Explainer: हर देश अपनी हिफाज़त के लिए जंग लड़ता है. लेकिन भारत एक ऐसा देश था जिसने अपने पड़ोसी मुल्क के लोगों के लिए युद्ध किया. हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के उन लोगों की जो अपने ही देश में परेशान थे, वो अपने लिए एक अलग देश की मांग कर रहे थे. भारत ने उन प्रताड़ित लोगों को उनकी आजादी दिलाई. जिसको आज विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
विभाजन के बाद 1947 में भले ही पाकिस्तान नाम से एक अलग देश बन गया, लेकिन सही मायनों में भारत तीन हिस्सों में बंट गया. पहला- भारत, दूसरा- पश्चिमी पाकिस्तान और तीसरा- पूर्वी पाकिस्तान. सामाजिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक रूप से बिल्कुल अलग पहचान रखने वाले पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच कोई सामंजस्य नहीं था. सिर्फ इसलिए कि वे बंगाली बोलते थे, पूर्वी पाकिस्तान के निवासियों के साथ न केवल सौतेला व्यवहार किया जाता था बल्कि उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार भी किया जाता था.
पूर्वी पाकिस्तान की जनता परेशान थी, जिनके दिलों में धीरे धीरे आंदोलन की चिंगारी भड़क रही थी. कुछ दिनों में ही पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने एक आंदोलन शुरू किया जिसका नमा था मुक्ति वाहिनी. कुछ ही समय में मुक्ति वाहिनी बड़े पैमाने का आंदोलन बन गया. इस आंदोलन में जनता की मांग थी कि उनको अलग देश जगह दी जाए, यानी बांग्लादेश नाम से एक अलग देश की मांग करने वाले मुक्ति वाहिनी आंदोलन को उस समय पंख लग गए थे.
भारतीय सेना का पूर्वी पाकिस्तान के लिए दिल में हमदर्दी थी, जिसको लेकर पश्चिमी पाकिस्तान के सैन्य शासक परेशान हो गए. इनको लगा कि भारत ने अपनी पूरी सैन्य शक्ति मुक्ति वाहिनी की मदद में लगा दी है. इसी गलतफहमी के साथ पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ साजिश रचनी शुरू कर दी. जिसको उसने अपनी पुरानी चाहत जम्मू-कश्मीर के नाम पर किया. पाकिस्तान के सैन्य शासकों का मानना था कि यदि उन्होंने पश्चिमी मोर्चे से युद्ध शुरू किया तो भारत की सैन्य शक्ति पूरी तरह से विभाजित हो जाएगी और वे आसानी से जम्मू-कश्मीर पर अपना झंडा फहरा देंगे.
3 दिसंबर 1971 की रात को था पाकिस्तान वायुसेना ने उत्तर-पश्चिमी भारत में 11 हवाई अड्डों पर हवाई हमले किए. वहीं, जमीन पर 65 टैंक और 1 मोबाइल पैदल सेना के साथ पाकिस्तानी सेना के 2 हजार सैनिक तैनात किए थे. ब्रिगेड ने पश्चिमी मोर्चे पर राजस्थान लोंगेवाला पोस्ट पर हमला किया. इसके साथ ही पठानकोट पर कब्ज़ा करने की कोशिश में आगे बढ़ रही पाकिस्तानी सेना के साथ शकरगढ़ में बसंतर की लड़ाई शुरू हो गई. देखते ही देखते भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच पश्चिम से लेकर पूर्व तक खूनी जंग शुरू हो गई.
उस वक्त भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी, पाकिस्तान के इस दुस्साहस पर उन्होंने और सेना प्रमुख मानेक शॉ ने एक्शन का पैसला लिया. पाकिस्तान के हमले के बाद भारत ने हमले शुरू कर दिए. जिसमें पाकिस्तान को हर मोर्चे पर भारतीय सेना से हार का सामना करना पड़ रहा था. 13 दिनों की जंग में ही भारत ने पाकिस्तान के घमंड को तोड़ते हुए आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया.
16 दिसंबर 1971 का वो दिन था जब पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया. उस वक्त पाकिस्तान का घमंड पूरी तरह से खत्म कर दिया गया. लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी ने भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट-जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद दस्तावेजों पर लाइन किए थे. इस प्रकार 1947 में भारत के विरुद्ध रची गई साजिश का अंत हुआ और बांग्लादेश नाम से एक नये देश का उदय हुआ. कहा जा सकता है कि ये लड़ाई भारत ने पाकिस्तान के ही लोगों के लिए लड़ी थी.
16 दिसंबर 1971 को ढाका के रमाना रेस कोर्स में पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था, जिसको द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण माना जाता है. पाकिस्तानी सेना की पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ शाम करीब 4.31 बजे भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण किया था. First Updated : Saturday, 16 December 2023