Uniform Civil Code: देशभर में एक बार फिर समान नागरिक संहिता काफी सुर्खियों में बन गया है, इसकी खास वजह है कि उत्तराखंड में धामी सरकार ने कमेटी की रिपोर्ट सौंपने के बाद यूसीसी बिल विधानसभा में पेश कर दिया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा. इस दौरान वंद मातरम, भारत माता की जय और जय श्रीराम के नारे भी लगे. वहीं, विपक्षी दलों ने इस पर विस्तार से चर्चा करने की मांग की और मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया है.
बीजेपी देशभर में इसका प्रचार करती आई है कि वह एक दिन इस देश में समान नागरिक संहिता लेकर जरूर आएगी. साल 1967 में महासंघ ने पहली इसे अपने मेनिफेस्टो में शामिल किया था. तब पार्टी ने लोगों से वादा किया था कि जब भी महासंघ सत्ता में आएगी तो वह सबसे पहले यूसीसी पर कानून बनाने का काम करेगी. साल 1980 में बीजेपी की स्थापना के बाद
राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता जैसे अहम मुद्दे रहे हैं.
समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि देश में रहने वाले सभी धर्मों, वर्गों और जातियों के लिए समान कानून होना चाहिए. शादी, तलाक, बच्चा गोद लेना और उत्तराधिकार के लिए सभी लोगों के लिए एक से नियम होने चाहिए. हालांकि देश में अलग-अलग धर्मों विभिन्न कानून है. जैसे मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदुओं के लिए हिंदू पर्सनल लॉ. ऐसे में अगर उत्तराखंड में यूसीसी लागू हो जाता है तो यह कानून अपने आप निरस्त हो जाएंगे.
इस विधेयक में बहुविवाह को पूरी तरीके बैन किया जाएगा, इसके साथ ही अगर किसी जोड़े का पति और पत्नी जीवित रहता है तो वह नागरिक दूसरा विवाह नहीं कर सकता है. बिल में साफतौर से स्पष्ट किया गया है कि कुछ असाधारण स्थिति को छोड़कर एक साल शादी पूरे होने से पहले कोई तलाक की अर्जी कोर्ट में नहीं दे सकता है. इस विधेयक हलाला जैसी प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ आपराधिक श्रेणी में लाने की बात कही गई है. इसके साथ ही बिल में में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए शादी की उम्र समान होनी चाहिए.
हिंदू धर्म: उत्तराखंड में अगर समान नागरिक संहिता लागू होती है तो हिंदू मैरिज एक्ट (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) जैसे मौजूदा कानूनों में कुछ संसोधन करने पड़ेंगे. इसके साथ ही हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) पर भी असर पड़ सकता है. हिंदू पर्सनल लॉ की मानें तो, एक परिवार के सदस्य HUF बनाने की इजाजत है. इसके लिए आयकर अधिनियम के तहत HUF को एक अलग इकाई माना जाता है और टैक्स में कुछ छूट दी जाती है. लेकिन अभी पूरी तरीके मालूम नहीं है कि उत्तराखंड के बिल में इन सबको लेकर क्या प्रावधान किया गया है.
मुस्लिम धर्म: संविधान में फिलहाल मुस्लिमों पर मुस्लिम पर्सनल (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 लागू होता है. इसी के अनुसार मुस्लिम समाज में शादी, तलाक और भरण पोषण के नियम लागू होते हैं. लेकिन यूसीसी के लागू होने के बाद बहुविवाह, हलाला जैसी प्रथाओं पर इसका असर पड़ेगा.
सिख धर्म: 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में सिखों की आबादी 2.34 फीसदी है. सिखों में शादी के लिए आनंद विवाह एक्ट 1909 लागू हैं. लेकिन इसमें अभी तलाक का प्रावधान नहीं है. ऐसे में सिख धर्म में जो तलाक होते हैं, वह हिंदू मैरिज एक्ट के तहत होते हैं. लेकिन यूसीसी लागू होने के बाद सभी समुदाय पर एक कानून लागू होने की संभावना है. ऐसे में आनंद विवाह अधिनियम भी खत्म हो सकता है.
ईसाई धर्म: राज्य में ईसाई समुदाय के भी लोग रहते हैं. अभी ईसाईयों के तलाक के लिए अधिनियम 1869 की धारा 10A(1) में आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करने से पहले पति-पत्नी को कम से कम दो साल तक अलग रहना अनिवार्य है. वहीं, 1925 का उत्तराधिकार अधिनियम ईसाई माताओं को उनके मृत बच्चों की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं देता है. हालांकि यूसीसी लागू होने के बाद यह सब नियम पूरी तरह से निरस्त हो जाएंगे और उत्तराधिकारी का कानून एक सा होगा.
आदिवासी समुदाय: उत्तराखंड में आदिवासी समुयाद पर समान नागरिक संहिता का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यूसीसी विधयेक में आदिवासी आबादी को इसके प्रावधानों से छूट देने की बात कही जा रही है. उत्तराखंड में आदिवासियों की आबादी 2.9 प्रतिशत है. First Updated : Wednesday, 07 February 2024