जब पिता मुलायम ने 'टीपू' को दिखाया पार्टी से बाहर का रास्ता, महज 2 दिन में किया तख्तापलट और बन गए अखिलेश यादव

Akhilesh Yadav: जब पिता मुलायम ने 'टीपू' को दिखाया पार्टी से बाहर का रास्ता, महज 2 दिन में किया तख्तापलट और बन गए अखिलेश यादव, जानें पूरी कहानी...

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Edited By: JBT Desk

Election 2024: साल 2024 में जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आता जा रहा है वैसे- वैसे देश भर के राजनीतिक दल अपने तैयारी को प्रयास तेज कर रहे हैं और गठबंधन को मजबूत कर रहे हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और भारतीय गुट के दो प्रमुख गुटों के रूप में उभरने के साथ, राजनीतिक परिदृश्य प्रत्याशी और उत्साह से भरा हुआ है.

इस सदर्भ में मुंबई के शिवाजी पार्क में विपक्षी दल इंडिया ब्लॉक द्वारा हाल ही में आयोजित रैली ने भारतीय राजनीति की उभरती गाथा में एक महत्वपूर्ण अध्याय को चिह्नित किया. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के नेता- अखिलेश यादव इस सभा से विशेष रूप से अनुपस्थित रहे. लेकिन यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री का आज जो नाम है वो कैसे हो गया? वह अपने पिता और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छाया से कैसे बाहर आये? इस बारे में एक खास पेशकश आपके सामने पेश कर रहे हैं जो कि इस प्रकार है पढ़िए.

एक राजनीतिक राजवंश की उत्पत्ति

अखिलेश यादव की राजनीतिक यात्रा की जड़ें बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उनके पिता मुलायम सिंह यादव द्वारा समाजवादी पार्टी की स्थापना से जुड़ी हैं. वर्षों तक मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक में चारों ओर दिखने वाला दबदबा बनाए रखा और खुद को भारतीय राजनीति में एक ताकतवर नेता के रूप में पहचान दी. फिर भी यह मुलायम सिंह के अखिलेश यादव ही थे, जो अंततः अपने पिता की विरासत की नींव को चुनौती देंगे. 

एक बेटे का विद्रोह

वहीं अगर उनके परिवारिक विरोध की बात करे तो राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के भीतर अपने पिता के वर्चस्व को चुनौती देते हुए, बात न मानते हुए के प्रतीक के रूप में उभरे और एक साहसी कदम में अखिलेश ने पार्टी के भीतर तख्तापलट कर दिया. चतुराई से नियंत्रण हासिल करने और एसपी के नए चेहरे के रूप में अपने अधिकार का दावा करने की चाल चली.

तख्तापलट

1 जनवरी, 2017 को अखिलेश यादव ने अपने चाचा राम गोपाल यादव के साथ समाजवादी पार्टी का एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया जिसने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में एक नए युग की शुरुआत का संकेत दिया. एक त्वरित और सोची-समझी चाल में अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से सत्ता की बागडोर छीन ली और पार्टी अध्यक्ष का पद संभाला और परिवर्तनकारी परिवर्तन की लहर की शुरुआत की. उसी सत्र के दौरान, पार्टी ने तीन प्रमुख प्रस्ताव पारित किये. जो कि इस प्रकार है.

 इस बीच अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया और मुलायम सिंह यादव को सलाहकार की भूमिका सौंपी गई.

 शिवपाल सिंह यादव को सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया और अखिलेश ने अपने चाचा की जगह अपने भाई         धर्मेंद्र यादव को नियुक्त किया. दिग्गज नेता अमर सिंह को पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया.

अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल के बीच काफी समय से अनबन चल रही थी. इससे पहले अक्टूबर 2016 में एक सार्वजनिक      मंच पर दोनों के बीच मतभेद हो गया था. मुलायम सिंह यादव ने सपा प्रदेश अध्यक्ष का पद अखिलेश से छीनकर शिवपाल को दे      दिया है. प्रतिक्रिया स्वरूप अखिलेश ने शिवपाल को सरकार से बाहर कर दिया.

हालाँकि, समझौते के बाद टिकट वितरण विवाद में राज्य के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के बीच लड़ाई फिर से शुरू हो गई और 30 दिसंबर, 2016 को मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की. जबकि पार्टी महासचिव राम गोपाल यादव को समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.

इसके बाद 2017 में नए साल के पहले ही दिन 212 विधायकों को एकजुट कर पार्टी में बगावत कर अखिलेश ने गेंद अपने पाले में डाल ली.

इस बगावत में रामगोपाल यादव ने पार्टी संविधान को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया. पार्टी संविधान में कहा गया है कि पार्टी महासचिव को पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने का अधिकार है. इसलिए उन्होंने एक सम्मेलन बुलाया. यादव समझ गए कि तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव इस सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे. इसलिए उन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष किरणमय नंदा को आमंत्रित किया. रामगोपाल और अखिलेश यादव ने संख्यात्मक बढ़त के साथ इस उलटफेर को दूर कर लिया.

बगावत के बाद पार्टी के वर्चस्व की लड़ाई चुनाव आयोग तक पहुंची, लेकिन अखिलेश यादव (टीपू) विजयी हुए. कार्यक्रम के बाद मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की बातचीत खत्म हो गई.

अटूट दृढ़ संकल्प और रणनीतिक कौशल के साथ अखिलेश यादव ने पार्टी के आंतरिक संघर्ष के उथल-पुथल भरे पानी को पार कर लिया और समाजवादी पार्टी के भीतर वर्चस्व की अपनी बोली में विजयी हुए. चतुर राजनीतिक पैंतरेबाजी और जमीनी स्तर पर लामबंदी के माध्यम से अखिलेश ने एक गतिशील नेता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की जो उत्तर प्रदेश को प्रगति और समृद्धि के एक नए युग में ले जाने के लिए तैयार है.

उत्तर प्रदेश की राजनीतिक गाथा के इतिहास में अखिलेश यादव की विद्रोह से नेतृत्व तक की यात्रा लचीलेपन और धैर्य की अदम्य भावना के प्रमाण के रूप में खड़ी है. जैसे-जैसे वह भविष्य की दिशा में आगे बढ़ते हैं. अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के लोगों की सेवा करने की अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ रहते हैं. जिससे राज्य और उसके नागरिकों के लिए आशा और अवसर की एक नई सुबह होती है.

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20 March 2024, 11:33 PM IST

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