knowledge :...जब महात्मा गांधी को मिला ईसाई बनने का प्रस्ताव, उन्होंने विनम्रतापूर्वक इसे ठुकरा दिया

ईसा मसीह के प्रति गांधी जी के लगाव को देखकर उनको ईसाई धर्म अपनाने का अप्रत्यक्ष रूप से आग्रह किया था, जिसको गांधीजी ने खारिज कर दिया. गांधी ने अपने मित्र को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने साफ कहा कि ईसा मसीह मानवता के सच्चे शिक्षक हैं लेकिन तब भी वे इस बात से सहमत नहीं थे कि वही आखिरी शक्ति हैं और उन्हें ये धर्म अपना लेना चाहिए. 

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महात्मा गांधी अपनी पढ़ाई के दौरान ब्रिटेन और फिर दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान कई ईसाईयों के संपर्क में आए. भारत लौटने के बाद गांधी जी कई ईसाई मित्रों के साथ संपर्क में रहे और ईसा मसीह को लेकर उनका चर्चा होती रही है. गांधी ने अलग- अलग मौकों पर ईसा मसीह के बारे में विचार रखे. इसके बाद उनके एक ईसाई मित्र ने ईसा मसीह के प्रति गांधी जी के लगाव को देखकर उनको ईसाई धर्म अपनाने का अप्रत्यक्ष रूप से आग्रह किया था, जिसको गांधीजी ने खारिज कर दिया. https://www.mkgandhi.org/articles/gandhi_christ.html पर संकलित लेखों में इसका जिक्र मिलता है. इस पर मित्र के आग्रह को ठुकराते हुए गांधी ने एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने साफ कहा कि ईसा मसीह मानवता के सच्चे शिक्षक हैं लेकिन तब भी वे इस बात से सहमत नहीं थे कि वही आखिरी शक्ति हैं और उन्हें ये धर्म अपना लेना चाहिए. 

गांधी जी प्रभु ईसा मसीह के बारे में क्या सोचते थे?

ईसा मसीह के प्रति महात्मा गांधी का गहरा सम्मान था. गांधी ने अपने जीवन में बहुत हद तक उनसे प्रेरणा ली है. महात्मा गांधी ने कहा, "यीशु मेरे लिए मानवता के अब तक के सबसे महान शिक्षकों में से एक थे. यीशु जीवित हैं और मरना व्यर्थ है." ईसा ने हमें प्रेम के शाश्वत नियम द्वारा संपूर्ण जीवन को नियंत्रित करना नहीं सिखाया है. "यीशु, एक ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से निर्दोष था, उसने अपने दुश्मनों सहित दूसरों की भलाई के लिए खुद का बलिदान दे दिया." गांधी ने कहा, "यीशु शायद इतिहास में ज्ञात सबसे सक्रिय प्रतिरोधी थे और उनकी अहिंसा सर्वोत्कृष्ट थी. गांधी ने ईसा के बारे में कहा," मेरा मानना ​​है कि वह केवल ईसाई धर्म के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए, सभी जातियों और लोगों के लिए हैं." 

महात्मा गांधी के द्वारा अपने अमेरिकी दोस्त को लिखा गया पत्र.

 

गांधी जी सभी धर्मों का सम्मान करते थे 

देश- दुनिया के धर्मों को समान भाव से देखने और सभी का सम्मान करने वाले महात्मा गांधी इस बात को लेकर पक्का रहे कि सबको अपने धार्मिक रीत-रिवाज मानने की छूट मिलनी चाहिए. यही वजह है कि जिस दौरान देश में धर्मांतरण का दौर चल रहा था, तभी गांधीजी ने अपने अमेरिकी मित्र और धार्मिक नेता मिल्टन न्यूबरी फ्रांट्ज के अनुरोध को ठुकरा दिया. उन्हें साबरमती आश्रम में रहने के दौरान मिल्टन का पत्र मिला, जिसमें उन्होंने ईसाई धर्म को सर्वोच्च बताते हुए गांधीजी से उस बारे में सोचने को कहा था. साथ में क्रिश्चिएनिटी पर पढ़ने के लिए भी काफी कुछ भेजा गया था.

पत्र के बदले में गांधी ने लिखा पत्र

महात्मा गांधी को जब अमेरिकी पत्र मिला तो इसके जवाब में गांधी ने भी पत्र लिखा. इसमें उन्होंने लिखा- 'प्रिय मित्र, मुझे नहीं लगता कि मैं आपके प्रस्तावित पंथ को मानने लगूंगा. अनुयायी को मानना होता है कि जीसस क्राइस्ट ही सर्वोत्तम हैं. जबकि अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद मैं ये महसूस नहीं कर पा रहा हूं. पत्र में गांधीजी ने आगे लिखा कि वे मानते हैं कि ईसा इंसानियत के महान शिक्षक रहे लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि धार्मिक एकता के मायने सारे लोगों का एक धर्म को मानने लगना नहीं, बल्कि सारे धर्मों को समान इज्जत देना है.'

धुंधली हो चुकी स्याही में टाइप किया हुआ ये पत्र 1960 से पेनसिल्वेनिया के राब कलेक्शन का हिस्सा रहा, इससे पहले के सालों में ये न्यूयॉर्क के एक इतिहासकार के पास था. दशकों बाद राब कलेक्शन ने 6 अप्रैल 1926 को लिखा गांधीजी का पत्र को अमेरिका में $50,000 यानी लगभग साढ़े तीन करोड़ की कीमत पर नीलाम किया. First Updated : Monday, 25 December 2023