Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: जब हिंदी से गूंज उठा संयुक्त राष्ट्र, अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया था ऐतिहासिक भाषण
Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: अटल बिहारी वाजपेयी साहित्य के काफी नजदीक थे और यही कारण था की उनका हिंदी से बेहद लगाव था. जब वह पहली बार संयुक्त राष्ट्र में संबोधन के लिए गए तो उन्होंने वहां भी हिंदी भाषा में अपनी बात रखी.
Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: 25 दिसंबर, सोमवार के दिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 99वीं जयंती मनाई जाएगी. सन 1924 में ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत समेत दुनिया में अपनी एक अलग पहचान स्थापित की. उनका व्यवहार कुछ ऐसा था की उनके प्रतिद्वंद्वी भी इसके कायल थे. भारत के इतिहास में कई बड़े राजनेता पैदा हुए. लेकिन, जो बात अटल जी की भाषण में थी शायद ही वो बात किसी ओर में हो. संसद हो या सड़क जिस तरह से अटल जी अपनी बात रखते लोग उनके दिवाने बन जाते थे. लेकिन आज उनके जन्म दिवस के विशेष अवसर पर हम एक ऐतिहासिक भाषण के बारे में बात करेंगे, जब संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी भाषा की गूंज उठा था.
अटल बिहारी वाजपेयी साहित्य के काफी नजदीक थे और यही कारण था की उनका हिंदी से बेहद लगाव था. जब वह पहली बार संयुक्त राष्ट्र में संबोधन के लिए गए तो उन्होंने वहां भी हिंदी भाषा में अपनी बात रखी. इस खास मौके के जरिए उन्होंने कुछ इस तरह विश्व में हिंदी का डंका बजाया. यह पहला मौका था जब देश का राजभाषा अंतरराष्ट्रीय मंच पर गूंजा.
हिंदी भाषा में महासभा का किया संबोधन
संयुक्त राष्ट्र की महासभा में 4 अक्टूबर 1977 को भारत और हिंदी के गौरवशाली इतिहास का प्रतिनिधित्व करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी महासभा के 32वें सत्र में पहुंचे. बता दें की यूएन महासभा में अटल जी का यह पहल संबोधन था. लेकिन बिना किसी संकोच के उन्होंने हिंदी भाषा के जरिए महासभा को संबोधित किया. हालांकि, ऐसा नहीं था कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी. वो जितना हिंदी में निपुण थे वैसे ही वह अंग्रेजी भाषा के साथ भी सहज थे. अटल जी का यह निर्णय एक एतिहासिक पल था क्योंकि इससे पहले कोई नेता ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में हिंदी शब्दों में संबोधन नहीं किया था. उस कार्यक्रम के दौरान हिंदी में बोलने की वजह से ही उनका यह भाषण ऐतिहासिक हो गया.
विपक्षी भी करते थे अटल जी का सम्मान
अटल बिहारी वाजपेयी में इतनी ढेर सारी खूबियां थी कि विपक्षी दलों के नेता भी उनसे काफी प्रभावित रहते थे. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह सभी प्रधानमंत्रियों ने अटल को पूरा सम्मान दिया. संसद में उनके भाषण के दौरान विपक्षी सांसद भी मुद्दों पर मेज थपथपाने पर मजबूर हो जाया करते थे. देश में बहुत कम ऐसे नेता हुए हैं जिन्हें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से इतना ज्यादा सम्मान मिला हो.