Rampur Tiraha Kand: एक आंदोलन जो उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड बनाने के लिए किया जा रहा था. दरअसल, मुजफ्फरनगर में 1 अक्टूबर 1994 को एक आंदोलन के दौरान पुलिस वालों ने फायरिंग की, जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई थी. इस आंदोलन में सिर्फ फायरिंग ही नहीं बल्कि महिलाओं के साथ रेप की खबर सामने आई थी. अब 30 साल बाद कोर्ट ने जिन पुलिस वालों ने फायरिंग की थी उनको दोषी मानते हुए फैसला सुनाया है.
1 अक्तूबर 1994 को देहरादून से आंदोलनकारी बसों में सवार होकर दिल्ली के लिए निकले थे. ये आंदोलन उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड के गठन के लिए किया जा रहा था. सब लोग वहां पहुंचे तो रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने की कोशिश की. इस दौरान जब वो नहीं रुके तो वहां पर मौजूद पुलिस वालों ने उनपर फायरिंग कर दी, जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई. ये मामला CBI तक पहुंचा, जिसमें पुलिसवालों और अधिकारियों पर केस दर्ज किया गया. तभी से इस मामले की सुनवाई चल रही थी.
आरोपी पुलिसवालों की बात करें तो इसमें सिपाही मिलाप सिंह मूल रूप एटा के निधौली कलां थाना क्षेत्र के होर्ची गांव का रहने वाला है. दूसरा आरोपी सिपाही वीरेंद्र प्रताप मूल रूप सिद्धार्थनगर के गांव गौरी का निवासी है.
अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-7 शक्ति सिंह की अदालत में महिलाओं से दुष्कर्म, सीबीआई बनाम राधामोहन द्विवेदी और सीबीआई बनाम मिलाप सिंह से संबंधित मामले कोर्ट में चल रहे हैं.
इस आंदोलन में 7 लोगों की मौत हो गई थी. जिसमें देहरादून नेहरू कालोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी का नाम शामिल है. First Updated : Monday, 18 March 2024