Nehru Liaquat Agreement: नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. केंद्र भाजपा सरकार एक लंबे अरसे से इसके लिए जद्दोजहद कर रही थी और आखिरकार लोकसाभ चुनाव 2024 से कुछ दिन पहले इसका नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है. इसके तहत भारत के पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दी जाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान संसद में इस बिल पर बहस करते हुए गृह मंत्री अमित शाह विपक्ष को जवाब देते हुए नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी इस बिल के ज़रिए 1950 में पंडित नेहरू के ज़रिए की गई गलती को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.
अब आपके मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि 1950 में पंडित नेहरू ने ऐसा क्या किया था और हम आज आपको ये क्यों बता रहे हैं? तो सबसे पहले आपको बताते हैं कि 1950 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच अल्पसंख्यकों को लेकर एक समझौता हुआ था. जिसका जिक्र हम आज इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वो समझौता आज ही के दिन यानी 8 अप्रैल को हुआ था.
नेहरू-लियाकत समझौते को दिल्ली पैक्ट के नाम से भी जाना जाता है. इस समझौते के तहत हिंदुस्तान और पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों को सुरक्षा मुहैया कराई गई थी. दरअसल बंटवारे के बाद दोनों ही देशों में अल्पसंख्यकों के साथ बुरा बर्ताव हो रहा था. लोग एक दूसरे को के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे थे. महिलाओं के साथ रेप हो रहे थे. जबरन धर्म परिवर्तन की अनगिनत घटनाएं सामने आ रही थीं. ऐसे में दोनों देशों के नेताओं ने यह समझौता किया था और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने की बात हुई थी.
समझौते की मुख्य बातें:
➤ दोनों देश अपने-अपने क्षेत्र में अल्पसंख्यकों के का ख्याल रखेंगे, उनके साथ होने वाले बुरे बर्ताव को रोकेंगे.
➤ हिंदुस्तान छोड़कर पाकिस्तान चले जाने वाले या पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान आने वाले लोग अपनी जायदाद के निपटारे के लिए एक देश से दूसरे देश आ/जा सकेंगे.
➤ जबरन धर्म परविर्तन मान्य नहीं होंगे. (पाकिस्तान में बड़ी तादाद में लोगों का धर्म परिवर्तन कराया गया था)
➤ अगवा महिलाओं को वापस उनके घर वालों को सौंपना होगा.
➤ दोनों देश अल्पसंख्यक आयोग का गठन करेंगे. जो अपने-अपने देशों के अल्पसंख्यकों का ख्याल रखने के जिम्मेदार होगा.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दिया इस्तीफा:
हालांकि कुछ लोग उस वक्त इस समझौते के खिलाफ भी थे. इनमें एक बड़ा नाम डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी का भी था. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस समय नेहरू सरकार में उद्योगमंत्री होने के अलावा हिंदू महासभा के नेता भी थे. शयामाप्रसाद मुखर्जी ने इस समझौते को विरोध किया और अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था. उन्होंने इस समझौते को मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाला करार दिया था.
क्या बोले थे गृह मंत्री?
दरअसल जब नागरिकता संशोधन बिल (CAB) संसद में पेश किया गया था तो उस वक्त इस बिल का बचाव करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि नरेंद्र मोदी जी की सरकार पंडित नेहरू के ज़रिए की गई एतिहासिक गलती को सुधारने का काम कर रही है. गृह मंत्री ने कहा था कि नेहरू-लियाकत समौझता सिर्फ काल्पनिक था, वो फेल हो गया, समय की वास्तविकता पर खरा नहीं उतरा. गृह मंत्री ने इस दौरान कहा था कि 1947 में पाकिस्तान के अंदर अल्पसंख्यकों की आबादी 23 फीसद थी. जबकि 2011 में घटकर 3.7 फीसद रह गई है. उन्होंने सवाल किया कि आखिर कहां गए ये लोग? उन्होंने कहा कि इन लोगों का धर्म परिवर्तन कर दिया गया है या फिर मार दिया गया है.
पीएम मोदी ने भी पूछे थे तीखे सवाल:
पीएम मोदी ने भी साल 2020 में संसद में भी इस समझौते का जिक्र किया था. उन्होंने कांग्रेस सवाल पूछते हुए कहा कि नेहरू जैसे महान विचारक और आपके लिए जो सबकुछ हैं, उन्होंने उस समय वहां की माइनॉरिटी के बजाय 'सारे नागरिक' जैसे शब्द का इस्तेमाल समझौते में क्यों नहीं किया? अगर वो इतने ही महान थे तो उन्होने ऐसा क्यों नहीं किया?
First Updated : Monday, 08 April 2024