Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तराखंड की सिल्क्यारा टनल में 12 नवंबर से फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने की कोशिशें रंग लाई. टनल की खुदाई के करके रेस्क्यू टीम मजदूरों के पास पहुंची. जहां से सभी फंसे मजदूरों को एक एक करके बाहर निकाला गया. टनल का काम बहुत सी जगह पर होता है, ऐसे में सवाल ये उठता है कि इस तरह के हादसे होने की आखिर क्या वजह रहती हैं? क्या कुछ सिक्योरिटी में कमी रहती है, या मौसम का प्रभाव इस काम में परेशानियां लाता है? और किस तरह से इन हादसों में कमी लाई जा सकती है.
कब हुआ था उत्तरकाशी टनल हादसा
12 नवंबर सुबह 4 बजे टनल में मलबा गिरना शुरू हुआ जो 5.30 बजे तक मेन गेट से 200 मीटर अंदर तक भारी मात्रा में जमा हो गया. टनल से पानी निकालने के लिए बिछाए गए पाइप से ऑक्सीजन, दवा, भोजन और पानी अंदर भेजा जाने लगा. इसके बाद बचाव कार्य में NDRF, ITBP और BRO को लगाया गया. 35 हॉर्स पावर की ऑगर मशीन से 15 मीटर तक मलबा हटाने का काम किया गया.
कैसे बंद हो गई टनल
इस तरह के हादसों की रिपोर्ट्स देखें तो पता चलेगा कि 2010 के बाद से इस तरह के हादसों में काफी बढ़ोत्तरी देखी गई है. पड़ाड़ी इलाकों में टनल का होना आम बात होती है, अक्सर उनमें कुछ ना कुछ काम चलता रहता है. ऐसे में वहां पर काम कर रहे मजदूरों की जिंदगी पर खतरा बना रहता है. कुछ कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस हादसे की वजह राजमार्गों को बनाने, या सड़कों के चौड़ीकरण के लिए जो तरीके अपनाए जा रहे हैं वो तरीकों सही नहीं हैं. सही तकनी का इस्तेमाल ना करना ढलानों को प्रभावित करता है. इस वजह से लैंडस्लाइड जैसी समस्याएं सामने आती हैं.
सुरक्षा होनी चाहिए प्रथमिकता
उत्तरकाशी में हुए इस हादसे के बाद एक बात सामने आती है कि माइनिंग कराने वाली कंपनियां वहां काम करने वालों की सिक्योरिटी को लेकर इतना ध्यान नहीं देती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि माइनिंग कंपनियां को एक हद तक छूट देनी चाहिए. इस काम में मानकों का पालन करना बेहद जरूरी होता है, अगर इनकी अंदेकी होगी तो इस तरह के हादसे बार बार होते रहेंगे. उत्तराखंड में लैंडस्लाइड की घटनां अक्सर सामने आती हैं, इस बात को ध्यान में रखते हुए टनल का काम करने से पहले वहां की सिक्योरिटी का ध्यान रखना चाहिए.
इमरजेंसी एग्जिट होना चाहिए
उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल के प्रोजेक्ट की लागत कई सौ करोड़ है. 4.5 किमी लंबी सुरंग में इस तरह से मजदूरों का बंद हो जाना एक बड़ी कामी का संकेत देता है. इसमें एस्केप टनल (निकास सुरंग) का एक प्रविधान है लेकिन बावजूद इसके ये टनल नहीं बनाई गई. प्रावधान के मुताबिक, अगर ये निकास सुरंग बनी होती तो मजदूरों को इसमें से निकाल लिया जाता. इसके जैसा हादसा ना हो इसके लिए आगे से एस्केप टनल का निर्माण किया जाना चाहिए.
ह्यूम पाइप की व्यवस्था
इमरजेंसी एग्जिट के अलावा टनल में ह्यूम पाइप का ना होना भी एक चिंता का विषय है. सुरंग बनाने की शुरुआत में ही इमरजेंसी ह्यूम पाइप बिछाए जाते हैं. जैसे जैसे टनल की खुदाई की जाती है उसके साथ साथ ही ये ह्यूम पाइप भी बिछते जाते हैं. इसका काम ऐसी आपात स्थिती में होता है. अगर खुदाई के समय लैंडस्लाइड होता है और टनल बंद हो जाती है जो इस पाइप के ज़रिए अंदर काम कर रहे लोगों को बाहर निकाल लिया जाता है. जो पाइप मजदूरों के फंसने के बाद बिछवाए गए, इन्ही के जरिए भोजन, आक्सीजन व दवाएं पहुंचाने का काम किया जा रहा था.
सुरंगो की सेफ्टी ऑडिट पर दिया जाए ज़ोर
सिलक्यारा सुरंग में एस्केप टनल का ना होना या बगैर पक्का किए ही कच्चे निर्माण के काम को आगे बढ़ाते जाना, जियोलाजिकल सर्वे रिपोर्ट की अनदेखी कई कारण इस हादसे की वजह माना जा रहा है, लेकिन अब सुरंगो की सेफ्टी को लेकर सरकार जोर दे रही है. इस हादसे के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बनाई जा रहीं सभी सुरंगों का सेफ्टी ऑडिट कराने की बात पर जोर दिया है. इससे हादसे हुए भी तो सुरक्षा के पूरे इंतज़ाम होने की वजह से इस तरह की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. First Updated : Wednesday, 29 November 2023