अगर भारत ना होता तो क्या होता... दुनिया के लिए चांद पर कदम रखना हो जाता मुश्किल!

चांद पर पहुंचने के रास्ते में भारत का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है, खासकर आर्यभट्ट की दशमलव प्रणाली के माध्यम से, जिसने अंतरिक्ष अभियानों के लिए सटीक गणना और समय की माप को संभव बनाया. उनकी खोज ने ना केवल गणित के क्षेत्र में क्रांति लाई, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान को भी नई दिशा दी, जिससे चांद पर सफल मिशन संभव हो पाए.

चांद पर पहुंचने की लिस्ट में आज दुनिया के प्रमुख देश अमेरिका, रूस, चीन और भारत आगे हैं. इन देशों ने चांद पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग की है, लेकिन अगर भारत ना होता तो शायद बाकी 3 देश भी कभी चांद पर नहीं पहुंच पाते. सुनने में ये भले ही अटपटा लगे, लेकिन ये सच है जिसे दुनिया भी मानती है.

आज हम आपको एक ऐसे भारतीय गणितज्ञ के बारे में बताएंगे जिनकी खोज ने पूरी दुनिया के लिए चांद तक पहुंचने का रास्ता खोला- ये गणितज्ञ थे आर्यभट्ट, जिनकी दशमलव प्रणाली ने अंतरिक्ष अभियानों के लिए गणना को सरल और सटीक बना दिया. भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की दशमलव प्रणाली ने ना केवल गणित के क्षेत्र में क्रांति मचाई, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान में भी इसकी अहम भूमिका रही.

स्पेस विज्ञान में दशमलव का महत्व

सटीक गणना का आधार- अंतरिक्ष विज्ञान में कोई भी गणना बिना दशमलव के संभव नहीं है. रॉकेट की उड़ान, उपग्रहों की गति, ऑर्बिट की स्थिति, लैंडिंग साइट और ईंधन की मात्रा- इन सभी का सही हिसाब दशमलव के जरिए ही लगाया जाता है. अगर इनमें से एक भी गणना में गलती हो गई, तो वो अंतरिक्ष मिशन को विफल कर सकती है. यहीं कारण है कि दशमलव प्रणाली की खोज ने अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.

नेविगेशन की प्रक्रिया- अंतरिक्ष यानों और उपग्रहों की दिशा और स्थिति तय करने के लिए न्यूटन और केपलर के नियमों का पालन किया जाता है और इन गणनाओं में दशमलव प्रणाली का अत्यधिक महत्व है. अगर इस प्रणाली में कोई त्रुटि हुई, तो स्पेसक्राफ्ट अपने लक्ष्य से भटक सकता है और मिशन नाकाम हो सकता है.

समय की सटीक गणना- अंतरिक्ष में समय की गणना नैनो सेकंड्स में की जाती है, यानी 0.000000001 सेकंड तक. इसे दशमलव प्रणाली के बिना करना संभव नहीं है. ये समय की सटीक गणना ना केवल मिशन के लिए जरूरी है, बल्कि अंतरिक्ष से धरती पर संदेशों के प्रसारण के लिए भी आवश्यक है.

रॉकेट विज्ञान और ईंधन- किसी रॉकेट के लॉन्च टाइम को सही तरीके से निर्धारित करने के लिए दशमलव प्रणाली का उपयोग किया जाता है. अगर किसी मिशन को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक भेजना है, तो ये सुनिश्चित करना कि रॉकेट उस समय लॉन्च हो जब ISS धरती के सबसे पास हो, ये गणना दशमलव के बिना नहीं हो सकती.

डाटा प्रोसेसिंग और इमेज एनालिसिस- अंतरिक्ष टेलीस्कोप और अंतरिक्ष प्रोब्स से प्राप्त तस्वीरों का विश्लेषण भी दशमलव के आधार पर किया जाता है. वैज्ञानिक इन तस्वीरों को मिलीमीटर या माइक्रोमीटर स्तर तक जांचते हैं, जिससे वे जरूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं. इस प्रक्रिया में भी दशमलव की अहम भूमिका है.

आर्यभट्ट का योगदान- आर्यभट्ट भारतीय गणितज्ञ थे, जिन्होंने गणना में दशमलव प्रणाली का विस्तार किया और संख्याओं को लिखने के तरीके को सरल किया. उनका योगदान केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में गणित और खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण था. उन्होंने 1, 10, 100, 1000 जैसी संख्याओं को लिखने का तरीका भी विकसित किया, जो आज भी हमारे गणितीय कार्यों का आधार है.

इसके अलावा, ब्रह्मगुप्त, आचार्य रामानुजन और शकुंतला देवी जैसे अन्य महान भारतीय गणितज्ञों ने भी गणित के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया है, लेकिन आर्यभट्ट की दशमलव प्रणाली ने ही अंतरिक्ष विज्ञान को नई दिशा दी और चांद पर पहुंचने के मिशन को सफल बनाने में मदद की.

calender
06 April 2025, 05:22 PM IST

जरूरी खबरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो

close alt tag