Mahatma Gandhi: क्या था वो हिंदू-मुस्लिम चाय का किस्सा, जिससे महात्मा गांधी हो गए थे बेचैन... जानें फिर क्या हुआ?

Mahatma Gandhi 76th Death Anniversary: आमतौर से महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस के आंदोलन से सहमत होते हुए नहीं दिखते थे. गांधी अहिंसा के माध्यम से देश को आजाद कराना चाहते थे और सुभाष बाबू किसी भी तरह से देश को आजादी दिलाना चाहते थे.

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Edited By: Sachin

Mahatma Gandhi 76th Death Anniversary: इस दुनिया में तमाम सहमति-असहमति के बाद भी महात्मा गांधी प्रासंगिक बने हुए हैं. उन पर हजारों की संख्या में किताबें लिखी गई हैं और लगातार रिसर्चर, प्रोफेसर और स्कॉलर किताबें लिख रहे हैं. यही कारण है कि दुनिया के बड़े फिलॉसफर्स के बीच में महात्मा गांधी का नाम लिया जाता रहा है. देश के अनेक विश्वविद्यालयों में उनके नाम से पीठ स्थापित है. यह वहीं गांधी थे जिन्होंने अहिंसा के माध्यम से अंग्रेजों से खूब लोहा लिया और कई दफा उन्हें झुकना पड़ा. भारत के आजाद होने के बाद अंग्रेजी सरकार ने गांधी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए उनके लिए डाक टिकट भी जारी किया था. 

द्वि-राष्ट्र सिद्धांत पर गांधी ने दिया ये जवाब

महात्मा गांधी से जब मुस्लिम लीग की टू नेशन थ्योरी (द्वि राष्ट्र सिद्धांत) पर सवाल पूछा गया कि इस आपकी क्या राय है? तो उन्होंने कहा कि इस देश में टू नेशन थ्योरी कभी लागू नहीं हो सकती है. अगर यह हो सकती है तो थ्री, फ़ोर और फाईव नेशन थ्योरी क्यों नहीं आई? इस देश में ईसाई, जैन, बौद्ध और यहूदी कहां पर जाएंगे. अगर कोई देश धर्म पर आधारित होना चाहता है तो बाकी के धर्म में आस्था रखने वाले लोग कहां जाएंगे. इन धर्म के मानने वाले लोगों ने ऐसा क्या अपराध किया है कि जो यहां पर नहीं रह सकते हैं. 

अंग्रेज हिंदू-मुस्लिम एकता को बांटने कोशिश करते थे 

उस समय के वायसराय वॉवेल थे और जब कलकत्ता में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई तो उन्होंने कहा कि हम जिस हाल में हैं, हमें छोड़ दीजिए. हमें यहां से छोड़कर चले जाईए, हमें अपने हाल पर रहने दीजिए. हम अपनी समस्याएं खुद हल कर लेंगे. क्योंकि अगर इस देश में रहेंगे तो आग में घी डालने का काम करते रहेंगे. गांधी स्पष्टता के साथ वायसराय को समझा दिया था कि जब तक इस देश में आप रहेंगे तो हिंदू-मुस्लिम एकता में दरार डालते रहेंगे. गांधी हमेशा सांप्रदायिक ताकतों से आजीवन लड़ते रहे और उनकी खिलाफत करते रहे थे. लेकिन यह बात भी सच है कि चारों तरफ तमाम कोशिश होने के बाद भी पाकिस्तान बना और हिंसा भी भयानक देखने को मिली. 

नहीं पीते थे हिंदू, मुस्लमानों के हाथों का पानी 

जब मुल्क आजाद हुआ तो देश में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर दंगे हो रहे थे और गांधी ने कहा कि जो चीज आज देखी जा रही है उसका दक्षिण अफ्रीका में लग गया था. लेकिन विस्तार से मुझे भारत में आकर पता लगा. बता दें कि साल 1915 में हरिद्वार में कुंभ लगा हुआ था जिसे देखने के लिए महात्मा गांधी जा ट्रेन से जा रहे थे. इस दौरान ट्रेन सहारनपुर रूकी. तो उन्होंने वहां पर देखा कि लोग पसीना-पसीना हो रहे हैं, प्यास के मारे गला भी सूख रहे हैं. कहीं पानी भी नहीं है. अगर कहीं से कोई पानी देने भी आ जाए और वह मुस्लमान है तो कोई पानी नहीं पीता है. इस पूरी घटना को महात्मा गांधी ध्यान से देख रहे थे. लेकिन जब कोई डॉक्टर दवा देता है तो उसे लेकर खा लेते हैं. लेकिन जब पानी पीने के लिए देता है तो मना कर देते हैं. 

आजाद हिंद फौज बनी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

आमतौर से महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस के आंदोलन से सहमत होते हुए नहीं दिखते थे. गांधी अहिंसा के माध्यम से देश को आजाद कराना चाहते थे और सुभाष बाबू किसी भी तरह से देश को आजादी दिलाना चाहते थे. किस्सा इस प्रकार है कि आजाद हिन्द फौज के कुछ सैनिक दिल्ली के लाल किला में बंदी बनाकर रखे गए थे. जहां महात्मा गांधी उनसे मिलने के लिए पहुंचे थे. तब सैनिकों ने बताया कि यहां पर हिंदू-मुस्लिम चाय बनती है. उस दौरान बाहर से आवाज आई कि हिंदू चाय आ गई है और मुस्लिम चाय आना अभी बाकी है. गांधी ने चौंककर सवाल किया कि आप लोग इसके बाद इस चाय का क्या करते रहते हैं? आजाद हिंद फौज के सैनिकों ने कहा कि हम इन दोनों चाय को एक बड़े बर्तन में मिला देते हैं और उसके बाद उसे पी लेते हैं. तब महात्मा गांधी को झटका लगा और उसके बाद उन्होंने वायसराय से कहा कि आप लोग यहां चले जाएं और हम अपनी समस्याओं का समाधान खुद ढूंढ लेंगे. 

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30 January 2024, 09:00 AM IST

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