अयोध्यानामा : राम मंदिर में जहां रामलला विराजमान होने वाले हैं क्या होता है वह गर्भ गृह

अयोध्या के राम मंदिर में 22 जनवरी यानी कल सोमवार को राम लला की प्रतिमा की गर्भ गृह में प्राण-प्रतिष्ठा होगी. इस दौरान मंदिर वैदिक-मंत्रोच्चार से गूंज उठेगा. आखिर जिस गर्भ गृह में राम लला विराजमान होने वाले हैं वह क्या होता है. इसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं.

calender

अयोध्या के राम मंदिर में 22 जनवरी को राम लला अपनी गद्दी में हमेशा के लिए विराजमान हो जाएंगे. इस दिन वैदिक- मंत्रोच्चार से मंदिर गूंज उठेगा और इसी दिन भगवान श्रीराम की मूर्ति की मंदिर के गर्भ गृह में प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी. अयोध्या के इस मंदिर की बहुत सारी खासियतें हैं, लेकिन गर्भ गृह का अपना अलग महत्व है. राम मंदिर का गर्भ गृह में दुनिया में मौजूद मंदिरों में मूर्ति के सामने सबसे बड़ा पूजा-अर्चना स्थल होगा. आज हम आपको मंदिर में मौजूद गर्भ गृह के बारे में बताने जा रहे हैं.

राम मंदिर का गर्भगृह कितना बड़ा है?

अयोध्या के राम मंदिर का गर्भगृह 20 फीट लंबा और 20 फीट चौड़ा है. साथ ही इसे 161 फीट ऊंचा बनाया गया है. इससे पहले मंदिरों में सबसे बड़ा गर्भगृह सोमनाथ के मंदिर का था, जो 15 फीट लंबा और 15 फीट चौड़ा था. हिंदू मंदिरों में कई भाग होते हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण गर्भगृह होता है. गर्भगृह वह भाग होता है जहां मूर्ति की स्थापना की जाती है. इसका निर्माण शास्त्रसम्मत तरीके से किया जाता है.

गर्भ गृह क्या होता है?

 

गर्भगृह क्या होता है?  

मंदिर में जिस स्थान पर देवी-देवताओं की मूर्ति रखी होती है, उस प्रकोष्ठ को गर्भगृह कहते हैं. हिंदुओं के उपासनास्थल को मंदिर कहते हैं. वैसे मंदिर का शाब्दिक अर्थ घर होता है. गर्भगृह एक खिड़की रहित और कम रोशनी वाला कक्ष होता है, जिसे जानबूझकर ऐसा बनाया जाता है ताकि भक्त वहां जाकर दिमागी रूप से परमात्मा से जुड़ सके. गर्भगृह मंदिर में पश्चिम दिशा में बनाया जाता है.

गर्भगृह का आकार कैसा होता है?

गर्भगृह सामान्य रूप से वर्गाकार होता है. इसे ब्रह्मांड के सूक्ष्म जगत का प्रतिनिधि माना जाता है. इसके केंद्र में भगवान की मूर्ति रखी होती है. तमिल भाषा में इसे करुवराई कहा जाता है जिसका अर्थ गर्भगृह का आंतरिक भाग होता है. गर्भगृह के एक ओर मंदिर का द्वार और तीन ओर दीवारें होती हैं. ये द्वार बहुत अलंकृत तरीके से बनाया जाता है.

गर्भगृह में मूर्तियां किस स्थिति में रखी जाती हैं?

गर्भगृह में मूर्तियों के रखने की स्थितियां भगवान के अनुसार अलग होती हैं. भगवान विष्णु आदि की मूर्तियां आमतौर पर पिछली दीवार के सहारे रखी जाती हैं. शिवलिंग की स्थापना गर्भगृह के बीचोंबीच होती है. गर्भगृह को मंदिर का ब्रह्मस्थान कहा जाता है. 

गर्भ गृह क्या होता है

 

मंदिरों में गर्भगृह क्यों बनाए जाते हैं?

अब सवाल यह भी है कि मंदिरों में गर्भगृह क्यों बनाए जाते हैं, तो इसका जवाब है कि भगवान के विराजमान स्थल को खुले में नहीं बनाना चाहिए. इसलिए बड़े हॉल में छोटा कमरा बनाया जाता है जिसमें मूर्ति को स्थापित किया जाता है. शास्त्रों में कहा गया है कि अशुद्ध वस्त्रों में हॉल में ही दर्शन करना चाहिए. मतलब भगवान की प्रतिमा तक नहीं पहुंचना चाहिए. इसी बात को ध्यान रखते रखकर मंदिरों में गर्भगृह बनाए जाते हैं.


मंदिर कितनी शैलियों के होते हैं?

– राम मंदिर नागर शैली में बनाया जा रहा है. जिस शैली में उत्तर भारत के तमाम मंदिर बनते रहे हैं. मंदिरों के निर्माण में मुख्य तौर पर तीन प्रकार की शैलियां इस्तेमाल होती रही हैं.... नागर, द्रविड़ और बेसर शैली.

मंदिर निर्माण की शुरुआत कब से हुई?

मंदिर निर्माण की प्रक्रिया की शुरुआत मौर्य काल मानी जाती है. आगे चलकर उसमें सुधार हुआ. गुप्त काल को मंदिरों को कई तरह की विशेषताओं से लैस देखा गया. इस समय संरचनात्मक मंदिरों के अलावा अन्य प्रकार के मंदिर देखने को मिले जिनको चट्टानों को काटकर बनाया गया था. जैसे महाबलिपुरम का रथ-मंडप जो 5वीं शताब्दी मंदिर है.

नागर शैली की मंदिर.

 

नागर शैली क्या है? इसके मंदिर कैसे होते हैं?

– ‘नागर’ शब्द नगर से बना है. सबसे पहले नगर में निर्माण होने के कारण इसे नागर शैली कहा जाता है. यह संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है जो हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी. इसे 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत में मौजूद शासक वंशों ने पर्याप्त संरक्षण दिया.

नागर शैली की पहचान

विशेषताओं में समतल छत से उठती हुई शिखर की प्रधानता पाई जाती है. इसे अनुप्रस्थिका एवं उत्थापन समन्वय भी कहा जाता है. नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं. ये मंदिर ऊंचाई में 08 भागों में बांटे गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश). इस शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया.

First Updated : Sunday, 21 January 2024
Topics :