Explainer: भारतीय न्याय संहिता लागू होने पर आम लोगों पर क्या होगा असर? 10 बिंदुओं में इसको समझिए

संसद के दोनों सदनों में तीन नए विधेयक पास हो चुके हैं. इनमें भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) बिल शामिल हैं. तीनों बिलों पर राष्ट्रपति की मुहर लगते ही ये कानून की शक्ल में बदल जाएंगे.

Pankaj Soni
Edited By: Pankaj Soni

Bharatiya Nyaya Sanhita 2023 : संसद के दोनों सदनों में तीन नए विधेयक पास हो चुके हैं. इनमें भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) बिल शामिल हैं. तीनों बिलों पर राष्ट्रपति की मुहर लगते ही ये कानून की शक्ल में बदल जाएंगे. इन्हीं के अनुसार देश में न्याय होगा. ऐसे में जानते कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) से लेकर भारतीय न्याय संहिता तक (BNS) के सफर में बदल गया है. 

1. शरीर के खिलाफ अपराध: आईपीसी में हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, हमला करना और गंभीर चोट पहुंचाने को अपराध मान जाता है. बीएनएस ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है. इसमें संगठित अपराध, आतंकवाद और कुछ आधारों पर किसी समूह द्वारा हत्या या गंभीर चोट जैसे नए अपराध जोड़े हैं.

2. महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध : आईपीसी बलात्कार, ताक-झांक, पीछा करना और किसी महिला के शील को भंग करने जैसे कृत्यों को अपराध मानता है. वहीं बीएनएस ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है. यह सामूहिक बलात्कार के मामले में पीड़िता को वयस्क के रूप में वर्गीकृत करने की सीमा को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष करता है. यह किसी महिला के साथ धोखे से या झूठे वादे करके यौन संबंध बनाने को भी अपराध मानता है.

3. राजद्रोह : बीएनएस राजद्रोह के अपराध को खत्म करता है. इसके बदले में यह निम्न को दंडित करता है: (i) फूट, सशस्त्र विद्रोह, या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करना या उत्तेजित करने का प्रयास करना, (ii) अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना या (iii) भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालना. इन अपराधों में शब्दों या संकेतों का आदान-प्रदान, इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का उपयोग शामिल हो सकता है.

4. आतंकवाद : बीएनएस आतंकवाद को एक ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित करता है जिसका निम्नलिखित इरादा है: (i) देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालना, (ii) आम जनता को डराना या (iii) सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना. आतंकवादी गतिविधि को अंजाम देने या आतंकवाद का प्रयास करने की सजा में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मौत या आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए का जुर्माना, अगर इसके परिणाम स्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, या (ii) पांच साल से लेकर आजीवन कारावास और कम से कम पांच लाख रुपए का जुर्माना. 

5. संगठित अपराध : संगठित अपराध में अपहरण, जबरन वसूली, कॉन्ट्रैक्ट पर हत्या, जमीन पर कब्जा, वित्तीय घोटाले और अपराध सिंडिकेट की ओर से किए गए साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल हैं. संगठित अपराध करने या उसका प्रयास करने पर निम्नलिखित दंड दिया जाएगा. (i) अगर इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मौत या आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए का जुर्माना या (ii) पांच साल से लेकर आजीवन कारावास और कम से कम पांच लाख रुपए का जुर्माना.

6. मॉब लिंचिंग : बीएनएस निर्दिष्ट आधारों पर पांच या अधिक लोगों द्वारा की गई हत्या या गंभीर चोट को अपराध के रूप में जोड़ता है. इन आधारों में नस्ल, जाति, लिंग, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास शामिल हैं. ऐसी हत्या के लिए सज़ा कम से कम सात साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक है.

7. सर्वोच्च न्यायालय का फैसला : बीएनएस सर्वोच्च न्यायालय के कुछ फैसलों के अनुरूप है. इनमें व्यभिचार को अपराध के तौर नहीं शामिल किया गया है और आजीवन कारावास की सज़ा पाए व्यक्ति द्वारा हत्या या हत्या के प्रयास के लिए दंड के रूप में आजीवन कारावास (मृत्युदंड के अतिरिक्त) को शामिल किया गया है.

8. जेंडर नूट्रैलिटी में महिलाएं भी बनेंगी आरोपी : बलाकार का कानून सिर्फ महिलाओं को लेकर लागू होता है. BNS ने कुछ अन्य कानूनों, विशेष रूप से बच्चों से संबंधित कानूनों में बदलाव किया है. नाबालिगों के अपहरण से संबंधित अपराध में आईपीसी की धारा 361 अलग-अलग आयु सीमा निर्धारित करती है. पुरुष के लिए 16 और महिला के लिए 18 वर्ष. BNS ने इसे दोनों के लिए 18 साल निर्धारित कर दिया है. महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने (IPC की धारा 354ए) और ताक-झांक (IPC 354सी) के अपराध में अब BNS के तहत आरोपियों के लिए जेंडर नूट्रैलिटी लागू होगा. यानी अब महिलाओं पर भी कानून के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है.

9. भगोड़े अपराधियों पर क्या कोर्ट में ट्रायल हो सकेगा : हां, अब BNS में भगोड़े अपराधियों पर सख्ती की जाएगी. उनकी गैर मौजूदगी में कोर्ट में ट्रायल भी हो सकेगा. अभी तक आरोपी पर ट्रायल तभी शुरू होता था, जब वो अदालत में मौजूद हो. लेकिन अब फरार घोषित अपराधी के बगैर भी मुकदमा चल सकेगा. यानी कोर्ट में कार्रवाई नहीं रुकेगी. फरार आरोपी पर आरोप तय होने के तीन महीने बाद ट्रायल शुरू हो जाएगा. पहले 19 अपराधों में ही भगोड़ा घोषित कर सकते थे, अब 120 अपराधों में भगोड़ा घोषित करने का प्रावधान किया गया है.

10. सरकारी कार्रवाई में बाधा या आत्महत्या के प्रयास में क्या होगा? : आत्महत्या के प्रयास को भी नए सिरे से परिभाषित किया गया है. नए प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति किसी भी लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन करने के लिए मजबूर करने या रोकने के इरादे से आत्महत्या करने की कोशिश करता है तो यह अपराध माना जाएगा और जेल की सजा निर्धारित की जाएगी. इसे सामुदायिक सेवा के साथ एक साल तक बढ़ाया जा सकता है. विरोध-प्रदर्शनों के दौरान आत्मदाह या भूख हड़ताल को रोकने के लिए भी यह प्रावधान लागू होगा. 

calender
22 December 2023, 03:14 PM IST

जरूरी खबरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो