CM योगी के कानून को हाईकोर्ट का सपोर्ट, पढ़ें जस्टिस रंजन की टिप्पणी
Allahabad High Court: CM योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का समर्थन मिला है. एक मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की है. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने कहा कि इस कानून से मकसद सभी व्यक्तियों को धार्मिक आजादी की गारंटी देना है. ये देश में धर्मनिरपेक्षता की भावना बनाने लिए है.
Uttar Pradesh News: देश के जिन-जिन राज्यों में भाजपा की सरकार बनी वहां धर्मांतरण को लेकर सख्त कानून बनाए गए. सबसे पहले उत्तर प्रदेश में बना कानून चर्चा में आया था. इसे लेकर देश में खूब हू हल्ला भी हुआ था. अब एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट इसे लेकर टिप्पणी की है. कोर्ट की टिप्पणी को एक तरह से कानून के पक्ष में देखा जा रहा है. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने उत्तर प्रदेश के विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 को धर्मनिरपेक्षता की भावना और धार्मिक आजादी की गारंटी देने के उद्देश्य वाला बताया है.
बता दें कोर्ट अजीम नाम के शख्स की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें आरोपी ने अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका लगाई थी. आरोपी की तरफ से कहा गया था कि लड़की ने अपने बयान में शादी की बात स्वीकार की है. हालांकि, कोर्ट ने विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धाराओं के उल्लंघन के आधार पर याचिका खारिज करके हुए कानून के पक्ष में टिप्पणी की.
कोर्ट ने क्या कहा?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 सभी व्यक्तियों को धार्मिक आजादी की गारंटी, भारत के सामाजिक सद्भावना और धर्मनिरपेक्षता की भावना को दर्शाता है. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने कहा कि संविधान हर शख्स को धर्म मानने, पालन करने और प्रचार करने का अधिकार देता है. यह व्यक्तिगत अधिकार धर्म परिवर्तन के अधिकार में तब्दील नहीं होता.
क्या है पूरा मामला?
अजीम नाम के शख्स पर एक लड़की को जबरन इस्लाम कबूल करवाने और यौन शोषण करने के आरोप है. उसके खिलाफ धारा 323/504/506 आईपीसी और धारा 3/5(1) उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर कार्रवाई की है. इसी के खिलाफ आरोप कोर्ट पहुंचा था और जमानत की मांग की थी. इसमें उसने कहा कि लड़की ने अपनी मर्जी से घर छोड़ा है और वो खुद बयान देकर अपनी शादी की पुष्टि की है.
आरोपी की दलील के खिलाफ सरकारी वकील ने जमानत का विरोध किया. सरकार की ओर 164 सीआरपीसी के तहत सूचना देने वाले के बयान का हवाला दिया गया. बताया गया की सूचना देने वाले ने धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया गया है. इसमें धर्म परिवर्तन के बिना की गई शादी की बात भी कही गई थी.
कोर्ट ने अर्जी की खारिज
अदालत ने जमानत की मांग को खारिज करते हुए धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान की बात कही. कोर्ट ने कहा कि बैकग्राउंड के आधार पर दिख रहा है कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्य लड़की पर इस्लाम अपनाने का दबाव बना रहे थे. उसे पशु बलि देखने और मांसाहारी भोजन पकाने, खाने के लिए मजबूर किया गया था. कोर्ट ने ये भी कहा कि याचिकाकर्ता 2021 के अधिनियम की धारा 8 के तहत विवाह/निकाह के लिए आवेदन का कोई दस्तावेज नहीं ला सकता है. इस कारण 2021 के अधिनियम की धारा 3 और 8 का प्रथम उल्लंघन पर जमानत खारिज की जाती है.