या लोगों से विस्तार से चर्चा के लिए बुलावा भी भेज सकता है.
समान नागरिक संहिता क्या है?
समान नागरिक संहिता का मतलब है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक क़ानून की व्यवस्था, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो. इसका सीधा सा अर्थ है- एक देश एक क़ानून. समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक क़ानून होगा. शादी, तलाक, गोद लेने और संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन के अधिकार में सभी धर्मों के लिए एक ही क़ानून लागू होगा. वर्तमान में देश संविधान के मुताबिक़, भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, ईसाई, आदि जैसे सभी धर्मों का पालन करने वाले नागरिकों को अपने धर्म से जुड़े क़ानून बनाने का अधिकार है. हर नागरिक अपने-अपने धर्म के मुताबिक़ बनाए गए क़ानूनों का पालन करते हैं.
क्या कहता है संविधान?
देश में संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लेकर प्रावधान है. इसके मुताबिक़, राज्य इसे लागू कर सकता है. इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर किसी भी वर्ग विशेष के साथ होने वाले भेदभाव या पक्षपात को समाप्त करना और विविध सांस्कृतिक समूहों के बीच सामंजस्य स्थापित करना था. वर्तमान में भारत में दो तरह के पर्सनल लॉ हैं. हिंदू मैरिज एक्ट 1956 और दूसरा मुस्लिम पर्सनल लॉ. हिंदू मैरिज एक्ट 1956; जो कि हिंदू, सिख, ईसाई, जैन व अन्य धर्मों पर लागू होता है, जबकि दूसरा, मुस्लिम धर्म मुस्लिम पर्सनल लॉ केवल मुस्लिम धर्म का पालन करने वालों पर लागू होता है.
समान नागरिक संहिता लागू होने पर क्या बदलेगा?
समान नागरिक संहिता लागू होने पर हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून, विशेष विवाह अधिनियम जैसे क़ानूनों की जगह लेगा. यह सभी नागरिकों पर लागू होगा चाहे वो किसी भी धर्म का पालन करते हों. समान नागरिक संहिता की मांग करने वालों की दलील है कि यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव को कम करने और क़ानूनी प्रणाली को सरल बनाने में मदद करेगा. वहीं, इसका विरोध करने वालों की दलील है कि इससे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा.
First Updated : Sunday, 18 June 2023