अयोध्यानामा : अयोध्या के मंदिरों में रामानंदीय परंपरा क्या है? जिसमें भगवान राम के बाल स्वरूप की पूजा होगी

Ayodhyanama : राम जी के बाल अवतार की पूजा में भगवान राम के बालक रूप की पूजा होती है. इसमें ध्यान रखा जाता है कि राम लला का श्रृंगार से लेकर उनकी देखभाल भी उतने ही अच्छे से हो, जैसे किसी बालक की होती है. इसमें उन्हें सुबह जगाना, स्नान करवाना और भोजन कराना शामिल है.

Pankaj Soni
Pankaj Soni

हाइलाइट

  • अयोध्या के मंदिरों में रामानंदीय परंपरा से पूजा क्यों होती रही है.
  • रामलला के बालक रूप की पूजा करने की परंपरा क्यों है.
  • उत्तर भारत में रामांनंदीय पूजा पद्धति की परंपरा क्यों लोकप्रिय हुई.

अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन की तैयारियां आखिरी चरण में हैं. 22 जनवरी 2024 को राम लला अपनी गद्दी पर हमेशा के लिए विराजमान हो जाएंगे. इस दिन प्राण- प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी समेत देश-दुनिया की तमाम बड़ी हस्तियां मौजूद होंगी. इस बीच राम लाल के बाल स्वरूप और उनकी पूजा पद्धति के बारे में भी बात हो रही है. मंदिर में पुजारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी चल रही है. अब सवाल यह है राम लला की पूजा की पद्धति कैसी होगी? तो इसका जवाब है कि रामानंदीय संप्रदाय का पालन करते हुए राम लला की पूजा होगी. जब से राम लला यहां विराजमान हैं, तब से इसी परंपरा से ही उनकी पूजा होती आ रही है.

प्रभु श्रीराम के बाल अवतार की पूजा क्यों है खास? 

राम जी के बाल अवतार की पूजा में भगवान राम के बालक रूप की पूजा होती है. इसमें ध्यान रखा जाता है कि राम लला का श्रृंगार से लेकर उनकी देखभाल भी उतने ही अच्छे से हो, जैसे किसी बालक की होती है. इसमें उन्हें सुबह जगाना, स्नान करवाना और भोजन कराना शामिल है. जो भी खाना श्री राम के बाल रूप को पसंद आए, उसी तरह का भोजन बनेगा. साथ ही हर दिन अलग रंग-रूप के कपड़े पहनाए जाएंगे. सुबह जगाने के साथ दोपहर का आराम भी बाल रूप राम लला के लिए जरूरी है. वहीं पूजन के दौरान इसका भी पूरा ध्यान रखा जाएगा. मंत्रोच्चार पूरी तरह से शुद्ध हो, ये खास बात होगी. ये तमाम बातें रामानंदीय परंपरा का हिस्सा हैं.

रामानंदीय परिपाटी क्या है? 

अयोध्या चूंकि भगवान राम की जन्मभूमि है इसलिए वहां के अधिकतर मंदिर इसी पूजा पद्धति का पालन करते हैं. रामानंदीय परिपाटी वैष्णव परंपरा से आई है. इस्कॉन की आधिकारिक वेबसाइट पर इसका जिक्र है. इसके अनुसार, रामानंद संप्रदाय सनातन धर्म के सबसे पुराने वंशों में एक है. स्वयं प्रभु श्रीराम इसके आचार्य रहे हैं. कुछ समय तक इसे श्री संप्रदाय भी कहा जाता था. हालांकि कई जगहों पर कहा जाता है कि श्रीमद जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने इसकी शुरुआत की थी. और बाद में इसका नाम रामानंद संप्रदाय हो गया.

अयोध्या के मंदिरों में इस परिपाटी को क्यों मानते हैं?

अयोध्या के मंदिरों में इसी पूजा पद्धति का चलन है. कहा जाता है कि मुगल आक्रांताओं ने जब धर्म पर हमला किया तो स्वामी रामानंदाचार्य ने सब लोगों को एकजुट करने का काम किया. इस दौरान वैष्णव शैली की पूजा पद्धति एक तरह का मंच बन गई. इसके बाद से फिर राम की नगरी में इसका चलन हो गया. रामानंदाचार्य की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि ये पूजा पद्धति सिर्फ अयोध्या तक नहीं रही, बल्कि पूरे उत्तर भारत में फैाल गई. इस दौरान स्वामी जी के बहुत से शिष्य बने, जिसमें रहीम, कबीर और रसखान भी शामिल थे. वैसे अयोध्या में ही कई मंदिर ऐसे भी हैं, जो एक अलग परंपरा को मानते हैं. ये वो मठ हैं, जहां रामानुजाचार्य परंपरा की पूजा पद्धति को अपनाया जाता है, जो मूलतः दक्षिण की पूजा विधि मानी जाती है. इसमें श्री नारायण और लक्ष्मी जी की पूजा होती है.

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राम मंदिर का फाइल फोटो.


रसिक बनकर प्रभु को लुभाते हैं

राम लला की जन्मभूमि में कई और वर्ग भी हैं, जो अपने तरीके से श्री राम को मानते हैं. एक है दास संप्रदाय. इसे मानने वाले प्रभु राम को राजा और खुद को सेवक की तरह देखते हैं. ये आमतौर पर अपने नाम के साथ दास जोड़ते हैं. भक्तों की दूसरी श्रेणी रसिक परंपरा वाली है. ये प्रभु राम को अपना पति या प्रेमी मानते हुए उन्हें रिझाते हैं. रसिक अपने नाम के साथ शरण जोड़ा करते हैं. ये मूल तौर पर भाव की बात है कि वे किस दृष्टि से राम जी को देखते हैं. लेकिन पूजन परंपरा रामानंदीय होती है.

श्रीराम ने बाल्यकाल में दिखाए थे कई चमत्कार

महर्षि व्यास ने बताया कि प्रभु श्रीरामचन्द्र ने बाल क्रीड़ा की और समस्त नगर निवासियों को सुख दिया. कौशल्याजी कभी उन्हें गोद में लेकर हिलाती-डुलाती और कभी पालने में लिटाकर झुलाती थीं. प्रभु की बाल लीला का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार माता कौशल्या ने श्री रामचन्द्रजी को स्नान कराया और श्रृंगार करके पालने पर पीढ़ा दिया. फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा के लिए स्नान किया, पूजा करके नैवेद्य चढ़ाया और स्वयं वहां गई, जहां रसोई बनाई गई थी. फिर माता पूजा के स्थान पर लौट आई और वहां आने पर पुत्र को भोजन करते देखा. माता भयभीत होकर पुत्र के पास गई, तो वहां बालक को सोया हुआ देखा. फिर देखा कि वही पुत्र वहां भोजन कर रहा है. उनके हृदय में कंपन होने लगा. वह सोचने लगी कि यहां और वहां मैंने दो बालक देखे. यह मेरी बुद्धि का भ्रम है या और कोई विशेष कारण है?

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31 December 2023, 10:54 AM IST

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