Lok Sabha Elections 2024: पीलीभीत में कौन हो सकता है वरुण-मेनका से ज्यादा मजबूत उम्मीदवार? 28 साल से मां-बेटे का जादू है बरकरार
Lok Sabha Elections 2024:बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 195 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी का नाम नहीं है. इसके बाद चर्चाओं का बाजार गरमा गया है.
Lok Sabha Elections 2024: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 195 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में वरुण गांधी और मेनका गांधी का नाम नहीं हैं, हालांकि पीलीभीत और सुल्तानपुर सीट पर अभी उम्मीदवारों के नामों को ऐलान नहीं हुआ है. लेकिन बीजेपी की पहली लिस्ट के बाद से यह चर्चा शरू हो गई है कि बीजेपी को इन दोनों सीटों पर किसी नए चेहरे की तलाश है.
पीलीभीत सीट को लेकर लोगों के बीच अधिक बात हो रही है, लोगों को कहना है इस सीट पर 28 साल से मेनका और वरुण गांधी का कब्जा है. पीलीभीत सीट को एक तरह से गांधी परिवार की पारंपरागत सीट कहा जा सकता है.
पीलीभीत में मेनका-वरुण का रहता है जलवा
उत्तराखंड के नैनीताल से सटी पीलीभीत लोकसभा सीट पर मेनका गांधी का जादू तब से चलता आ रहा है जह 'मोदी मैजिक' नहीं था. मेनका गांधी इस सीट से 6 बार सांसद रह चुकी हैं. इनमें से एक बार वो बीजेपी के टिकट पर पीलीभीत से जीती थीं. जबकि 2 बार जनता दल और 3 बार निर्दलीय इस सीट से जीतीं. मेनका के बाद उनके बेटे वरुण गांधी इस सीट से 2 बार सांसद रहे हैं. वर्तमान में मेनका सुल्तानपुर और वरुणा गांधी पीलीभीत से सांसद हैं. अगर पिछले 28-30 साल के पीलीभीत लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास को देखें तो चुनावी हार-जीत के आंकड़े बाताते हैं कि इस सीट पर मेनका और वरुण गांधी से बड़ा चेहरा बीजेपी के पास दूसरा नहीं हो सकता.
नैनीताल से अलग होकर बनी पीलीभीत सीट
एक समय पीलीभीत सीट नैनीताल लोकसभा सीट का एक हिस्सा थी. पीलीभीत सीट पर 1951 में पहली बार चुनाव हुए, जिसमें में कांग्रेस के मुकुंद लाल अग्रवाल को जीत मिली. इसके बाद 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के मोहन विजयी हुए. वे लगातार 4 बार इस सीट से सांसद रहे. बाद में परिसीमन होने पर यह सीट अलग होकर पीलीभीत सीट बन गई. वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर यहां से मेनका गांधी पहली बार सांसद बनीं.
पीलीभीत सीट पर क्या हैं समीकरण?
पीलीभीत लोकसभा सीट पर कुल मतदाता 18 लाख कते करीब हैं. इस सीट के जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां पर करीब 75 फीसदी हिंदू और 25 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. यहां दलित वोटर करीब साढे़ तीन लाख की तादाद में हैं, जो किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत तय करते हैं. कृषि बहुल इस सीट पर राजपूत, जाट, ब्राह्मण वोटर्स की संख्या ठीक-ठाक हैं.